Thursday, May 30, 2013

मुझको तो एक रोज है जाना

रक्खो(रखो ) या न रक्खो  मतलब  ,मेरे किसी फ़साने से ...
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ..

साथ हूँ तो दो जाम बना लो ,दर्द है जितना मुझे पिला दो ..
साँसों की ये आंच गरम है .., ख्वाब हैं कच्चे उन्हें पका लो ..
दिल कागज़ है ,हर्फ़* है धडकन , मुझको थोडा पढ़ लेने दो..(हर्फ़ =अक्षर )
मायूसी के चाक पे अपने ,मुझे मोहब्बत गढ़ लेने दो ..
मुझसे वो बेख़ौफ़ कहो   ,जो कहते नहीं ज़माने  से
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ....

धूपें अपनी मुझें ओढ़ा कर .., पहन लो मेरी छाँव सभी
राहों में थक जाओ अगर तो ,मुझे बना लो पाँव कभी  ...
मय जब दर्द न सुनें तुम्हारा  , मुझसे बातें कर लेना
आंसू ज्यादा हो जायें ,तो मेरी आँखें भर देना ....
मैं बादल,मुझको मतलब लोगों की प्यास बुझाने से
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ..

शामें बुझने लगें अगर ...,तो मेरी याद जला  लेना ..
अपने गुस्सा हो जायें ,तो मुझको गले लगा लेना ..
गीत,गज़ल जब साथ न दें ,तो मेरे किस्से सुन लेना ..
सर्द तन्हाई काटे तो  ,मेरी ओट की चादर बुन लेना ...
मैं रिंद-ए-दर्द हूँ, होश नहीं खोता मैं  दर्द पिलाने से (रिंद-ए-दर्द = दर्द का प्यासा /पीने वाला )
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ....

सब "पागल-पागल "कहते है  ,हाँ पागल हूँ , दीवाना हूँ ,
न समझो तो नादान हूँ पर ,समझो तो बहुत सयाना हूँ ...
मुश्किल सारी गाठें खोलूँ, सीधी बातों को उलझा दूं ..
मैं एक ख्याल लिखते लिखते ,लफ़्ज़ों से जुल्फें सुलझा दूं ....
मैं पागल हूँ इक चेहरे पर ,मुझे मतलब इश्क निभाने से ..
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ....

मैं न चाहूँ कि सदियों तक मैं रहूँ या मेरा नाम रहे ..
मैं चाहूँ जब तक हूँ तब तक जीना ही मेरा काम रहे. ..
रोते के साथ ज़रा हँस लूं ,मरने वालों के साथ जियूँ
प्यासे जो रहे मोहब्बत के ,उनके संग जाम-ए-इश्क पियूं
मैं फ़कीर ,मैं राजा भी ,क्या मांगूं और ज़माने से ...
मुझको तो एक रोज है जाना ,किसी न किसी बहाने से ....
                                                 

                                              -  अनजान पथिक
                                               (निखिल श्रीवास्तव )