Sunday, April 24, 2011

कुछ आज तुमसे कह दूँ.....

कुछ आज तुमसे कह दूँ,
      मै फिर  ये सोचता हूँ |

जब खुद खुदा ने अपने घर से मुझे निकाला,

तब कोख में महीनों ,तूने ही मुझको पाला
सहकर वो दर्द मेरा ,आँसूं  पिए वो सारे
मुझपे  वो सारी जन्नत ,सब रिश्ते मुझपे वारे
तब से है कहना चाहा ,जो अब मैं सोचता हूँ
कुछ आज तुमसे कह दूँ ,
         मै फिर ये सोचता हूँ||
 जब हाथों में लेकर अपने
    छोटे से मेरे तन को,
अपने होठों के काजल से ,टीका लगाया तुमने
     ताकि नज़र ना लग जाये मुझे कहीं किसी की |

अपनी साड़ी के पल्लू ,से मुँह से छलकते दूध को पोंछा था तुमने
    ताकि गन्दा ना हो जाये मेरा चेहरा कहीं |

पूरी रात उन दो छोटे तकियों के बीच मुझे लिटाकर ,

  खुद मेरी ही ओर करवट करके जागती रही तुम
  ताकि तुम्हारी ममता को भेदकर कोई परेशानी ना छू जाये मुझे |

मुझे बिस्तर पे लिटाकर ,ज़मीन पे बिठाकर ,

तेरा रसोई में जाना
ये जानकर भी ,मुझे कुछ ना होगा
हर पांच मिनट बाद मेरी तरफ एक फ़िक्र भरी निगाह से देखना और मुस्कराना |

मुझसे दो कदम दूर खड़े होकर पास बुलाना ,

मेरा ललकना तेरी ओर ,लड़खड़ा के फिर गिर जाना
फिर उठना तुझे छूने  की  कोशिश में
और मेरे पास पहुँचते ही तेरा फिर से दूर हो जाना |
है याद कैसे मुझको  चलना सिखाया तुमने ....

हाथों में ले कटोरी ,मुझे सामने बैठाना ,कहानियाँ सुनाना

और इसी बहाने से मेरे पेट का भर जाना

मेरी नन्ही काँपती उँगलियों को सहारा देकर उन्हें अक्षरों का  खेल सिखाना|
 है याद कैसे मुझको लिखना सिखाया तूने
मेरी पढाई के बारे में ज्यादा ना जानकर भी मुझे बार-2 कोंचना,
कैसे भी करके मुझको लायक बनाया तूने

सुबह नींद को हरा कर जल्दी से जाग जाना ,

कि कहीं मुझे भूखा ही स्कूल ना जाना पड़ जाये
भरी दोपहर में अपनी साड़ी से मुह ढँककर ,मेरी बस की राह तकना
और आते ही मेरे थके कन्धों से वो बोझा उतार लेना ||

मेरी गन्दी आदत पे मुझे पैसे देने से मना कर देना ,

पर मेरी बर्थ -डे  पर अपने जोड़े हुए पैसों से चुपके से मेरे लिए साइकिल मँगाना,
मेरी हर गलत आदत पर डाँटना मुझको,
पर बुखार के समय
घंटों मेरे बगल में बैठकर वो सिर पर पट्टियाँ बदलना|

मुझसे अनबन हो जाने पर एक जोर का थप्पड़ मारना ,

पर बाद में चुपके से रसोई में जाकर खुद आटा सानते -सानते आँसूं  बहाना

कॉलेज में आ गया ,बड़ा भी हो  गया हूँ

मालूम है ये तुमको भी ,
पर फिर भी हर रात फ़ोन पे ये पूछती हो- "आज खाना खाया???"
मेरी आवाज़ की उदासी को .फ़ोन  के साज़ से ही समझ जाना

ना जाने कितनी यादें हैं

ना जाने कितनी बातें हैं
जिनके लिए पूजूँ तुझे
हर बार सोचता हूँ
पर हूँ बड़ा नालायक ,कुछ कह नही हूँ पाता
तो आज तुमसे कह दूँ .मै फिर ये सोचता हूँ ....
यही था मुझको कहना ,यही मै सोचता हूँ |||   


Tuesday, April 19, 2011

एक चाँद देखा मैंने ......



एक चाँद देखा मैंने ,
     
बिन चाँदनी तड़पता|
तन्हाई में ,गुमसुम सा
    
आसमाँ में भटकता.......

है आज पूरा गोल वो,
लगता है सेहरा बाँधकर ,
कुछ कहने किसीको आया है..
या फिर खुद चाँदनी ने चुपके से उसे बुलाया है...???

मायूस सा फिरता है, तारों के उस शहर में ,
उन बेगानों की भीड़ में कोई अपना कहाँ मिलेगा ???
जो थामे हाथ हर मोड़ पर ,हर पल जो संग चलेगा.........

ये सब तो बस आवारा है ,
जाते है रात बितानेइस आसमाँ की छत तले...|
सुबह होते ही इन सबको निकल जाना है ..
तो फिर इन गैरों से क्या दिल लगाना है...

बस बादलों की चादर से
खुद को ज़रा सा ढककर,
कोशिश थी की उसने ,
फलक के तकिये पे सिर रखकर ,
कि नींद  के बहाने आये फिर से उसका सपना ..
जिसको कहा है उसकी धड़कन ने उसका अपना....

मन में थी कुछ तड़प..
आँखों में आसूँ  भी थे
कुछ चेहरे पे निशा उसकी उदासी के भी थे |
जो लगता था दूर से कि ,उसके चेहरे पे दाग है बड़े ..
वो आज देखा मैंने कि रोया है वो इतना
अपनी चाँदनी की तड़प में
कि आँखों के नीचे उसकी काले घेरे हैं पड़े.....

कोई चाँदनी से कह दे,कि है कोई आवारा..
जो बस उसी की खातिर, फिरता है मारा -मारा
जो ख़ामोशी से हर रात उसकी राहों को तकता है
उसकी हर आहट,हर हरकत पे, जिसका दिल वो धड़कता है....
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तभी सुबह के हाथों ने इन गालों को  थपथपाया
जब तक मै कुछ समझता,
सूरज था निकल आया||
हुआ एक और क़त्ल ..
एक रात फिर से जल गयी..
कुछ कहने की वो आरज़ू
 
कश्मकश में ही  पिघल गयी...

है फिर भी ये भरोसा ,ये  फिर भी  आरज़ू है
जो आज हुई सुबह ,तो कल फिर से रात होगी
जो आज रह गयी अनकही अनसुनी,
तेरे मेरे दरमियान, कल फिर से वही बात होगी....


Sunday, April 17, 2011

होगा देवों का साज़ कोई........


वो ब्रह्मा जायें रूठ अगर
शिव भी ज्वाला बनकर फूटें,
हो भाग्यविधाता की इच्छा
तो भाग्य मेरा मुझसे रूठे
फिर भी अपनी मैं राह पकड़, मंजिल पाकर दिखलाऊंगा
होगा देवों का साज़ कोई ,पर गीत मैं अपना गाऊंगा ||

ख्वाहिश सारी दम तोड़ेंगी
मंजिल सारी मुँह मोड़ेंगी
हर एक पल बीतेगा गुमसुम
नाकामी नाता जोड़ेगी|
 पर उन नातों की नींव पे ही, मैं अपना भवन बनाऊंगा
होगा देवों का साज़ कोई, पर गीत मैं अपना गाऊंगा ||

आँखों से सपने छूटेंगे  
रिश्ते अपनों से टूटेंगे
ये दिल धड़का जिनकी खातिर
वो ही धड़कन से रूठेंगे |
फिर भी घुटने ना टेकूँगा, धड़कन बिन जीता जाऊँगा
होगा देवों का साज़ कोई पर गीत मैं अपना गाऊंगा ||

लफ़्ज़ों में होगी ख़ामोशी
जिद पर छाएगी बेहोशी
टुकड़ा-टुकड़ा हो जाएगी
मेरी चाहत की मदहोशी|
फिर भी उस मदहोशी में भी, तेरा हर सच झुठलाऊंगा  
 होगा देवों का साज़ कोई पर गीत मैं अपना गाऊंगा ||

हर एक ज़र्रा दुत्कारेगा 
खुद दिल अपना अपकारेगा
जो कल तक था गहना मेरा
वो 'मैं '  मुझको ही मारेगा|
फिर भी उस 'मैं' की ही खातिर दुनिया से भी लड़  जाऊँगा
होगा देवों का साज़ कोई पर गीत मैं अपना  गाऊंगा  ||


कब तक मुझको यूँ तोड़ोगे
कब तक मुझसे मुँह मोड़ोगे
मै तुमको खुद से जोड़ चुका
कब खुद को मुझसे जोड़ोगे |
दे देना लाखो चोट मुझे ,एक ज़ख्म  नहीं सहलाऊंगा
होगा देवों का साज़ कोई पर गीत मैं अपना गाऊंगा...
 


तू कहता था तू मुझमे है 
तो फिर ये फर्क क्यों इतना है ?
जब रोता हूँ इन आँखों से 
तू खुश होता क्यों इतना है ?
मै भी तो अंश ही हूँ तेरा, कब तक खुद से टकराऊंगा
होगा मेरा ही साज़ वही, जिस पर मैं  गीत सुनाऊंगा ||

पर मुझको तुझसे बैर नहीं 
तेरी जिद की मुझको खैर नहीं ,
तू माने ना माने मुझको 
पर मुझसे तू कोई गैर नही....
बस अपनी इस जिद की खातिर ,तेरी हर जिद ठुकराऊंगा
होगा देवों का साज़ कोई ,पर गीत मैं अपना गाऊंगा ||