Sunday, February 26, 2012

मेरी अपनी मोहब्बत का कभी अंजाम होने दो
ये किस्सा आम होने दो ,मुझे बदनाम होने दो
है ये वादा कि अपनी हर सुबह को छोड़ दूंगा मैं
कभी तो अपनी बाहों में मेरी इक शाम होने दो ...

Thursday, February 23, 2012

इतना काफी है जी

"मैं तुम्हारा हूँ" इसपर यकीं के लिए ..
नज़रें उलझी रहे ,इतना काफी है.जी ..
तुमसे रोजाना छिप छिप के मिलना है तो
नींदें आती रहे ,इतना काफी है जी ....
इबादत कभी हमको करनी हो जो..
तुमसे बातें करूँ ,इतना काफी है जी
सात जन्मों को हो पल में जीना अगर
लब से छू लो जो तुम ,इतना काफी है जी..
तुमको एकटक मैं नज़रों से पीता रहूँ
तिश्नगी के लिए ,इतना काफी है जी.... (तिश्नगी =प्यास )
धडकनें तुमको छूकर गुज़रती रहे
दिल्लगी के लिए, इतना काफी है जी ..

तुमको रखकर ख्यालों में सांसें मैं लूँ
जिंदगी के लिए ,इतना काफी है जी ......
तुम को मंजिल मैं मानूं और चलता रहूँ
इस सफर के लिए ,इतना काफी है जी....................
हमने तो जाने क्या क्या है कह भी दिया
कभी तुम भी कहो ,इतना काफी है जी.....
कभी तुम भी कहो ,इतना काफी है जी.....

Tuesday, February 14, 2012

happy valentines day......

यहाँ सब कुछ है तुम सा ही...........
यहाँ हर शय में ,हर एक कोनें में ,
तुम सा ही है कोई ..
जो अपना सा लगता है ....||

यहाँ पर है हवाओं में ,तुम सा ही कोई नशा ...
मैं जितनी सांस लेता हूँ.,
उतना पा जाता हूँ तुम्हें ..
यहाँ की हर ज़मीन पर ..,
तुम्हारे क़दमों की आहट है सोती
जो मेरे हर सफर में मेरी हमसफ़र है होती ....
यहाँ हर पेड़ की ठण्डी घनी सी छाँव हो तुम..
पगडंडियों पे सर रखकर सोता गाँव हो तुम...
यहाँ पर हर तरफ ,हर ओर ...
हर नज़ारे में हो तुम बसी...
यहाँ पत्तियों की सरसराहट भी लगे तेरी हँसी
यहाँ का हर फूल तुम्हारी अदा से
तुम्हारी रज़ा से ही है खिले ..
यहाँ के चाँद तारों को भी रौशनी तुम्ही से ही मिले
यहाँ के पंछियों में भी तुम सी ही है शोखियाँ
जो पिंजरों में ,या जंजीरों में कैद नहीं होती ...
यहाँ की नदियाँ भी तेरी पायल की छमक सुन कर बहा करती है
यहाँ के बादलों में दिखती है वो मुस्कानें
जो तुम्हारे होठों के घरों में सदा रहा करती हैं ....
यहाँ के आसमान तेरी आँखों के रंग का ही लिबास पहनते हैं ...||

यहाँ पर तितलियों का साज़ हो तुम.....
गिरते झरने की आवाज़ हो तुम..
एक बंसी की धुन हो जो फिजाओं में है बहती ..
या डालियों पे सजी इक बहार हो तुम..
यहाँ सब कुछ तुम्ही सा है..
यहाँ हर पिघलते लम्हे में
हर इठलाती कली में
मिटटी की हर खुशबू में
तुम ही तुम हो
सिर्फ तुम ही तुम हो
-----------
ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया है
जहाँ हो साथ तुम मेरे....
वो इक जगह जहाँ मेरा इकरार ज़िंदा है..
मेरा ऐतबार ज़िंदा है...(ऐतबार =भरोसा )
हमारा प्यार ज़िंदा है...
हमारा प्यार ज़िंदा हैं..||

Tuesday, February 7, 2012

मासूम कोशिश ...


एक रोज की बात है ,रात में,... "बाल्कनी" में
बैठा था मैं ,
सामने थे मेरे ख़याल ,जिनसे कुछ किस्से बाँट रहा था  ..||

नींद कहीं गई हुई थी
बोला था रात को आएगी
इसलिए आँखों के दरवाजे पे मैंने कुंडियां नहीं लगायी थी ||

नन्हे नन्हे तारे ,...सो रहे थे सारे
गहरी नींद में .....चादर ओढ़ के
एक ठंडा हवा का झोंका
जो मेरी खिडकी के बाहर लगे पीपल की सबसे ऊंची शाखों को
छेड़ता हुआ गुज़रता था
उन  नन्हे मासूम तारों की चादर सरका देता था...||
रात उन्हें लोरी गाकर फिर सुला देती थी ..
चादर ओढा देती थी ,
वो रात भर इसी काम में लगी रहती है ....,सोती नहीं ||

एक चाँद दिन भर का सोया हुआ
पहरेदारी कर रहा था उन नन्हे छोटे तारों की..
मैं बहतु देर तक तलाशता रहा ,....कोई मौका
जिसमें चाँद की नज़र फिसले
तो मैं वो तारा चोरी कर लूं
जो तुमने,   एक बार दिखाया था    ...इशारा करके
इसी बालकनी से ,||
हालाँकि... चाँद रात भर  सोता नहीं
अरसों से ...बड़ा वफादार चौकीदार  रहा है वो
इसी घर में काम करता है न जाने कब से..!!!!!!!
पर उस दिन समां शायद कुछ और था
चांदनी ने बालियाँ पहनी थी उस दिन ,सगाई के दिन वाली
और चाँद की दी हुई वो साडी भी पहले करवाचौथ की .....||
उस खामोश सी ,शबनमी फिजा में
चाँद के कंधे पर सिर रखकर
चांदनी ने हलके से इक बादलों का एक शहर घूमने की जिद कर दी थी शायद|
चाँद मना न कर सका ..
एक हलकी सी झंपकी पे सवार होकर, वो ज़रा दूर,
 एक बादल  के पीछे निकला ही था
कि मैंने वो तारा धीरे से अपनी हथेलियों में छिपाकर चुरा लिया ||
बहुत गोरा सा था वो ,नैन नक्श सब तुमपे ही गए थे उसके ..
बड़े तीखे थे ....
चेहरा पर तुमसा ही उसने एक नूर सजा रखा था ||


सुबह उठा  वो जब ,,, तो गम  हुआ उसे भी
अपनों से दूर होने का
उसको बहलाया फुसलाया मैंने
और एक वादा भी किया
कि उसे एक फ़रिश्ते से मिलाऊंगा
जो बिलकुल उसके जैसा है
तुम्हारी तस्वीर भी दिखाई ..
सारे किस्से ,कहानियाँ भी सुनाई
............
तबसे उम्मीद बांधकर बैठा है वो ..
हर रात उससे एक ही वादा दोहराता हूँ मैं
एक फरिश्ता आयेगा ,बिलकुल उसके जैसा... उसको गोद में लेने .... 

मेरा नहीं ..,तो कम से कम
 उसका दिल रखने के लिए ही चले आओ...||
उसको ये तो बतला दो ,
कि मेरी पसंद कोई ख़याल नहीं है....
हकीकत है जो साँसों में जिंदा रहती है  ...||
==============..
मेरी चोरी यूँ ही ज़ाया न होने दो..
पहली बार इतनी मासूम कोशिश की है..
शायद आइन्दा इतनी हिम्मत न हो ...



Sunday, February 5, 2012


ख्वाब से उठता रहा धुआं कभी कभी..
आग फूंकता रहा मैं ही कभी कभी ..
कुछ शरारे(चिंगारियाँ) पंख खोलते हवाओं में
और फिर गिरते से देखे है कभी कभी ..

कुछ कर गुजरने का ख्याल सोता है ज़हन में...
मैं चादर उठा जगा उसे देता कभी कभी
अपनी हिम्मत की तलवार ,ढाल लेके सपनों की
मैं कवच ओढ़ता हूँ लड़ने को कभी कभी...
मजबूरियों का शौक अब मुझको नही जंचता
बदनामियों का रंग भी मुझपर नहीं चढ़ता..
बस एक ही जिद साँसों में है झूमती रहती
मैं जीत न पाया अभी तो मर नहीं सकता .....
खुदा कहीं मुझमे है बैठा ये भरोसा है ..
पंखों में कुछ जादू जुनूनी पंछियों सा है ...
मैं आसमानों को कभी छू न पाया हूँ तो क्या
उड़ान की है जिद ,तभी उड़ता  कभी कभी..
जिंदगी मौका न दे तो सोग(शोक) न करना...
एक सांस में भी मिलती है चीज़ें कभी कभी ...
मुस्कान के  एहसास का गुमान कम न हो
इसलिए रोना भी पड़ता है कभी कभी...

सब ताक पे रख दो ,ज़रा बेबाकियाँ पहनों
जुनूं को आज बढ़ने दो,नशा-ए-शौक चढ़ने दो ..
नहीं किस्मत में कुछ ,तो भी खुदा से छीन के लाना
यूँ भी पूरी होती है हसरत  कभी कभी ..
.......
ख्वाब है मेरा ,मेरी साँसों की लौ है ये
खुद को जला दूंगा ,बुझा जो ये कभी कभी ...

Saturday, February 4, 2012

होता है कब ऐसा
कि सबको हर जहां मिले
हर दीवानी सी ज़मीन को आसमां मिले...
है शौक चलने का तो तन्हा ही रहो चलते
जरुरी है क्या हर सफ़र में कारवां मिले....

ये ज़िन्दगी सीखे तुम्ही से , ज़िन्दगी क्या है ..??
हर जीत की गली ,तुम्हारे ही निशाँ मिले..

गर राह से भटको तो फिर भटको भी कुछ ऐसा
हर राह को तुममे ही उसका रहनुमा मिले...

परवाना शौक में जला है..कई बार खुद के ही...
नसीब में कहाँ उसे हर शब्(रात ) शम्मा मिले..

एक बार आँखों में ज़रा कुछ इश्क भर के देखो..
हर शक्ल हर शय(चीज़ ) में तुम्हे उसका मकां मिले...
हर अश्क पे मैं, मैखाने के जाम नहीं लिखता
हर दर्द यूं बेचने से , सरे-आम नहीं बिकता ...

अदाएँ बख्शी जाती है कुछ चुनिन्दा नज़रों को
बेबाक आँखों में ये जेवर का काम नहीं टिकता

दिल पे लिखी जाती है मोहब्बत की सब इबारतें 
हथेलियाँ कुरेदने से उनपे कोई नाम नहीं दिखता

Friday, February 3, 2012

अपनी ही ख़ामोशी से मात खाता रहा हूँ मैं
इससे बेहतर हारने का शायद कोई तरीका ही नहीं...
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वो पागल है जो उस पार होकर मुझपे हँसता है
यूं डूबकर पार होना शायद उसने सीखा ही नहीं
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आईने में हर बार खुश ही लगता हूँ मैं
शायद उसे सच बताने का सलीका ही नहीं
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वो अपनी अर्थी में जल जल के जीता रहा
कैसा सूरज था, जो मदद को चीखा ही नहीं
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ये दुआ भरा दिल भी इबादत का एक ढंग है ,
सिर्फ नमाज़ या माथे पे लगा टीका ही नहीं...
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मैं हार मान कर खुद को कोसता हूँ क्यों
वो भी तो अब तलक मुझसे जीता ही नहीं

दर्द उतना कहो जितना महसूस हो

दर्द उतना कहो जितना महसूस हो ,
शाख लचकेगी ज्यादा ,तो टूट जायेगी
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दिल को उतना ही जोड़ो कि गाँठ न पड़े
उलझनें होंगी बेबाक तो डोर टूट जायेगी..
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अपनी आदतों, अदाओं पर गुमान न करो
वक्त लंबा सफर है सब छूट जायेंगी ....
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कांच की बोतलें है सब चाहतें यहाँ ..
नशा उतरे तो फिर ये भी फूट जायेंगी
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मैं जिंदा हूँ क्योंकि मुझसे खुश है दुनिया
चल दूंगा जिस भी दिन ये रूठ जायेगी
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मुझे सफर का शौक था इसलिए लुटा हूँ मैं
मालूम था की राहें मुझको लूट जायेंगी ..
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आँधियों से लड़ने का सलीका सीख लेते
जो गर जानते कि हिम्मत टूट जायेगी
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सारा वक्त बीतता था बस हँसते हँसाते
क्या पता था ये आदत भी छूट जायेगी...