Sunday, May 13, 2012

frnds forever.....

वक्त का पानी गुज़रता है जब ,
उम्र के किनारों को काटते हुए
तब कतरा –कतरा ,लम्हा –दर लम्हा ही सही
ये उम्र बहती जाती है
उस पानी के इशारों पर ,उसी की धुन में
उसी की लय में .......
ऐसा ही कुछ सफर है हम सबका .........||


मेरे इसी सफर में याद करो ..
किसी एक मोड पर ,कभी तुम भी आकर मिले थे मुझसे
एक अनजान दरिया ,एक बेनाम नदी की तरह
अपनी अलग धुन ,अपनी अलग लय लिए ...
और तबसे साथ साथ ही बहते रहे हम दोनों ...
हमारे किस्से ,हमारे लम्हे ,हमारे फ़साने
एहसास दर एहसास एक दूसरे में सिमटते हुए..
एक दूजे को समझते हुए ....

पर अब लगता है जैसे ये साथ शायद और नहीं ,,
इस मोड से चुननी होंगी हमें अपनी अपनी दिशाएं ,अपनी अपनी राहें
इसलिए चाहकर भी रोकूँगा नहीं तुम्हें ...
बस एक वादा लूँगा ,
और एक वादा निभाऊंगा ..
कि हम कितना भी दूर निकलें ,कितना भी अलग चलें..
मेरे संग बीता हुआ ये सफर ,ये सारे पल ..
तुम भूलोगे नहीं ..

वादा करता हूँ ,,
वक्त को लांघकर एक न एक दिन मिलने आऊंगा तुमसे ....
इंतज़ार करना .....!!!!!!!!!!!

Thursday, May 3, 2012

मैं और मेरा कमरा .....

एक रिश्ता फिर से गिनने लगा है ,,,, आखिरी सांसें...||
करवटें लेने लगी है
फिर से नयी खामोशियाँ ..
मेरे और मेरे कमरे के बीच ...||
चेहरे उतरने लगे हैं ..दीवारों के...,,
मायूसी में सिमटे रहते है दरवाजे ...||
उदास सी रहने लगी है खिड़कियाँ ,
मेज ,कुर्सियों पे जैसे सोते रहते है सन्नाटे ,
बेड ऐसा लगता है जैसे ..
सहारा देना वाला कोई कंधा ..
जिसके मन में ये शिकवा
शायद कुछ दिन बाद फिर न मिलेंगे कभी . ...

पंखा उदास होकर, धुत्त हो नशे में ...
खुद से भागा करता है ...दिनभर ||
घडी की सुइंयाँ कदम कदम पे
जैसे भरने लगी है आहें ..|
अलमारियाँ अपने चेहरे को
अपने दरवाज़ों के हाथों के पीछे छिपाकर
जैसे सुबकती हैं दिन भर ...||
किताबें परेशां इसलिए ..
कि कौन सोयेगा उनपर
उनको तकिया बनाकर ..???

हर एक चीज़ लगता है ..
जैसे जुडी हो मुझसे ..कई सदियों से ...
हवा का हर एक कतरा ..
जैसे जानता हो मुझको ,मेरी रूह से भी ज्यादा ...
कोनों में सिकुड़े,मुड़े तुड़े ही सही
पर बिखरे होंगे शायद मेरे कई राज़ ..
जो अकेले में बांटे सिर्फ तुमसे....

जिन्हें तुम्हारे पहलू में महफूज़ कर जाऊंगा मैं ..||
उदास न हो मेरे ए हमसफ़र ..
तुमको याद रखूंगा इन सब चीज़ों की खातिर ..
और फिर कई सालों बाद
जब खोलूँगा फिर से किताब-ए-जीस्त (जिंदगी की किताब )
और चूमेगा तुम्हारा ज़िक्र मेरे होठों को ...
तब फिर से तुम्हे एक नगमे में सजाऊंगा मैं...||

ऐ मेरे कमरे ..
तुम मुझे याद तो बहुत आओगे ....||