Saturday, November 30, 2013

सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें

Written something like a song after a long time ,
Special Thanks to Vishal O Sharma ji who gave me this beautiful piece to develop 
"सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||"
Maybe I didn't write it how it was meant to be but
After so many days I just went through these lines ,and here is what I tried .
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सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
शाम से है आँखें धुंआ धुंआ,
तेरा एक ख्वाब है ,जो कबसे न जले||

हाथों की वो थपकियाँ ,
बातों के वो कहकहे ,
पलकों के सिरहानों पे ,
किस्से कुछ उलझे हुए ,

आँखों आँखों बोलना,
रूह से रूह टटोलना,
दिल के सब दरवाजों को,
बिन दस्तक के खोलना,

कितना कुछ है जैसे खो गया
जो गर तुम न मिलो तो कुछ भी न मिले ||
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||

धूपें कुछ कहती नहीं ,
रातें चुप चुप हो गयी
कश्ती का वो क्या करे
मंजिल जिसकी खो गयी

राहों ने ही लिख दिए
खुदपर इतने फासले ,
मैं कहीं जलता रहूँ ,
तू कहीं जलती रहे

जिंदगी है जैसे धुन कोई ,
हैं जिसके साज़ सब ज़रा बिखरे हुए
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||

-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
 — with Kavita Upadhyay and Vishal Om Prakash.

Monday, November 18, 2013

कितना अच्छा होता,काश !!

कितना अच्छा होता,काश !!


अपनी जिंदगी की हथेली की ,

किसी घुमावदार सी लकीर में ,

मैं लिख के छिपा देता तुमको - वक्त की मेहँदी से |

ताउम्र तुम रचती जाती मुझमें ||

-अनजान पथिक

 (निखिल श्रीवास्तव)