Written something like a song after a long time ,
Special Thanks to Vishal O Sharma ji who gave me this beautiful piece to develop
"सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||"
Maybe I didn't write it how it was meant to be but
After so many days I just went through these lines ,and here is what I tried .
--------------------------------------------------------------------------------------------------
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
शाम से है आँखें धुंआ धुंआ,
तेरा एक ख्वाब है ,जो कबसे न जले||
हाथों की वो थपकियाँ ,
बातों के वो कहकहे ,
पलकों के सिरहानों पे ,
किस्से कुछ उलझे हुए ,
आँखों आँखों बोलना,
रूह से रूह टटोलना,
दिल के सब दरवाजों को,
बिन दस्तक के खोलना,
कितना कुछ है जैसे खो गया
जो गर तुम न मिलो तो कुछ भी न मिले ||
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
धूपें कुछ कहती नहीं ,
रातें चुप चुप हो गयी
कश्ती का वो क्या करे
मंजिल जिसकी खो गयी
राहों ने ही लिख दिए
खुदपर इतने फासले ,
मैं कहीं जलता रहूँ ,
तू कहीं जलती रहे
जिंदगी है जैसे धुन कोई ,
हैं जिसके साज़ सब ज़रा बिखरे हुए
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव ) — with Kavita Upadhyay and Vishal Om Prakash.
Special Thanks to Vishal O Sharma ji who gave me this beautiful piece to develop
"सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||"
Maybe I didn't write it how it was meant to be but
After so many days I just went through these lines ,and here is what I tried .
--------------------------------------------------------------------------------------------------
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
शाम से है आँखें धुंआ धुंआ,
तेरा एक ख्वाब है ,जो कबसे न जले||
हाथों की वो थपकियाँ ,
बातों के वो कहकहे ,
पलकों के सिरहानों पे ,
किस्से कुछ उलझे हुए ,
आँखों आँखों बोलना,
रूह से रूह टटोलना,
दिल के सब दरवाजों को,
बिन दस्तक के खोलना,
कितना कुछ है जैसे खो गया
जो गर तुम न मिलो तो कुछ भी न मिले ||
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
धूपें कुछ कहती नहीं ,
रातें चुप चुप हो गयी
कश्ती का वो क्या करे
मंजिल जिसकी खो गयी
राहों ने ही लिख दिए
खुदपर इतने फासले ,
मैं कहीं जलता रहूँ ,
तू कहीं जलती रहे
जिंदगी है जैसे धुन कोई ,
हैं जिसके साज़ सब ज़रा बिखरे हुए
सिलवटे कुछ कहती है ये सिलवटें
कि बदली है तुमने भी यहाँ पर करवटें||
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव ) — with Kavita Upadhyay and Vishal Om Prakash.