Saturday, June 30, 2012

चल चलें ,चाँद के पार चलें...


चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें 

बर्फीली मस्त हवाओं के पंखों पे रात ये गुज़रे जब ...
एक ख्वाब की कश्ती ,आँखों के बहते दरिया में उतरे जब....
तब जुल्फें खोले ,बिन कुछ बोलें ..
आ थम जा इन बाहों में...
तारों के फूल है खिले वहाँ  
बादल के गाँव है राहों में...
आ वक्त की इस सारी बंदिश से ,दूर मेरे इकरार चलें ..
चल चलें चाँद के पार चलें ...
आ जा हमदम एक बार चलें...||


उस फलक को करके पार वहाँ ,चलते हैं ऐसे  देस ..सनम ....
जहाँ तितली तितली ,पत्ता पत्ता ,खुशबू खुशबू बस होंगे हम.....
जहाँ हवा मोहब्बत गायेगी,बारिश भी इश्क सुनाएगी .
जहाँ लैला बनकर रात -सहर के मजनूँ में ढल  जायेगी  ..

जहाँ सही न हो ,न गलत हो कुछ.,आ वहाँ मेरे दिलदार चलें...
चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें ...||

  
जहाँ धूप के पीले पन्नों पर ,हम रोज नया इक राज़ लिखें..
इबादत ,ख्वाब ,हकीकत 
प्यार के सब के सब अंदाज़ लिखें ...

और हो जायें दीवाने यूं ,कि वक्त थके ,धडकनें थमें.
खुद खुदा रोक दे जब सब कुछ  ,तब भी अपना ये प्यार चले ..
सदियों तक रूह तके तुझको ,
सदियों तक ये दीदार चले ....
दिल कभी न जीते तुझसे ,बस, इतनी लंबी ये हार चले 
चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें ...||













Sunday, June 24, 2012


आसमान के आगे भी दुनिया तो होती होगी
ये ज़मीन भी माँ बताओ न ,कभी तो रोती होगी ..!!!
सूरज को स्कूल बताओ ,कौन छोड़ने जाता .???
चंदा रात से 'tution ' पढ़ने रोज चला क्यों आता ..??
पेड़ों को ये हरी हरी सी ड्रेस है कौन सिलाता ,
नन्हे नन्हे तारों को जूते है कौन पहनाता ..??
ये शाम सुबह दोनों घर पर एक साथ क्यों नहीं आते ..??
हम पहले बूढ़े ,बाद में क्यों न बच्चे फिर बन जाते ..??
फलक के छज्जे पे बादल के कपडे किसने डाले ..??
और इनको निचोड़ इनसे फिर बारिश कौन निकाले..!!
हवा को बिन पंखों के माँ उड़ना है कौन सिखाता ..!!
सूरज को क्यों कभी भी माँ ,बुखार नहीं है आता ..
अखबार को सारी खबरें जाकर रोज है कौन सुनाता ...??
फूलों के डिब्बों के अंदर खुशबू के biscuit कौन छिपाता..??
काँटों का इतना मूड खराब माँ कौन किया करता है..
आसमान इतना लंबा तो क्या 'complan' पिया करता है ...
नदियाँ माँ बचपन में पोलियो ड्रॉप नहीं है पीती ...
इतनी टेढ़ी मेढ़ी होकर भी फिर कैसे है वो जीती...
माँ पेट बड़ा सिर से मेरा ,फिर दिमाग नहीं क्यों इसमें..
दिमाग ये कैसा fridge है ,यादें कभी न सड़ती जिसमें....
आसमान के कनवास पर ये पेंटिंग कौन है करता ..
पेड़ों की गुल्लक में ,पत्तों के सिक्के कौन है भरता .....
वक्त के लम्हे सारे क्यूँ आपस में खुद से भागे ..
एक जो रहता पीछे तो दूजा क्यों निकले आगे .....

धुप छाँव के जैसे माँ यारी है कैसे होती....??
कितना अच्छा होता जो ,दुनिया एक गाडी होती...
हम तुम रोज़ बैठ माँ उसपर दूर दूर तक जाते
ऐसे कितने ही सवाल के पेड़ हम रोज़ उगाते ......
फिर जब थक जाता मैं तो गोद में तेरे आता ...
फिर तू लोरी गाती माँ ,और फिर से मैं सो जाता...........||