Wednesday, November 28, 2012

एक्स्ट्रा सिप


राह से गुज़रती धूप को ...
बालकनी के आवारा किनारे ,

आज भी ,कलाई पकड़कर खींच लेते है अपनी ओर ...

बाहर रखे गमले में दिख जाती हैं आज भी  ..
ओस का शॉवर लिए ठण्ड से कंपकंपाती ...
'गुलाब 'की नन्ही  मासूम पत्तियाँ ..||

सुनाई दे जाती हैं ...सुबह -सुबह 
हवा के संगीत पर गुनगुनाती
"विंड चाइम" की वही सुरमई छनकती सांसें ....

वो खिडकी पे बैठकर चहचहाने वाली गौरैया 
आज भी आती है, रोजाना 
एक अनजानी रस्म निभाने ....

जब तक मैं न्यूज्पपेर पढता हूँ ...
उठता रहता है धुआं ..
सामने मेरी कॉफी के कप से ...
और उठती रहती है ,
पुराने लम्हों के प्यालों से ..
महकती यादों की खुशबू ....||

सब कुछ वैसा ही होता है एकदम ..
जैसा तब भी होता था ...
जब तुम साथ होते थे ..||

बस जो नहीं होता ...वो ये ..
कि अब कोई न्यूज्पपेर छीन कर ,
मेरी कॉफी से "दो सिप" लेते हुए   ,
शरारतन  ,हक जताकर ,ये नहीं कहता ...-- ...
" न्यूज़ अभी ही जरुरी है क्या ,
        मुझसे बात नही कर सकते ..... !!"
====********==========
अब जब भी कॉफी की वो दो "एक्स्ट्रा " सिप लेता हूँ ..
जुबां पे जैसे, तेरे होठों का स्वाद आ जाता  है ......
सच में,वो दिल हो या जुबां .....
तू और तेरा एहसास दोनों ही ..
इतने मीठे है ., भुलाये नहीं भूलते ...||

                                            -अनजान पथिक 

Thursday, November 1, 2012

नाम ..



ये जो तेरे होठों पे काँपता सा है न कुछ ...
इसे गिरने न देना ...
एहसासों की नरम हथेली पे धीरे से, संभाल के रखना ..
और यादों के मीठे पानी संग, बरसों ..चखना ...
गर फिर ऊब जाओ कभी जो इसकी महक से ..
लगे कि, जायका फीका पड़ गया है ..
या इसके ज़िक्र से पुरानेपन की बू आने लगे ...
तो फेंकना मत ,
बस इतना करना ...किसी कलावे की तरह इसे ...,
अपने दिल के तुलसी के पौधे से  , बाँध देना ... |

आखिर ,'ये मेरा " नाम" है ...
"जो तुम्हारे बिन पाक* तो है ,पर पूरा नहीं ......||" (पाक=पवित्र )

"मैं महज़ इसको इक जिंदगी दे सकता था  ....
पर  इस तरह से 
शायद इसे कुछ मायने भी मिल जायें ...||"



                                         -अनजान पथिक 

Friday, October 26, 2012



न वक्त कम था ,न ही हम थे जल्दबाजी में ...
बिन रोके पर ,रुक जाने में ,वो मज़ा भी नहीं ...!!

"इंसान ने मांगी हो पर  ,इंसा के लिए न हो ..
गर ऐसी हो असल में फिर ,वो दुआ भी  नही ...।।"

आँखों को भाये खूब , दिल पे छाप न छोड़े 
इतनी कशिश न हो तो फिर ,वो अदा  भी नहीं ..।।.

बस नाम ही लिखकर पते पे भेजा था तेरे  ..
थी दिल की बात हमने सो कुछ ,लिखा भी नहीं ...।।

उस मोड़ पर कुछ रिश्तें अनसुलझे से रखे है ..
जहाँ मैं खड़ा रहा था ,और तू रुका भी नहीं ..
 
"सब दुनिया में ढूंढे  उसे ,वो दिल में बैठा था ,
मूरत का हो मोहताज फिर , वो खुदा भी नहीं  "

दे पापियों को मार  ,पर  रानाई छोड़ दें ..(रानाई =अच्छाई )
गर न चले ऐसी तो फिर ,वो वबा भी नहीं ...(वबा -महामारी )

दिल के बदले दिल , यहाँ बस ये ही  रीत है ,
इन इश्क के ज़ख्मों की कोई दवा भी नहीं ....

"सरहदें वो माएं हैं ,जो खुद सिसकती है ..
पर मुद्दतों बेटों ने जिनको  सुना भी नहीं  "...(मुद्दतों =अरसे से, )

ये वहम है कि मुझको तनहा छोड़ पाओगे  ..
दिल में अगर तुम हो तो फिर हम जुदा भी नहीं ...

"दैर -ओ-हरम के दर दीवारें बंद ही कर दो ..      (दैर-ओ -हरम =मंदिर और मस्जिद  )
इंसानियत से बेहतर मज़हब हुआ भी नहीं ...।।"



                               -अनजान पथिक 

Tuesday, September 18, 2012

‎(राधा )
बिन तोरे नयनन भी कान्हा लगते सीले सीले ,
भीजे जाए तन मन कान्हा ,कजरा गीले गीले ...

तुम संग कान्हा बैठ बताओ कैसे बात करूँ मैं 
बिना सुहागन बने ही कान्हा कैसे मांग भरूँ मैं 
सांझ नहीं ढलती कान्हा बिन तुझको गले लगाये 
रात तड़प मिलने की कान्हा ,तेरे ख्वाब दिखाए 
न कान्हा मैं जाऊं कासी ,न पूजूँ मूरत को 
दिन भर कान्हा भजूँ, मैं तुझ से प्रीतम की सूरत को
फिर भी मेरे पहलू में कान्हा तुम पास नहीं क्यों 
तुझको पाने की कान्हा बुझती है आस मेरी क्यों ..??

(कान्हा)
ओ पगली प्यारी राधा काहे इतना घबराए ,
मैं तुझमें ,तू मुझमें ,अब हम किसको गले लगाये ..
जियरा मोरा भागे मुझसे ,तुझसे जा जुड जाए 
किससे कितना प्यार किसे ,कोई क्या सबूत दिखलाये 
हम तुम इतने पास कि राधा ..इक से लगते दो जन ...
तुम्हरे बिन .सच मैं कहूँ तो राधा ...सूना है वृन्दावन...
तुम बिन बंसी मेरी रूठी ,अधर मेरे ..पथराये ..
जो न तुम ..जीवन में .कौन इन्हें फिर हाथ लगाये.....


तुझ बिन मैं बेमोल हूँ ,मुझको "तू "अनमोल बनाये ..
तेरे हर इक आंसू पे मोसे लाखों "कान्हा" बिक जाएँ .....||
-अनजान पथिक

Sunday, September 9, 2012

कुछ भी बदला नहीं तबसे ...

वक़्त वही ठहरा हुआ हो जैसे अभी तक .....|
कभी कभी 
मोबाइल की नब्ज़ छूकर कोशिश करता हूँ 
कि अभी भी ...
कुछ हो सकता है क्या ..??
कोई पुराना निशाँ रह गया हो शायद ,धोखे से ही सही ,
 जो न मिटा हो,,वक्त की आंधी में  ...||

तभी  इनबॉक्स में छिपा हुआ एक मेसेज खिलखिला  के हँसता है 
 जैसे हो कोई नन्हा शरारती बच्चा ..
जो तंग करने के लिए छिप जाता है कभी कभी 
बेड के नीचे ,दरवाज़े के पीछे ......
और जो  ढूँढ लो उसको ..
तो उसकी मासूमियत पर आ जाती  है मुस्कान खुद ब खुद चेहरे पर ... ..||
                                            
हाँ ,वही इक मेसेज ,जिसमें  लिखा था  तुमने ...
"आज शाम को मिलोगे ..............................,
    ................................... बहुत मन है बात करने का .....||"
*************************
कुछ भी बदला नहीं तब से अब तक...
जो बदला वो बस ये ..तब ये  एक गुज़ारिश थी ..
और अब शायद  एक सवाल ....
बहुत मन है बात करने का ....................................."
"......................................आज शाम को मिलोगे .???
                                                -अनजान पथिक 

ख़ाक का ये जिस्म, ख़ाक में ही जाना है ...
ये इश्क तुमसे, महज़ जीने का बहाना है ....||

ख़्वाबों में आओ ,ज़रा कुछ देर फिर ठहरो 
ये दौर फुरसत का ,कहाँ हर रोज आना है ...||

ये उम्र ही ऐसी है ,कुछ कुछ भूल करने की.
नादानियां तो हर जवान दिल का फ़साना हैं....||

कभी मुस्का के शर्माना ,कभी शर्मा के मुस्काना..
तुम्हें मालूम है ,कितनी तरह से दिल जलाना है ..||

खुदा से बंदगी की रस्म हमने तोड़ दी क्योंकि ...
तुम्हारे नाम का कलमा ,हमें होठों से गाना है ...||

तुम्हारे बिन ये लगता है कि सब कुछ है अधूरा सा 
तुम जो साथ हो ,तो संग में पूरा ज़माना है.....||

"कोई कह दे कि पागल हो ,तो कोई फर्क न पड़ता ...
पर फर्क पड़ता , जब लगे तुमको- "दीवाना है" ||"

"है मरे इश्क का रुतबा,जो तेरी ओर खिंचते हैं ..
वरना हमको भी मालूम है -किस ओर जाना है...||"
-अनजान पथिक

Saturday, September 1, 2012

जिंदगी एक जाम है

जिंदगी एक जाम है ,मुस्कुरा के पीजिए 
वक्त जो सौगात दे ,बाअदब ले लीजिए ...(बाअदब -with respect )

सब अधूरे है यहाँ पर अलग अलग किस्म के 
कुछ किसी से लीजिए ,किसीको कुछ दे दीजिए...

सबके दिल में एक कोना ,जीतने का हो हुनर 
पर आपको जो जीत माने ,दिल उसे ही दीजिए...

हद से गुज़र जाने का जज्बा ,इश्क में रखिये मगर 
खुदी जहाँ खतरे में हो ,सब ताक पे रख दीजिए...(खुदी -self respect )

"जो कभी हासिल हो तुमको ,मांगो कि वो हक हो तेरा "
गर भीख कहकर दे .कोई तो कह दो कि रहने दीजिए...."||
-अनजान पथिक

Monday, August 20, 2012

ईद का चाँद



घुटने के बल सरक सरक...कर 
बड़ी दूर से आकर उसने ...
पीछे से ...ऊँगली थामी थी ...
और कानों में हौले ,,बोला था  ,
-
---"एक संदेसा लाया हूँ ,.....
ख़ास है..!!!!
पढना चाहोगे ....???  "||--

पलट के देखा ज्यों ही . ..
नन्हा छोटा चाँद खड़ा था.....
हथेली पे, नाज़ुक सी उसकी 
"मेहँदी" से तेरा नाम लिखा  था...
रचा हुआ था-..".मैं" भी उसमें...
और नीचे पैगाम  लिखा  था 
"तुमको भी ये ईद मुबारक....."

आज समझ में आया ...
"ईद के  चाँद का इतना रुतबा क्यों है...!!!!!!! "
                                        -अनजान पथिक 

Sunday, August 19, 2012

मैं जिंदगी का साज़ हूँ ...

मैं जिंदगी का साज़ हूँ ..,होठों पे ठहर जाऊँगा...
साँसों के सुर सजाना तुम ,मैं गीत बनकर आऊंगा ...!!!
हो जिंदगी बेसाज जब ,तब गुनगुनाना मुझको तुम...
मैं गीत हूँ ,जो ज़िन्दगी को सुरमयी कर जाऊँगा..!!

तुम अश्क बन के टूटोगे  ,जब भी मुझसे रूठोगे ..
मैं गीत,गज़ल,हंसी बनकर तुझको फिर मनाऊँगा.. ||

जो तुम कहोगे मुझसे कि मैं प्रीत की एक रस्म हूँ ,
सच मानो तो मैं उम्र भर ,ये रस्म फिर निभाऊंगा...

तुम बोलकर भी सोचोगे ,कुछ रह गया जो ना कहा 
मैं बिन कहे तेरी वो सब खामोशियाँ पढ़ जाऊँगा....

तुम मेरे संग बैठोगे तो खुद को भूल जाओगे..
और मेरे बिन जो बैठोगे ,तो तुमको याद आऊंगा ...
तुम ज़िन्दगी की रातों में ,खुद को जो तन्हा पाओगे..
मैं जुगनू बनके ही सही ,एक रोशनी कर जाऊँगा...

तुम जब भी गुनगुनाते हो , मैं मायने पा जाता हूँ .... 
इक बार गा लेना कभी ,तो मैं अमर हो जाऊँगा...!!!
मैं जिंदगी का साज़ हूँ ..,होठों पे ठहर जाऊँगा...||||
                                                                -अनजान पथिक 

Tuesday, August 14, 2012

साँसों की दस्तक ....



सांसें जब भागी थी 
इस जिस्म के घर से...
बोली थी तब -"तुमको छूकर ही लौटेगी ...."||
साँसों का तो पता नहीं...
हुई लापता कहाँ ....
मगर .......
उम्मीद का दिन ढलने को है...
अँधेरे ..की ...कड़वी हंसी   ...
"चिरागों " के कान के परदे ,,जैसे  फाड़ रही है...
"लौ" की हर धड़कन कहती है ...
"बोलों तुम आओगे सच में ....तो और जलूं मैं...??"
वरना ..तुम बिन जलने का  मतलब ही  क्या है ....??
तुम न हो ....तो फर्क कहाँ हैं...
रोशनी और अंधेरों में....??
रातों में और सवेरों में...??

=====
रुको,
ज़रा कुछ आहट सी महसूस हुई है दरवाजे पर  ....
देख के आने दो .....
शायद ....कोई सांस ...
पता तेरा .....,खबर तेरी ....., लेकर लौटी हो ....
दुआ करो  ....ये गली में खेलती 
हवा की कोई शरारत न हो ...||
------
"ए दरवाजे ...
जो भी हो....पकड़ के रखना .......
बिठाना ,बातें करना .....
हो सकता है ...
वो ही आये हो.......
साँसों को वापस करने....||"
                               -अनजान पथिक 


Monday, August 13, 2012

सौदा...

उम्मीद के सिक्के जेब में  भरकर 
वक्त की बाज़ारों में निकला ......  ..
सोचके ये .....
कोई सही सी दिखे दुकां (दूकान) जो   ....
थोड़े वक्त के पाक से लम्हें ले लूँगा मैं...
फिर उनको तेरे साथ जियूँगा ...||

पर आज भी चेहरे पर मायूसी लेकर  ..ही लौटा हूँ ...

मुट्ठी भर भी नही मिले पल.....
तुमको देखूं  ,तुमको सोचूं ,
तुमको पा लूं.,या फिर खो दूं 
 या फिर तुमको जी ही लूं....
इतने ज़रा से ....वक्त में, बोलो .....??

 "हर एक ..बात के लिए मेरी जाँ, एक पूरी सी  सदी भी कम है..||"
 
आज समझने लगा हूँ ...ये कि
सच कहते है शायद लोग ..जो  कहते है ये  ....

"ज़माने में महँगाई बहुत है ....."||

                                                  -अनजान पथिक 


Sunday, August 12, 2012

"तुमसे बात "

सुनो ...
एक बात कहूं मैं !!...
ये जो एक लम्बी सी चादर है ना ...
फासले की ...
मेरे दिल से तेरे दिल तक
..आओ इसे ..समेट ले ..थोड़े वक़्त की खातिर 
एक सिरे से तुम पकड़ो 
एक सिरे मैं हाथ लगाऊं .....||
फिर जब ...वक्त दोबारा करने लगे शिकायत ..
फिर से..इसे तान देंगे...||

फिर से उतनी दूर चले जायेंगे ....
जैसे...
एक दूजे के कभी ना थे....
"ये तो हम पहले भी करते आये है ना .."||

बोलो ,,,,क्या दिक्कत है...??
"और वैसे भी हम अलग कहाँ हो पाते ही हैं....!!!!"
                                   -अनजान पथिक ......

पतंग ...



                                                              

पतंग की तरह आसमाँ में दिन भर उड़ता रहा इक सूरज
किस छत से ,,किस डोर से,,किस छोर से...
ये मालूम नहीं... 
मांझा खीच, कभी फलक पे ऊपर तान देता कोई 
तो कभी ढील देकर नीचे कर देता था कोई ...
मज़े मज़े में...||
****
पर अब तो शाम भी  चढ़ आयी है छत पर ..
हाथ में चाँद की पतंग लिये ...
लगता है फिर पेंच लड़ेंगे...!!!!
सुना हैं ..बड़ा तेज़ है .मांझा- चाँद का....
रोज़ पतंग कट जाती है सूरज वाली ...
और कुछ आवारा से ..क्षितिज
नंगे पाँव ही दौड़ जाते  हैं लूटने.उसको ..
..........
आज ज़रा काम है कम  .....
तो मैं भी फुरसत में खड़ा हूँ छत पर,
बस इस  इंतज़ार में  ..
कि..शायद जो पेंच लड़े गर आज ....
और कटे जो सूरज फिर से ...
गुज़रे मेरी गली या छत के ऊपर से ..
तो ..लंगड़ डाल के..,उछल -उचक के.. ..
कैसे भी ...मैं लूट लूँ शायद...
बहुत ज़माना बीता मुझको भी अब तो पतंग उडाये.....
"बड़े शहर में वैसे वरना कहाँ पतंगें उड़ती ही  हैं..???." 
                                                -अनजान पथिक..

Tuesday, July 24, 2012

कागज़ पे कुछ लिखकर 
मिटा कर देखा है कभी....??
कागज़ तो फिर से कोरा हो जाता है ...
मगर उसकी उधड़ी हुई सतह को याद रह जाते हैं 
लफ़्ज़ों के साथ गुज़रे वो पल...
जो कितना भी वक्त बीते ...,उतर नहीं पाते कभी 
कागज के नर्म ज़हन से ....||

कुछ ऐसा ही होता है ....
दूरियों से जुड़े दो दिलों का रिश्ता ....
वो (..खुदा ) लाख मिटाता रहे 
एक को दूजे की किस्मत से..जिंदगी से...
मगर दिल के नर्म कागज से,
न एहसास मिटते हैं कभी ...,न ही जज़्बात उतरते ......| 

कुछ रिश्ते खुदा भी शायद इसलिए ही बनाता है 
कि कुछ तो हो काश,, जिसकी इबादत वो भी कर सके ...,
जिसके सजदे वो झुक सके ..||

आओ आज ऐसे ही, अपने इक रिश्ते को जिया जाए...||

                                           -अनजान पथिक  

Saturday, July 21, 2012

एक शहर मोहब्बत का


           
एक रात गुज़रती है ,...रोज 
फलक की कच्ची पगडंडियों से होते हुए ;  
हाथ में चाँद का चराग(चिराग) लिए .... ,
पैरों में सन्नाटे की पायल पहने ...
अँधेरे के जंगलों से निकलकर,....
दूर ,बहुत दूर ..... जाती है वो   
इक आवारा सुबह से मिलने...
किसी अनसुने ,अनदेखे से शहर में...||  

एक शहर जहाँ ,मोहब्बत का सूरज कभी ढलता नहीं...
एक शहर जहाँ ,खेतों में इश्क की फसल उगा करती है ...
जहाँ नीला सा ये आसमां..... पिघलकर घुल जाता है ,
शाम को,,,,, धरती की बांहों में ...
जहाँ डालियों पे, यादों के फूल महकते रहते है ...|
बीते लम्हें,  .... तस्वीर बनकर चढ़े रहते है ,
मंज़र की दीवारों पर...,उतरते नहीं कभी ... |
एक शहर जहाँ वो नदी भी बहती है ..
जो शीरी के लिए .....बनायीं थी ..इक फरहाद ने ..कभी 

एक शहर ,जहाँ  वक्त अपाहिज है ... चल नहीं पाता..
इसलिए यहाँ ....दिन गुज़रते नहीं ,रातें  होती नहीं ...
बस उसी एक लम्हे में जिंदा रहते है  सब लोग 
जिस एक लम्हें में उन्हें मोहब्बत हुई .....,
वो मोहब्बत ,जो सदियों से अब तक बदली नहीं ...|

कहते हैं ,ये वो शहर है ...
जो किसी हीर ने बसाया था किसी रांझे के लिए ...
ताकि मोहब्बत के सारे रिश्ते जिंदा रह सकें....||
 आज ख़्वाबों  में  निकलूंगा मैं ....... तुमसे मिलने के लिए ,

इसी एक शहर में ...इस यकीन पर  ..
कि कुछ भी हो जाये, कभी न कभी 
तुम मुझसे मिलने  जरुर आओगे ....
**बोलो आओगे न..???? **
                                           -अनजान पथिक 


Saturday, July 7, 2012

मुक्तक

अदाओं की ये दौलतें , पास ही रख लीजिए 
नुमाइश के बाजारों में दिल ,यूं ही नहीं बेचे जाते .............

यादें,लम्हें,रिश्तें ,खुशियाँ ये सब संजोनी चाहिए 
महबूबा-ए-वक्त के ये खत , यूं ही नहीं फेंके जाते ,,,

हो खुद का हुस्न देखना , तो मेरी नज़र रख लीजिये 
इन आइनों के दलालों से सच ,यूँ ही नहीं देखे जाते ..

खुदा महज़ कहना नहीं ,मानना भी पड़ता है 
इश्क के मज़हब में ये सिर ,यूँ ही नहीं टेके जाते ...

मेरे इकरार को मजबूरियाँ समझे जो मेरा यार गर 
कह दो उसे कि चाँद पर पत्थर नहीं फेंके जाते ...

दिल से जुड़ने वालों से बस इक हुनर सीखा करो 
नज़रें समझी जाती है ,चेहरे नहीं देखे जाते ....

ये हिन्दू मुस्लिम सिख का चर्चा अब ज़रा ठंडा करो
खुद्गर्ज़ियों की आँच पर  ,मसले (समस्याएं )नहीं सेंके जाते ...


Monday, July 2, 2012


इस चेहरे के पौधे को 
सींचते रहना  मुस्कानों के पानी से,..
बहारों के इंतज़ार में कहीं ये न हो ...
इसकी खुशबुएं सिमटी ही रह जायें 
......
क्योंकि बाकी बातें अपनी जगह है...
पर ये  पौधा जब खुल के, लहराकर
खुद की जिंदगी पर इतराता है न....
सच मानो ...
वक्त की ये धूप सजदे में झुक जाती है ..
जिंदादिली की हवाएं तड़प जाती है उसे छूकर गुजरने को 
गुमनामियों की बारिश जड़ों तक जाकर क़दमों पे सर रख देती है...
...
कभी मुस्करा के देखना .,सिर्फ अपने  लिए
बिना किसी शर्त ,बिना किसी वजह के ...
पता चल जायेगा ....
मैं क्यों हमेशा कहता था...
''मुस्कराते रहना''.....||
     -अनजान पथिक

Sunday, July 1, 2012

मेरी ये जिद....

ख्वाब से बुलंदियों तक जो सड़क जाती है न.,,
तुम उसपर मिलना मुझे 
मेरा हौंसला बनकर ...|
प्यार न सही ,...नफरत ही सही 
दिल में कुछ तो रखना ..||
उम्मीद के दीये न जले,
तो धिक्कार के अंधेरो को ही महफ़ूज कर लेना आँखों में 
कम से कम 
कोई न कोई रिश्ता सांस लेता रहेगा  ...
ताकि जब कभी मैं पहुँचूँ ..
बुलंदियों के उस शहर तक  ..
और पलट कर देखूं 
तो वहम ही सही ,पर ये लगता रहे 
कि मेरे इस सफर में तुम मेरे साथ ही थे ....||
 मेरी मोहब्बत आखिर तक जिंदा रही
 मेरा ये गुमान टूटना नहीं चाहिए ||
अगर ये मेरा गुरूर है तो पनपने दो इसे 
जिद है तो जूझने दो मुझे खुद से ही...
मेरी ये जिद ही मेरे वजूद की वजह है ...
खुद को खोकर, खुद को पाने के बीच का सफर है 
चलने दोमुझे, मेरी जिंदगी को , ऐसे ही..||

और हाँ ,किसी की निगाहों में 
गर ये गलत है ..
तो इस बार गलत ही सही...
सब कुछ सही होता रहे तब भी तो , जिंदगी
-- जिंदगी नहीं रह जाती...||
                  -अनजान पथिक 


Saturday, June 30, 2012

चल चलें ,चाँद के पार चलें...


चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें 

बर्फीली मस्त हवाओं के पंखों पे रात ये गुज़रे जब ...
एक ख्वाब की कश्ती ,आँखों के बहते दरिया में उतरे जब....
तब जुल्फें खोले ,बिन कुछ बोलें ..
आ थम जा इन बाहों में...
तारों के फूल है खिले वहाँ  
बादल के गाँव है राहों में...
आ वक्त की इस सारी बंदिश से ,दूर मेरे इकरार चलें ..
चल चलें चाँद के पार चलें ...
आ जा हमदम एक बार चलें...||


उस फलक को करके पार वहाँ ,चलते हैं ऐसे  देस ..सनम ....
जहाँ तितली तितली ,पत्ता पत्ता ,खुशबू खुशबू बस होंगे हम.....
जहाँ हवा मोहब्बत गायेगी,बारिश भी इश्क सुनाएगी .
जहाँ लैला बनकर रात -सहर के मजनूँ में ढल  जायेगी  ..

जहाँ सही न हो ,न गलत हो कुछ.,आ वहाँ मेरे दिलदार चलें...
चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें ...||

  
जहाँ धूप के पीले पन्नों पर ,हम रोज नया इक राज़ लिखें..
इबादत ,ख्वाब ,हकीकत 
प्यार के सब के सब अंदाज़ लिखें ...

और हो जायें दीवाने यूं ,कि वक्त थके ,धडकनें थमें.
खुद खुदा रोक दे जब सब कुछ  ,तब भी अपना ये प्यार चले ..
सदियों तक रूह तके तुझको ,
सदियों तक ये दीदार चले ....
दिल कभी न जीते तुझसे ,बस, इतनी लंबी ये हार चले 
चल चलें ,चाँद के पार चलें...
आ जा हमदम एक बार चलें ...||













Sunday, June 24, 2012


आसमान के आगे भी दुनिया तो होती होगी
ये ज़मीन भी माँ बताओ न ,कभी तो रोती होगी ..!!!
सूरज को स्कूल बताओ ,कौन छोड़ने जाता .???
चंदा रात से 'tution ' पढ़ने रोज चला क्यों आता ..??
पेड़ों को ये हरी हरी सी ड्रेस है कौन सिलाता ,
नन्हे नन्हे तारों को जूते है कौन पहनाता ..??
ये शाम सुबह दोनों घर पर एक साथ क्यों नहीं आते ..??
हम पहले बूढ़े ,बाद में क्यों न बच्चे फिर बन जाते ..??
फलक के छज्जे पे बादल के कपडे किसने डाले ..??
और इनको निचोड़ इनसे फिर बारिश कौन निकाले..!!
हवा को बिन पंखों के माँ उड़ना है कौन सिखाता ..!!
सूरज को क्यों कभी भी माँ ,बुखार नहीं है आता ..
अखबार को सारी खबरें जाकर रोज है कौन सुनाता ...??
फूलों के डिब्बों के अंदर खुशबू के biscuit कौन छिपाता..??
काँटों का इतना मूड खराब माँ कौन किया करता है..
आसमान इतना लंबा तो क्या 'complan' पिया करता है ...
नदियाँ माँ बचपन में पोलियो ड्रॉप नहीं है पीती ...
इतनी टेढ़ी मेढ़ी होकर भी फिर कैसे है वो जीती...
माँ पेट बड़ा सिर से मेरा ,फिर दिमाग नहीं क्यों इसमें..
दिमाग ये कैसा fridge है ,यादें कभी न सड़ती जिसमें....
आसमान के कनवास पर ये पेंटिंग कौन है करता ..
पेड़ों की गुल्लक में ,पत्तों के सिक्के कौन है भरता .....
वक्त के लम्हे सारे क्यूँ आपस में खुद से भागे ..
एक जो रहता पीछे तो दूजा क्यों निकले आगे .....

धुप छाँव के जैसे माँ यारी है कैसे होती....??
कितना अच्छा होता जो ,दुनिया एक गाडी होती...
हम तुम रोज़ बैठ माँ उसपर दूर दूर तक जाते
ऐसे कितने ही सवाल के पेड़ हम रोज़ उगाते ......
फिर जब थक जाता मैं तो गोद में तेरे आता ...
फिर तू लोरी गाती माँ ,और फिर से मैं सो जाता...........||
 

Sunday, May 13, 2012

frnds forever.....

वक्त का पानी गुज़रता है जब ,
उम्र के किनारों को काटते हुए
तब कतरा –कतरा ,लम्हा –दर लम्हा ही सही
ये उम्र बहती जाती है
उस पानी के इशारों पर ,उसी की धुन में
उसी की लय में .......
ऐसा ही कुछ सफर है हम सबका .........||


मेरे इसी सफर में याद करो ..
किसी एक मोड पर ,कभी तुम भी आकर मिले थे मुझसे
एक अनजान दरिया ,एक बेनाम नदी की तरह
अपनी अलग धुन ,अपनी अलग लय लिए ...
और तबसे साथ साथ ही बहते रहे हम दोनों ...
हमारे किस्से ,हमारे लम्हे ,हमारे फ़साने
एहसास दर एहसास एक दूसरे में सिमटते हुए..
एक दूजे को समझते हुए ....

पर अब लगता है जैसे ये साथ शायद और नहीं ,,
इस मोड से चुननी होंगी हमें अपनी अपनी दिशाएं ,अपनी अपनी राहें
इसलिए चाहकर भी रोकूँगा नहीं तुम्हें ...
बस एक वादा लूँगा ,
और एक वादा निभाऊंगा ..
कि हम कितना भी दूर निकलें ,कितना भी अलग चलें..
मेरे संग बीता हुआ ये सफर ,ये सारे पल ..
तुम भूलोगे नहीं ..

वादा करता हूँ ,,
वक्त को लांघकर एक न एक दिन मिलने आऊंगा तुमसे ....
इंतज़ार करना .....!!!!!!!!!!!

Thursday, May 3, 2012

मैं और मेरा कमरा .....

एक रिश्ता फिर से गिनने लगा है ,,,, आखिरी सांसें...||
करवटें लेने लगी है
फिर से नयी खामोशियाँ ..
मेरे और मेरे कमरे के बीच ...||
चेहरे उतरने लगे हैं ..दीवारों के...,,
मायूसी में सिमटे रहते है दरवाजे ...||
उदास सी रहने लगी है खिड़कियाँ ,
मेज ,कुर्सियों पे जैसे सोते रहते है सन्नाटे ,
बेड ऐसा लगता है जैसे ..
सहारा देना वाला कोई कंधा ..
जिसके मन में ये शिकवा
शायद कुछ दिन बाद फिर न मिलेंगे कभी . ...

पंखा उदास होकर, धुत्त हो नशे में ...
खुद से भागा करता है ...दिनभर ||
घडी की सुइंयाँ कदम कदम पे
जैसे भरने लगी है आहें ..|
अलमारियाँ अपने चेहरे को
अपने दरवाज़ों के हाथों के पीछे छिपाकर
जैसे सुबकती हैं दिन भर ...||
किताबें परेशां इसलिए ..
कि कौन सोयेगा उनपर
उनको तकिया बनाकर ..???

हर एक चीज़ लगता है ..
जैसे जुडी हो मुझसे ..कई सदियों से ...
हवा का हर एक कतरा ..
जैसे जानता हो मुझको ,मेरी रूह से भी ज्यादा ...
कोनों में सिकुड़े,मुड़े तुड़े ही सही
पर बिखरे होंगे शायद मेरे कई राज़ ..
जो अकेले में बांटे सिर्फ तुमसे....

जिन्हें तुम्हारे पहलू में महफूज़ कर जाऊंगा मैं ..||
उदास न हो मेरे ए हमसफ़र ..
तुमको याद रखूंगा इन सब चीज़ों की खातिर ..
और फिर कई सालों बाद
जब खोलूँगा फिर से किताब-ए-जीस्त (जिंदगी की किताब )
और चूमेगा तुम्हारा ज़िक्र मेरे होठों को ...
तब फिर से तुम्हे एक नगमे में सजाऊंगा मैं...||

ऐ मेरे कमरे ..
तुम मुझे याद तो बहुत आओगे ....||


Monday, April 23, 2012

भूख --एक सपना ..,हकीकत सा....



ए मेरे चंदा ,कर दो तुम कुछ ऐसा 
कि आज बाद तुमको केवल पूजता रहूँ 
मत रात भर जागो 
मत बांटो चाँदनी 
रहने दो रात को अकेला ,तनहा ...
सन्नाटों के कंधे पे भी,,,, सिर तो रख सकती है वो ...
वो कह सकती है अँधेरे सेमुझको बाहों में भर लो..||

पर  उतरो मेरी ज़मीं ,
देखो ये सहमी सडकें ,ये ऊंघती गली .....
इनमें जागते है कुछ बच्चे 
जो रात भर तकते हैं तुमको ,
भूखी निगाहों  से .
सिकोडें पैरों को ..
समेटे पेट में कई परतें भूख की  ...
लगाये यही  आस  
कि आज चाँद उतरेगा 
रोटी का एक टुकड़ा  बनकर ..||
और फिर सदियों बाद ..
कोई नर्म नर्म हाथों से सहलायेगा वो पेट 
जिनको मालूम ही नहीं ..
"पेट भरना" होता क्या ....????


उनसे कुछ न कहना तुम ..
कोई खिलौना मत देना ..
उनको कौवा ,हाथी ,घोडा इन सबका हवाला देकर भी मत खिलाना तुम..
जैसे खिलाती थी तुम्हारी नानी ,माँ,और दादी  ...||
बस प्यार से खुद को परोस देना ,
 रोटी का टुकड़ा बनाकर ,
वो जिंदगी समझकर खा लेंगे ....

ज्यादा शौक करने की आदत नहीं होती उनको ...||

बस दिला दो उन्हें यकीं ..
कि उनके लिए भी यहाँ जीता है कोई ...||
बस एक एहसास कि जब सोते है वो  
रात में ..भूखे पेट 
तब चाँद आता है... सपनों में उन्हें खाना खिलाने ..
रात आती है लोरी सुनाने ...
और चहरे पे हलकी थपकियाँ देती है ये जिंदगी ..
जिससे  मुस्कुराएं वो,सुकूं से सो जायें वो ...


....ताकि कोई भी मेरी सड़क ,
मेरी गली ,मेरी ज़मीं  ...
कभी फिर भूखा न सोये...||
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ए मेरे चंदा 
 बस कर दो तुम कुछ ऐसा...
ताकि जिंदगी भर केवल तुमको पूजता रहूँ....||