Monday, September 26, 2011

अनजान घरों की बस्ती में 
दिल अपना ठिकाना ढूँढता है..
एहसास के पीले पन्नो पर 
कोई अपना फ़साना ढूँढता है...||

मिल जायें कहीं तो रातें वो,बारिश में भीगी भीगी सी 
बाँहों की सौंधी महक और वो यादें सीली सीली सी...
एक प्यार का रस पी लेने को 
हर कोई मैखाना ढूँढता है .. 
अनजान घरों की बस्ती में 
दिल अपना ठिकाना ढूँढता है...||

हर ख्वाब शरारत लगता है ,जब साये से तुम आते हो 
दिल के दरवाजे धीरे से दस्तक देकर छिप जाते हो ..
कोई आवारा दरिया जैसे 
बस अपना मुहाना ढूँढता है...
अनजान घरों की बस्ती में 
दिल अपना ठिकाना ढूँढता है...||

Wednesday, September 7, 2011

प्यास


अंधेरों में भागता रहा,
रोशनी को ढूँढने||
सोचा ,
हकीकत की लौ तेज हो जाएगी
सपनों का घी डालने से |
उलझ गया खुद,
हाथों की उलझी लकीरों को सुलझाते -सुलझाते|
शर्त भी लगायी तो उस खुदा से 
जिसको हारना नहीं मंज़ूर |

घोंसलों को आशियाँ बनाकर 
चाहा आसमान छूँ लूँ |
चौखट भर की रोशनी लेकर
सुबह करने की हसरत पाली |
अपनी ही आवाजें अनसुनी कर
सुनता रहा क्या क्या नहीं???
देखकर भी अनदेखा किया हर सच ,
निगाहों को ख्वाबों की दहलीज़ से आगे,
 बढ़ने ही नहीं दिया ||
हर बार कुछ नया लिखता गया यूँ ही
लिखे हुए को बदलने की चाह में |
अकेले चलते चलते
तलाशता रहा काफिले के निशाँ |  
खाता रहा चोट ये सोच ,
कि नये ज़ख्म भुला देंगे पुराने दर्द को ...| 
हटाता रहा बादलों को आँगन में बरसने से
कि कहीं फिर से गीली मिट्टी
सौंधी सी खुशबू लेकर
 ज़हन में ताज़ा ना कर दे कुछ |
ख्वाब इतने देखे की नींदें
थक गयी |
कई बार हुआ ऐसा
जब पता भी नहीं चला
कि कितनी बार ये चोर सुबह
रात का चाँद निगल गयी|

जिंदगी की फटी जेबों  से गिरता रहा वक़्त
बिना आवाज़ किये||
अब जब पीछे देखता हूँ तो लगता है,
कितना लम्बा सफ़र तय कर लिया  !!!
यूँ गँवाते-गँवाते ,
शायद अब पाने की बारी होगी ..
शायद अब पाने की बारी होगी || 
प्यास बहुत लगी है...||
ये प्यास यूँ ही नहीं मिटेगी ||
देखता हूँ किस मोड़ पर मिलेगी जिंदगी 
 हाथ में कुछ मेरे अपने वक़्त की बूँदें लिये |
शायद तब प्यास बुझे मेरी..
कहीं ना कहीं कोई बहता दरिया तो होगा ही..||