Tuesday, November 29, 2011



जी तो करता है कभी
शीशे से पत्थर तोड़ दूँ...
एक फूँक से सूरज बुझा
दिन -रात को भी जोड़ दूँ ...
 सब दीवारें सब मीयादें
चूर चूर एक पल में हो..
एक प्यार का रेशम बना
सबको सभी से जोड़ दूँ...

क्या है खुदा के दिल में

परवाह किसको क्या पता
सबकी अलग माँगे यहाँ
सबकी अलग अपनी रज़ा...
सोचे ना कुछ समझे ना कुछ
कब तक चले ये सिलसिला..
सब हो गये तन्हा तो फिर
कैसे चलेगा काफिला....

आओ मिले अब साथ देखे क्या जरुरत ,क्या गलत...

सूरज की ठंडी धूप छाने ,फैलाये फिर सीमा तलक...
उन सरहदों के पार भी आँखों में एक सपना ही  है...
वो गैर सा दिखता हुआ चेहरा भी तो अपना ही है........


Monday, November 14, 2011

वो बचपन जब याद आता है.

वक़्त के दरीचों(झरोकों ) से
ज़िन्दगी के कमरों में 
एक धुंधला साया सा.. दिखता है...
एक मीठी सौंधी महक लिये..
एक भोलापन और चहक लिये...
टूटे कच्चे अल्फाजों का ,एक दौर उबर सा आता है.....
आँखों की नम बरसातों में
वो बचपन जब याद आता है......||-2

वो कागज की नावों का बहना ..बहते बारिश के पानी में..
वो खो जाना दादी माँ की परियों की किसी कहानी में...

वो बरसात में कीचड में छपाक से, गिरकर गंदे हो जाना..
वो  डांट पड़े चाहे मार पड़े,झूठी मूठी का चिल्लाना....
स्कूल में लंच में अपनी पसंद की लड़की के पास टिफिन लेकर जाना
अपनी मैगी उसको  देना ....और बदले में उसका सैंडविच खाना..
अपनी पेंसिल उसका शार्पनर,
अपनी गलती ,उसकी रबर....
बातें करने के ना जाने कितने नये नये बहाने बनाना....||

आइसक्रीम वाले की आवाजों पे एक पागल जैसे हो जाना....
वो गुब्बारे वाले को सुनकर ...गुब्बारे की जिद में खो जाना..
साइकिल या विडियो गेम के लिये
 चुपके से दादी से  कहना....
वो भूत की बातें सुन डरकर
रात भर मम्मी से चिपके रहना ..||

.वो क्रिकेट में आउट हो जाने पर
गुस्से से पहले झल्लाना ..
फिर 'बैट मेरा है ' धमकी देकर ,अपना ही टशन एक दिखलाना ..||
 किसी के घर में आते ही सीधे बच्चे सा बन जाना..
मिठाई कहाँ रखी है ,बस यही देखना .
और उनके जाते ही चट कर जाना.....||
पापा की स्कूटर पे आगे खड़े होकर, बेमतलब पीं पीं चिल्लाना..
वो कैसेट की अन्दर की रील निकालकर, बेवजह घुमाते रह जाना....
वो बाबा दादी के पैर दबा ,गुल्लक में पैसे जमा करना..
वो विडियो गेम पे लेवल पार करके जीतने का दम भरना ...||

वो थकने का बहाना करके ,सबकी गोदी चढ़ जाना..
वो कार्टून नेटवर्क खोल ,आँखों का उनमें ही गढ़ जाना  ..
होम वर्क की कॉपी खोलकर
कुछ भी पीछे लिखते रहना ..
और मम्मी के देखते ही फिर से ,होम वर्क में मन से लग जाना..||
.किताब के पन्नो पर लिखे नंबर से ,खेलना क्रिकेट क्लास में पीछे बैठ ...
और असली में एक-एक कैच के लिये घुटनों के बल भी गिर जाना..
ज्यादा अँधेरा होने पर डांट पिटेगी फिर भी बैटिंग लेकर आना...||

वो कौवा ,हाथी तोता ,मैना के झूठे दिलासे सुनते सुनते हर एक कौर खाना .....
और अम्मा की गोद में सिर रखकर उनके संग परियों के घर जाना........

वो टूटे खिलौने ,फटे लूडो,बिना हैंडल के बैट का कुछ ना करना
फिर भी कोई उन्हें कूड़ा कह के हाथ लगा दे तो मुँह फुला के बैठ जाना...

ना जाने कितना कुछ बाकी है इन बचपन की यादों में....
तोतली जुबान ,एक प्यारी सी नादानी  है भरी हुई एहसासों में.....
बस आज कोई कहता है जब ..
बड़े हो, जिम्मेदार बनो....
तो बचपन का वो भोलापन..वो आज़ाद समां याद आता है...
और आँखों के नम कोनों से वो बचपन फिर मुस्काता है....
और आँखों के नम कोनों से वो बचपन फिर मुस्काता है...||




Wednesday, November 9, 2011

रात भर चाँद में


रात भर चाँद में तेरा साया ढूँढ़ते ,
   छत पे बैठे बेवजह ख्वाब बुनते ही रह गए
बेखुदी में अपनी धडकनों को भूलकर
   तेरी आहटों का साज़ सुनते ही रह गए ..!!!

रात कतरा कतरा कर 
जलती रही ख़ामोशी से..
ख्वाब के धुएँ में
कच्ची नींदें भी उडती रही...
मखमली ओस सी बरसी मेरी तनहाइयाँ
हसरतें भी हौले हौले
उनमे सिकुड़ती रही...||
आसमाँ पे तुमको ढूँढा
                बादलों में भी  कहीं
चाँद के पीछे भी देखा
               तुम मगर मिले नहीं |

सातों आसमानों के घर भी छाने
सूरज डुबाया ,रात करी
बुने कितने ताने बाने  ..!!!

सोचा नींदों के शहर में
          कभी तो आओगे
रात से छिप छिपाकर
दबे पाँव..
अँधेरे की ओट में
पलकों की ठंडी छाँव में बैठोगे
महकी महकी बात करोगे 
मेरे आँखों के पानी में
बेसाख्ता घुल जाओगे ...||

वहम पालते रहे महज
                  चाँद में तुम्हारी सूरत देख  
सोचा आगे बढ़कर छू लेंगे तुम्हे  ,
तोड़ लेंगे तुम्हे फलक की शाख से
और जहन के पन्नों के बीच रख लेंगे  हौले से ..
                                        
 इसी जिद में हाथ  बढाया
थोडा उचके भी
बाहें भी फैलाई...
पर वो बुलबुले सा साया ना जाने कहा फूटा ..
कि ना मिले निशान कहीं
ना कहीं खबर कोई ..||

नींदों की धुन पर
 ना जाने कौन से ख्वाब
 गुनगुनाते रहे
तन्हा थे ,पागल थे या तुम में खोये थे इतने ...
कि अपने ही साये को खुद ही गले लगाते रहे...!!!

सुबह होश संभाले
तो देखा कि ,होठों की सेज पर सोया है एक आँसू 
चखा तो मीठा सा है....
शायद रात में तुमको छूता हुआ गुज़रा होगा....
ऐसे ही एहसासों का इक किस्सा हो तुम....!!!!!!

Tuesday, November 8, 2011

इकरार  अदा  है  आँखों  की  ,
चुपके से  सब  कह  जाने  की ,
इनकार  बहाना  है  बस ..
दिल  की  धड़कन  और  बढ़ाने  का ...
ये  दोनों  महज़  तरीके  है
जिन्दा  रहने  के  अलग  अलग ..
एक  रिश्ते  को  जी  लेने   का ...
एक  रिश्ते  को  तडपाने  का ....

Friday, November 4, 2011

होठों पे शरारत रखते है...
पलकों पे क़यामत रखते है..
उनसे पूछो वो जुल्फों में
क्यों दिन की जमानत रखते हैं...

... आँखों से अदा छलका देना
आसान तो नही होता इतना
कैसे वो बिना पैमानों के
ये जाम पुराने रखते है

Wednesday, November 2, 2011

बादलों पे मिल रहे

बादलों पे मिल रहे ,मेरे क़दमों के निशान ...
ये ज़मीन-ओ-आसमान,कह रहे....
तेरे ख़्वाबों में बह गया ,मेरी नींदों का एक जहां .....
ये अश्कों के निशाँ ,कह रहे.....

कच्चे सपने आँखों के ,नींद की आँच पे हम तले ...
मै तेरे, तू मेरे संग चले....||
सातों आसमान के पार,सारी जन्नतों से दूर..
एक मोड़ पर कहीं हम मिलें...!!!

चल फिर चाँद के पीछे ,रात की आँखें मीचें....
चाँदनी के तले सो जायें....|||
थामे लम्हे हाथ में..,बाँधे साँसें डोर से
साये में हम तेरे खो जायें..||

कहकशों की गलियों में,दूर कहीं ,
अपना घर एक बना लें ज़रा...
एक फलक की शाख से,तोड़ तारे अधपके
आ जा आशिया सजा लें ज़रा ... !!!
.
मैं न तुझसे कुछ कहूं,तू ना मेरी कुछ सुने..
लफ्ज़ यूं बेजुबान हो जायें......||
सूखी पलकों की आग में
तेरा साया जल उठे
रात इतनी मेहरबान हो जाये....,,रात इतनी मेहरबान हो जाये..||

कोरी पलकों के कोनों में,छिपे यादों के आसमाँ..
बारिशों से यही कह रहे..||
तेरे ख़्वाबों में बह गया ,मेरी नींदों का एक जहां .....
ये अश्कों के निशाँ ,कह रहे.