Friday, December 30, 2011


जलते दीपक सा लगता हूँ ..
जीता हूँ जब खुद को खोकर..
जब जब लगता संभला हूँ मै
तब तब खा जाता हूँ ठोकर
पर हर पल दो पल की ठोकर,बस ये ही बात बताती है..
बिन अँधेरे की रातों के ,कोई सुबह कहाँ फिर आती है...||

जब जब लगता मैं बरसा हूँ
दूजों की प्यास बुझाने को,
हर बूँद सिहर उठती है तब
मेरी प्यास मुझे समझाने को...
पर उस प्यासे से सावन ने ,बस ये ही बात सिखाई है..
जितना भी जलन हो सूरज को,एक आह मगर नही आयी है ...

जब जब लगता मजबूत हूँ मैं
टूटा हूँ टुकडो से बदतर..
जब जब लगता मैं जीता हूँ
हारा हूँ तब खुद से अक्सर
पर हर उन मिलती हारों ने ,जीने का ढंग सिखाया है..
हैं रंग उतारे जब सबके ,तब रंग मेरा ये आया है..||

जब जब लहरों सा उठा हूँ मैं
साहिल ने मौज उड़ाई है ..
जब साथ कभी पाना चाहा
तब दूर हुई परछाई है ...
पर हर एक उस परछाई ने ,बस ये ही बात सिखाई है...
तुम खुद में ही पूरे से हो,किस बात की फिर तन्हाई है...||

Monday, December 19, 2011

chalte chalte

हवाओं से कह दो कि उनको जिद है तो रुख बदल लें
टूटने के दर से पत्ते शाख नहीं बदला करते ||

है बादलों को शौक तो बरसे या फिर ना बरसे
मैखाने के पुजारी अपनी प्यास नहीं बदला करते ||

कोई कितना भी लाख चाहे कि घोट दे हसरत का गला
हकीकत की बदरंगी से ,रंगीन ख्वाब नहीं बदला करते ||

लोग सवाल करते है, कई तरीके से कई बार यहाँ
जब कहने का मन ही नहीं ,तो जवाब नहीं बदला करते ||

पागल और दीवानों से चिढ भी जाते है लोग यहाँ ..
पर अंजामो के डर से ,वो अंदाज़ नहीं बदला करते ||

बाहों में तुम खुद ही भर लो ,या फिर मै ही कोशिश कर लूँ
शुरुआत बदल जाने से मगर , एहसास नहीं बदला करते ||

ख़ामोशी की तो बात ही कब करते है ,कहने वाले सब
वादे टूटेंगे इस डर से अलफ़ाज़ नहीं बदला करते||

खुद जो हो वो ही हो तुम, चाहे जितना श्रृंगार रचो
आइना देख इतराने से इंसान नहीं बदला करते||

पहचान भी नहीं याद जिन्हें , उनसे भी कोई क्या बोले
ओये अबे कह देने से बस, नाम नहीं बदला करते ||

मंजिल खो भी जाये अगर ,चलते रहना चलने वालो
जो राहों के दीवाने है ,वो राह नहीं बदला करते ||

हर बार कहीं एक पन्ने पे लिखते है हम भी क्या क्या तो..
बस लफ्ज़ अलग हो जाने से,पैगाम नहीं बदला करते ||

होठों पे भी ठहरे रहते है ,हम भी बन एक एहसास कोई
आप इतराओ ,या मुस्काओ हम काम नहीं बदला करते ||

Saturday, December 17, 2011

एक जिद तो है..



खोया है ,तो क्या,?? पाने की एक जिद तो है..
हर रात को सुबह बनाने की एक  जिद तो है...
पंखो का बहाना,कोई और किया करते है...
फलक छूने के लिये काफी बस एक जिद तो है.....||

खुद को क्यों बदल डाले ,तुमको नही समझ तो

इंसान अगर हम है तो तुम भी इंसान बस एक महज हो...
अंदाज़ और अदा सब इक से नही तो क्या गम
कुछ अपना हो ,अपना महज, ऐसी भी एक जिद तो है...||

वो दरिया भी क्या दरिया, जो बारिश से झोली भर ले..

वो आग क्या ,सूरज से डर जो आँच धीमी कर लें...
वक़्त की इस राह में .है बस फूल हर तरफ नही..
तो ठहरे क्यों,है काँटे तो,दूर जाने की भी एक जिद तो है...||

दुआ में बस खुदा से सब माँगे भला कब तक यूँ ही

हाथों में जो खिचा है,सच माने उसे कब  तक यूँ ही ... ....
वहम में हो गर सोचते हो कि तोड़ने से बिखर जाएँगे ....
हमें भी हर टुकड़े को जिद्दी बनाने की एक जिद तो है... ....||

Wednesday, December 14, 2011

तुमसे, कुछ तो रिश्ता है.....


                                                                 
वक़्त के बागों में फिर से 
कुछ नए फूल खिले हैं,
कुछ महके लम्हों की अधखिली  कलियाँ हैं .|
कुछ नटखट शरारती यादों की बौरें हैं |
कुछ तुम्हारी जुल्फों जैसी घुंघराली बेलें है,..
सीधे ज़हन में उतरती हैं |
कुछ टूटे पत्ते हैं...
बिखरे बिखरे से
कई के तो अब रंग भी उड़ गए हैं
कई के चेहरों पे आँधियों की खरोंचें है  ..|
मुझे याद है इसी भीड़ में कहीं
एक गुमसुम दिल का पेड़ हुआ करता था
मासूम ,सच्चा ,सीधा ....
अक्सर लोग पत्थर भी मारते .
तो मीठे फल लुटा दिया करता था |
परिंदे भी आते थे उसपर  ,
घोंसले बनाने ,|
कुछ दिन रहते ,फिर उड़  जाते
उनके घरों को अपनी शाखों की बाहों
में महफूज़ कर लेता था वो..
पर ,वो परिंदे
फिर लौट कर नहीं आये आज तक
लोग कहते है
 कि उड़ते परिंदों की तो ये ही फितरत होती है..
उन्हें आशियाँ से ज्यादा जिंदगी की जरुरत होती है...
लेकिन मैं नहीं मानता ...
मुझे बस याद है वो पल..
जब सर्दी की रात में ठिठुरते
तुम्हारे किसी एहसास को
 उन्ही घोसलों में
पत्तो के बीच दबाकर कहीं
एक सुकून मिला था मुझे ... ...
रूह को एक गर्म आगोश सा मिला था.....
बस उसी एक पल पर यकीन करके कहता हूँ ..
तुम वो डाली डाली फिरने वाले परिंदे नहीं हो....
तुमसे, कुछ तो रिश्ता है..
तुमसे, कुछ तो रिश्ता है.....



Friday, December 9, 2011

खामोश रहने दीजिये...



सब वक़्त के पानी के संग चुपचाप बहने दीजिये..
कुछ ज़ख्म गहरे है अगर,गहरे ही रहने दीजिये
बदलेंगे परदे आँखों के तो नज़र भी बदलेगी तब..
अभी खामोशियों का दौर है, खामोश रहने दीजिये...

है फासलों को जिद अगर,तो खुद ही कम हो जायेंगे..
इन वक़्त की शाखों पे मीठे फल कभी तो आयेंगे....
जिसको है कहना जो ,उसे चुपचाप कहने दीजिये....
मेरी कहानी है तो फिर मेरी ही रहने दीजिये....
सहकर उबरते है सभी ,हमको भी सहने दीजिये....
खामोशियों का दौर है, खामोश रहने दीजिये...








Wednesday, December 7, 2011

ओ दिल में रहने वाले

ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ..
ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ....

मुझे होठों से लगा ले ,
मुझे नींदों में छिपा ले
हमराही मेरा बनकर
मुझे मंजिल तू बना ले....
ओ दिल में रहने वाले
ओ दिल में रहने वाले
ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ....||

(कि) अब दिन भी तुम से ही हो..
रातें भी तेरी ही हो..
तेरे यादों में हो आहट
तो बातें भी मेरी हो...
कभी सपनों में आकर ,यूँ ही मुझको गुदगुदा दे..
ओ दिल में रहने वाले
ओ दिल में रहने वाले
ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ....||

क्यों मंदिर अब मैं जाऊं
क्यों मस्जिद सिर नवाऊं
तेरे पास थोडा बैठूं
तुझे धड़कन बस सुनाऊं
इबादत तू ही मेरी,तू ही मेरी है दुआ रे...
ओ दिल में रहने वाले
ओ दिल में रहने वाले
ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ....||

तेरी आँखों के वो मोती
अपनी आँखों में सजा लूँ..
खुद को खो दूँ ऐसा तुझमे
तुझसे ज्यादा खुद को पा लूँ ..
तू ख्यालों का गुमान रे,तू ही मेरा आशियाँ रे..
ओ दिल में रहने वाले
ओ दिल में रहने वाले
ओ मेरे मंदिर के खुदा के साए से दिखने वाले ....||

Friday, December 2, 2011

वो बात कभी तो होने दो..||

एहसास की ठंडी छाँव तले ,कुछ मीठे लम्हे सोने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......
           
कटने को तो रातें यूँ ही ...
तारे गिनते कट सकती है...
ये खालीपन,ये बेचैनी
एक नींद से भी हट सकती है...
पर उम्र यूँ ही कट जाये तो ये जिन्दा लोगो की बात नहीं.,.
दिल है तो ये धड़का भी होगा,इकरार कभी तो होने दो ...
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||



वो शोख हवा के ठण्डे से
झोंके सा तेरा मुस्काना..
वो पलकों पे जन्नत रख के
हर एक नज़र में इतराना...
वो भोलापन एक पत्ते पे सोयी ओस की बूंदों सा..
वो गर्दन के हर झटके में ,सुकून गुनगुनी धूपों का ...
कितनी बार तो खोया अपना दिल,अपनी जिद हार गया
बस कभी तो अब कुछ पाने जैसा,जीते जैसा होने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||

वो बातों को होठों तक ला
अन्दर अन्दर डरते रहना..
फिर आँखों से सब कुछ कहकर
हर बार खता करते रहना..
नज़र मिला कर नज़र चुराना.
आँखों में हया के सागर ले...
हर एक अदा ऐसी दिलकश 
कि खुदा भी आहें सी भर ले...
ये सब होते एक दौर हुआ,कुछ और नया तो होने दो
हुई इधर उधर की बात बहुत वो बात कभी तो होने दो..||


वो राहों पर मुड़ कर रुकना
रुक कर मुड़ना मिलने के लिए
कोई काम कही का भी करना
बस साथ सफ़र चलने के लिये...
तुम ही मंजिल तुमको लेकर ,चाहा राहों पे साथ चले..
कोई क्या जाने कि फिर कब ये हाथों में तेरा हाथ मिले..
ये सफ़र कि बस शुरुआत अभी ,कुछ दूरी  तो तय होने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||


मैंने तो पाना सीखा है
तेरे संग बीती यादों से
तुमने भी खुद को ढूँढा है
मेरी चुप चुप सी बातों में...
पाया दोनों ने दोनों में..,अब तो दोनों को खोने दो...
हुई इधर उधर की बात बहुत ,वो बात कभी तो होने दो..||


सोची समझी सारी चलें
बस लगती अब नादानी हैं ,
ना प्रीत बिना जीवन पूरा
जग की ये रीत पुरानी है
तो बोले ,समझे ,सोचे क्या
बस ये ही बात बतानी है
दो दीवानों को प्यार हुआ
सच में बस यही कहानी है...
रह जाये कहीं ना किस्सा ये ,किरदार में अब तो खोने दो..
मेरा सब अपनापन ले लो पर मेरा कुछ तुम मुझको दे दो....||

एहसास की ठंडी छाँव तले ,कुछ मीठे लम्हे सोने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो.....||..