Monday, October 10, 2011

ख्वाबों से जुड़ते देखा है,मैंने दो टूटी नींदों को
देखा है चंद लकीरों से ,बनती बिखरी तकदीरों  को....||.

देखा है बिन डोरी ,धागे ,कैसे दो दिल बंध जाते हैं
कैसे हाथों की मेहंदी में ,कुछ नाम कहीं छिप जाते है ||

कैसे तन्हा होकर रातें,घुट घुट कर पल पल मरती हैं ..
कैसे चंदा की देख चाँदनी,धड़कन सौ आहें भरती है ...||
                                                            

कैसे बस एक तस्वीर लिये,कोई रात सुबह हो जाती है
 कैसे एक  नटखट नींद,भिगाकर पलकें गुम हो जाती है..||.
कैसे एक साँसों का रेशम,ऐसा पुख्ता हो जाता है..
कि राज़ ज़ुबानों से पहले ,आँखों से सब कह जाता है...||

कैसे सारी शर्तें अपनी ,उनके सजदे झुक जाती है...
कैसे एक प्यारी बात,जुबान तक आकर फिर रुक जाती है ||

कैसे 'गुड मॉर्निंग ' मेसेज से ,हर सुबह शरारत करती है ...
'गुड नाईट' ना आने की चिंता,कैसे घबराहट भरती है .... ||

उनका तिनके सा मुस्काना भी शोख हवा सा लगता है 
कैसे उनके छू लेने से हर ज़ख्म दवा सा लगता है...||

कैसे पन्नो के बीच दबे लम्हे जिंदा हो जाते है... ..
कैसे अपने सारे रस्ते ,उनके दर पर खो जाते हैं....||
कैसे मौला बिक जाता है ,उनकी हलकी मुस्कानों में 
इश्क मज़हब लिख जाता है ,गीता में और कुरानों में ||

कैसे खुद को ही समझाना ,भारी सा लगने लगता है..
कैसे हर सच को झुठलाना ,लाचारी लगने लगता है...|| 

देखा है हर एक लम्हे की चाहत को बुझ बुझ कर जलते...
देखा है सच के दरिया में सपनों के सूरज को ढलते ..
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क्यों ना देखूँ ...????.
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आँखों का है ये शौक बसाना अन्दर उन तस्वीरों को..
जिनपे खुद लिख कर, भूल गया वो रब, बेबस तकदीरों को....||||



Sunday, October 9, 2011

एक रात के सूखे पन्नो पर
कोई ख्वाब अनोखा लिख बैठे ....
अन्दर एक मीठा झूठ लिये
हम सच को धोखा लिख बैठे ....

हम लिख बैठे अँधेरे में
तन्हा एक ज्योति दीवाली की..
लिख गए तड़प उस सजनी की
जो पिया से मिलने वाली थी....
बाँहों में एक एहसास लिये
हम नाम किसी का लिख बैठे
दिल को धड़कन की कसमें दे
हम काम किसी का लिख बैठे..||

लिख बैठे चंद लकीरों से
रुसवा एक सच की उम्मीदें
लिख बैठे उनका अक्स लिये
कुछ जागी जागी सी नींदें...
अपने बेबस अल्फाजों से
पैगाम किसी को लिख बैठे ..
उनके लम्हों के सज्दें में
हर शाम उन्ही को लिख बैठे ..||