Wednesday, December 8, 2010

मेरा परिचय




मैं राहों से 'अनजानचला
एक 'पथिक' ज़रा आवारा हूँ.
मैं पाशों से उन्मुक्त स्वयं की
मति-कृति का रखवारा हूँ.

मैं हूँ ऊषा की अरुण लाली
जो तम को पल में चीर दे,
मै हूँ जल का वह सरस प्रवाह
जो प्यासों को भी नीर दे..


है कहीं राह कोई नियत मेरी
जो मुझको  पास बुलाती है
पग कितने ही हो क्लांत मेरे
कर विवश मुझे चलवाती है
उन राहों का हो अंत जहाँ
उस अंत का मैं अन्वेषी हूँ
जिन भावो में सद्भाव भरा
उन भावो का संप्रेषी हूँ

पाताल की न है सुध मुझको
न स्वर्ग की मुझको अभिलाषा
बस चाह कि बोले निखिल विश्व
वसुधैव कुटुम्बकम की भाषा

जो करना ,वो है कर्म मेरा;
जो सोचूँ,वो है मर्म मेरा,
जो बाँटू,बिखराऊं जग में 
मैं  ख़ुशी ,वही है धर्म मेरा

उत्ताल लहर मैं सागर की,
दरिया का एक किनारा हूँ.
अनगढ़ माटी का पुंज नहीं
भावो का एक पिटारा हूँ..

मैं राहों से 'अनजान' चला
एक 'पथिक' ज़रा आवारा हूँ.
मैं पाशों से उन्मुक्त स्वयं की
मति-कृति का रखवारा हूँ.


                                                 -निखिल श्रीवास्तव
                                                   (अनजान पथिक)

5 comments:

  1. once again nicely written....font size increase kro...:))

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  2. yaar increase karke post kiya tha but aaya hi nhi...
    by d way ..thnks once again

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  3. nikhil sahab ....kya introduction h ...wah...

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  4. I think u are going to add one more name to learn "jivan parichay" in the syllabus of students of hindi......

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  5. @anuj.
    maana hai manzil door magar ,
    chalne ki maine thaani hai.
    jab tak jeevan na jee lo mai
    mujhe maut kahan tab aani hai...

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