ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा
...कि जितना ढकता हूँ खुद को
उतना ही खुलता जाता हूँ ...||
करता हूँ कोशिश हर बार
छू लूँ तुझे चुपके से मैं ,
एक बार तो जी लूँ ज़रा |
कुछ बूँदें तेरी बारिश की
मीठी सी मैं पी लूँ ज़रा ||
पर कैसी ना जाने प्यास ये
कि जितना बरसता है बादल
उतना तरसता जाता हूँ..||
जिंदगी ये आँचल कैसा है तेरा...
हर एक टुकड़ा कतरा कतरा
महफूस करने की है जिद ...
लम्हों के सारे ये मोती
रखता हूँ दिल से बाँधकर|
कहीं खो ना जाये कुछ अपना
इस बात का लगता है डर|
पर ना जाने धागे ये
कैसे अजब से है तेरे
कि जितना बाँधता हूँ इन्हें
उतना ही बिखरता जाता हूँ| ....
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा.....
कितने समाये रंग तुझमें
सबकी अलग अपनी अदा
रंगीन सब मौसम तेरे
रंगीन तेरी हर फिजा...
पर ये कैसे रंग तेरे..
कुछ में कभी सँवरता हूँ
तो कुछ में खुद ही गुम हो जाता हूँ
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा....
है दरिया तू बहता हुआ
थामे हुए हर छोर को
चुप्पी से पी जाता है तू
हर उफनते शोर को ..
जो मैं किनारे पर खड़ा
तो कुछ मज़ा आता नही
लहरों का लेने को मज़ा
खुद को डुबाता जाता हूँ..
पर ना जाने दरिया का उसूल कैसा ये गजब
कि जितना जाता अन्दर हूँ,उतना उबरता जाता हूँ |
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा .......
...कि जितना ढकता हूँ खुद को
उतना ही खुलता जाता हूँ ...||
करता हूँ कोशिश हर बार
छू लूँ तुझे चुपके से मैं ,
एक बार तो जी लूँ ज़रा |
कुछ बूँदें तेरी बारिश की
मीठी सी मैं पी लूँ ज़रा ||
पर कैसी ना जाने प्यास ये
कि जितना बरसता है बादल
उतना तरसता जाता हूँ..||
जिंदगी ये आँचल कैसा है तेरा...
हर एक टुकड़ा कतरा कतरा
महफूस करने की है जिद ...
लम्हों के सारे ये मोती
रखता हूँ दिल से बाँधकर|
कहीं खो ना जाये कुछ अपना
इस बात का लगता है डर|
पर ना जाने धागे ये
कैसे अजब से है तेरे
कि जितना बाँधता हूँ इन्हें
उतना ही बिखरता जाता हूँ| ....
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा.....
कितने समाये रंग तुझमें
सबकी अलग अपनी अदा
रंगीन सब मौसम तेरे
रंगीन तेरी हर फिजा...
पर ये कैसे रंग तेरे..
कुछ में कभी सँवरता हूँ
तो कुछ में खुद ही गुम हो जाता हूँ
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा....
है दरिया तू बहता हुआ
थामे हुए हर छोर को
चुप्पी से पी जाता है तू
हर उफनते शोर को ..
जो मैं किनारे पर खड़ा
तो कुछ मज़ा आता नही
लहरों का लेने को मज़ा
खुद को डुबाता जाता हूँ..
पर ना जाने दरिया का उसूल कैसा ये गजब
कि जितना जाता अन्दर हूँ,उतना उबरता जाता हूँ |
ज़िन्दगी ये आँचल कैसा है तेरा .......
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