अनजान पथिक
दरिया सी ज़िन्दगी पे सदके हज़ार जानें , मुझको नहीं गँवारा साहिल की मौत मरना ||
Monday, November 18, 2013
कितना अच्छा होता,काश !!
कितना अच्छा होता,काश !!
अपनी जिंदगी की हथेली की ,
किसी घुमावदार सी लकीर में ,
मैं लिख के छिपा देता तुमको - वक्त की मेहँदी से |
ताउम्र तुम रचती जाती मुझमें ||
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव)
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment