Wednesday, September 7, 2011

प्यास


अंधेरों में भागता रहा,
रोशनी को ढूँढने||
सोचा ,
हकीकत की लौ तेज हो जाएगी
सपनों का घी डालने से |
उलझ गया खुद,
हाथों की उलझी लकीरों को सुलझाते -सुलझाते|
शर्त भी लगायी तो उस खुदा से 
जिसको हारना नहीं मंज़ूर |

घोंसलों को आशियाँ बनाकर 
चाहा आसमान छूँ लूँ |
चौखट भर की रोशनी लेकर
सुबह करने की हसरत पाली |
अपनी ही आवाजें अनसुनी कर
सुनता रहा क्या क्या नहीं???
देखकर भी अनदेखा किया हर सच ,
निगाहों को ख्वाबों की दहलीज़ से आगे,
 बढ़ने ही नहीं दिया ||
हर बार कुछ नया लिखता गया यूँ ही
लिखे हुए को बदलने की चाह में |
अकेले चलते चलते
तलाशता रहा काफिले के निशाँ |  
खाता रहा चोट ये सोच ,
कि नये ज़ख्म भुला देंगे पुराने दर्द को ...| 
हटाता रहा बादलों को आँगन में बरसने से
कि कहीं फिर से गीली मिट्टी
सौंधी सी खुशबू लेकर
 ज़हन में ताज़ा ना कर दे कुछ |
ख्वाब इतने देखे की नींदें
थक गयी |
कई बार हुआ ऐसा
जब पता भी नहीं चला
कि कितनी बार ये चोर सुबह
रात का चाँद निगल गयी|

जिंदगी की फटी जेबों  से गिरता रहा वक़्त
बिना आवाज़ किये||
अब जब पीछे देखता हूँ तो लगता है,
कितना लम्बा सफ़र तय कर लिया  !!!
यूँ गँवाते-गँवाते ,
शायद अब पाने की बारी होगी ..
शायद अब पाने की बारी होगी || 
प्यास बहुत लगी है...||
ये प्यास यूँ ही नहीं मिटेगी ||
देखता हूँ किस मोड़ पर मिलेगी जिंदगी 
 हाथ में कुछ मेरे अपने वक़्त की बूँदें लिये |
शायद तब प्यास बुझे मेरी..
कहीं ना कहीं कोई बहता दरिया तो होगा ही..||

1 comment:

  1. प्यास बहुत लगी है..
    ये प्यास यूँ ही नहीं मिटेगी
    देखता हूँ किस मोड़ पर मिलेगी जिंदगी
    हाथ में कुछ मेरे अपने वक़्त की बूँदें लिये |
    शायद तब प्यास बुझे मेरी..
    कहीं ना कहीं कोई बहता दरिया तो होगा ही..||

    Life is Just a Life
    .

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