Monday, April 23, 2012

भूख --एक सपना ..,हकीकत सा....



ए मेरे चंदा ,कर दो तुम कुछ ऐसा 
कि आज बाद तुमको केवल पूजता रहूँ 
मत रात भर जागो 
मत बांटो चाँदनी 
रहने दो रात को अकेला ,तनहा ...
सन्नाटों के कंधे पे भी,,,, सिर तो रख सकती है वो ...
वो कह सकती है अँधेरे सेमुझको बाहों में भर लो..||

पर  उतरो मेरी ज़मीं ,
देखो ये सहमी सडकें ,ये ऊंघती गली .....
इनमें जागते है कुछ बच्चे 
जो रात भर तकते हैं तुमको ,
भूखी निगाहों  से .
सिकोडें पैरों को ..
समेटे पेट में कई परतें भूख की  ...
लगाये यही  आस  
कि आज चाँद उतरेगा 
रोटी का एक टुकड़ा  बनकर ..||
और फिर सदियों बाद ..
कोई नर्म नर्म हाथों से सहलायेगा वो पेट 
जिनको मालूम ही नहीं ..
"पेट भरना" होता क्या ....????


उनसे कुछ न कहना तुम ..
कोई खिलौना मत देना ..
उनको कौवा ,हाथी ,घोडा इन सबका हवाला देकर भी मत खिलाना तुम..
जैसे खिलाती थी तुम्हारी नानी ,माँ,और दादी  ...||
बस प्यार से खुद को परोस देना ,
 रोटी का टुकड़ा बनाकर ,
वो जिंदगी समझकर खा लेंगे ....

ज्यादा शौक करने की आदत नहीं होती उनको ...||

बस दिला दो उन्हें यकीं ..
कि उनके लिए भी यहाँ जीता है कोई ...||
बस एक एहसास कि जब सोते है वो  
रात में ..भूखे पेट 
तब चाँद आता है... सपनों में उन्हें खाना खिलाने ..
रात आती है लोरी सुनाने ...
और चहरे पे हलकी थपकियाँ देती है ये जिंदगी ..
जिससे  मुस्कुराएं वो,सुकूं से सो जायें वो ...


....ताकि कोई भी मेरी सड़क ,
मेरी गली ,मेरी ज़मीं  ...
कभी फिर भूखा न सोये...||
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ए मेरे चंदा 
 बस कर दो तुम कुछ ऐसा...
ताकि जिंदगी भर केवल तुमको पूजता रहूँ....|| 

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