Monday, September 9, 2013

"बहुत अच्छी है वो तुमसे" --


"बहुत अच्छी है वो तुमसे" --
सब कहते है ...||
बेशक, सच भी यही है .... |

"पर इबादत दो बराबर के लोगों में होती भी कब है ....??"

जहाँ तक जानता हूँ- ...
इबादत का सलीका है  ...
कि एक किरदार हो  जो इबादत करने का जूनून रखता हूँ ..--
- वो मैं हूँ...
और दूजा वो जो पूजे जाने की काबिलियत रखता हो ...
-वो तुम हो ...||

-मैं तो कब से कहता हूँ -"इश्क इबादत है" ..||

इश्क इस उम्मीद में नहीं होता --...
कि दो लोग रहेंगे किसी 'बैलेंस्ड तराज़ू' के दो पलडों कि तरह  .....
 
इश्क होता है इस यकीन पर ....
कि दो रूहें अगर रख  दी जायें ..
फलक के दो उलटे सिरों पे भी ....
तो फलक को  खुद सिमटना पड़ जायेगा उन्हें मिलाने के लिए .....

-----------------------------------
कभी कभी मैं सोचता हूँ -
मैं खुद को खुश करने के लिए कितनी  अच्छी बातें करता रहता  हूँ ...

पर सच मुझे भी मालूम है -
कि सब सही कहते हैं ....
"वो मुझसे बहुत अच्छी है .."||
                                                       -अनजान पथिक 
                                                      (निखिल श्रीवास्तव )

No comments:

Post a Comment