Thursday, August 29, 2013

रात इक बच्ची ...

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रात की ये छोटी सी बच्ची ...
रोज चली आती  है मेरे पास  ....
तुम्हारे किस्से सुनने ...|

मैं भी ऊँगली थाम के इसकी ....
रोज दिखाने ले जाता हूँ...
वही बेमंजिल से ख्वाहिशों के किनारे ...
जो हमारे सपनों के दरिया से सटकर बहा करते हैं  ...
जिनपर हाथों में हाथ थामे हम  ..
मीलों से मीलों तक  ... 
सदियों सदियों चला करते हैं  ...||

उन किनारों पे बिखरी है गीली सी रेत...
जिसके दाने दाने पर लिखकर तुम्हारा नाम ...
मैं अमर कर आया था अपनी रूह की दीवानगी...

वक्त जब भी आता है ..
उन किनारों पर टहलने ..".खाली वक्त में ..."
तुम्हारे क़दमों के निशाँ , हैं जहाँ जहाँ भी  ..
वहाँ पे सजदे करता गुज़रता है ...||

मैं रात को बताता चलता हूँ ...
वो सारी बातें ...
जो मेरे तेरे बीच शायद कही कभी नहीं गयी ...
उन्हें  सुना गया बस ..फूल की खुशबू की तरह ..
और समझा गया शराब के नशे की तरह ..||

और आखिर में जब रात को भी आने लगती है नींद .
और वो मलने लगती है अपनी अधखुली आँखें ...
अँधेरे की नन्ही नन्ही उँगलियों से ...
मैं सुला देता हूँ उसे ...
उसके माथे पर देकर एक ठंडा सा बोसा..(बोसा =kiss)

वो सो जाती है मेरी आँखों में ही ... मेरी पलकों के नीचे ...

और मैं बंद करके अपनी आँखें 
ओढ़ लेता हूँ लिबास नींद का ..
क्योंकि सोने  से ही  शुरू होता  है ....
तेरे खवाबों में जागने का सफर  ..||

मैं निकल पड़ता हूँ ...फिर से 
तुम्हारे साथ ..उन्ही ख्वाहिशों के किनारों पे ...
जो सपनों के दरिया से सटकर बहा करते है 
जिनपर हाथों में हाथ थामे हम  ..
मीलों से मीलों तक .. 
सदियों सदियों चला करते हैं  ...||

क्योंकि 
रात की ये छोटी सी बच्ची ...रोज चली आती  है मेरे पास  ....
तुम्हारे किस्से सुनने ...
रोज रखना होता है मुझे एक बच्ची का दिल ..

क्योंकि बच्चे सच में होते है फ़रिश्ते 
और फरिश्तों का दिल तोडना अच्छा नहीं होता ..||

                                                       अनजान पथिक 
                                                     (निखिल श्रीवास्तव )

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