संग मुझको भी चलने तो दे ||
हडबड़ में न जाने कितने
लम्हों को यूँ ही भुला दिया,
जो ख्वाब कभी जागे मन में
संग तेरे उनको सुला दिया ,
है तड़प बची उन ख्वाबों कि
उसमे तड़प जलने तो दे
ऐ वक़्त धीरे चल ज़रा
संग मुझको भी चलने तो दे ||..
चाहा हरदम हर पल जिसको
जो अब तक पास नही आया ,
मेरा हर रंग हर ढंग मेरा
जिसको अपना न कह पाया |
बिखरा हूँ मैं यूं जिसके बिन
जिस बिन जानूं मैं हूँ आधा ,
उस आधे से अपनेपन की
तू कमी ज़रा खलने तो दे ||
ऐ वक़्त धीरे …………….
जब होठों के चौबारे से
धीरे से दिल ने मुस्काया ,
जब सपनों के गलियारे से
कोई ख्वाब मुझे मिलने आया ,
जब प्यास बुझी उन बूंदों की
जो बरसी आँखों से गिरकर
जब ख़ुशी मिली हर ख्वाहिश को
थोडा हँसकर ,थोडा डरकर |
उस ख़ुशी भरे हर लम्हे को .
इस ज़हन में तू पलने तो दे ||
ऐ वक़्त धीरे ……
तनहा चलते -चलते थककर
इन पाँवों ने चलना छोड़ा,
अब तो लगता है राहों से
भी मंजिल ने है मुँह मोड़ा
लगता गूंगी किस्मत मेरी
मुझसे सब कुछ कह जाती है ,
पर फिर भी है एक बात
जो शायद मन में ही रह जाती है-
कि माना साँचे में रखकर
तू देता है आकार नये ,
पर मुझको भी एक बार तू
साँचे में अपने ढलने तो दे ||
ऐ वक़्त धीरे ……..
अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
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mazzaaaaaaaa aa gaya...............:)
ReplyDeletehearty...thankxxxx...
ReplyDeleteMujhe pata nahi tha tu itna accha likhta hai...
ReplyDelete'Pagal' bhi bahut hi marmik lagi.
Keep writing!
You've earned a new customer :P.
@dheeraj....thnx bhai.....just keep blessing me....
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