मुझे अच्छे से याद है, मैं तब तीसरी क्लास में था ,वो मेरी क्लास में नई-२ ही आई थी |एक शांत सी,अजीब सी और सबसे अलग लगने वाली लड़की ,नाम -'कविता भाटिया'|परिचय में केवल इतना ही बताया गया था कि इसकी दिमागी हालत थोड़ी अजीब है ,और हम सबके हिसाब से ये' पागल' है -ऐसा हम सबने मान लिया था | "पागल "-शायद यही शब्द सही बैठेगा हमारी सोच को सही मनवाने के लिए|पूरी क्लास में किसी ने भी उसके साथ बैठने में रूचि नहीं दिखाई||उसको समझना या समझाना दोनों ही काम काफी टेढ़ी खीर थे|मैम लोगो को भी उसके लिए ऐसी जगह चुननी थी जहाँ से वो हर पल उसपर नज़र रख सकें |अंततोगत्वा उसे उन्होंने अपनी मेज़ के आगे वाली बेंच पर बैठा दिया|उस बेंच के दूसरे कोने पर बैठता था मैं क्योंकि मैं मॉनिटर था|
न जाने मैम लोगों को क्या सूझी थी ,लेकिन जो भी हुआ शुरुआत में मुझे बहुत ख़राब लगा ,मेरे एक दोस्त को उठाकर दूसरी जगह भेज दिया गया था |मुझे गुस्सा भी लगी उनके ऊपर कि कहाँ इसे बैठा दिया मेरे पास में !!! न बोलेगी न समझेगी |ऊपर से मुझसे कहा गया कि उसको देखे रहना |फिर क्या ,बैठना पड़ा उसके पास बेमन से..| वो कुछ साफ़ नहीं कह पाती ,शायद सुनने और समझने में भी यही हाल था ,मैं कुछ बोलता तो पता नहीं कुछ सुनती भी थी कि नहीं |मैं एक ओर अपना काम करता रहता और दूसरी ओर वो अपनी कॉपी पर उगलियाँ फिराती रहती या सोती रहती,उसे पता था कि उसके हिस्से का सारा काम मुझे ही करना है|
कुछ दिन तक तो मैं खीझता रहा ,बात न के बराबर हुई ..पर न जाने कैसे धीरे-धीरे हमारी बोलचाल होने लगी|दोनों लोग बिना ज्यादा बोले एक दूसरे को अपनी बात समझा देते थे|कभी कभी मुझे लगता कि कितना स्वार्थी था मैं जो किसी की मदद करने में इतना छोटा हुआ जा रहा था,लेकिन बाद में अपनी अच्छाई के गुरूर में सब भूल जाता था |लंच के समय दोनों साथ खाते ,मैं क्लास में उसका सारा काम करता ,कभी-२ मेरी किसी बात पर वो हँसती भी थी (न जाने सच में मेरी बात उसे हँसाती थी या उसका पागलपन,पर उसका हँसना ज्यादा बड़ी बात थी !! )कोई और दोस्त तो था नहीं उसका ,तो मुझसे ठीक ठाक दोस्ती हो गई थी |वक़्त बीतता गया ,धीरे धीरे सत्र का अंत आ गया,वार्षिक परीक्षाओं ने दस्तक दे दी |कुछ दिन बाद परिणाम आया और जैसा सबको आशा थी- वो सब विषयों में फेल थी|इसमें कोई अचरज वाली बात भी नहीं थी क्योंकि वो लिख पाती ही नहीं थी तो पास कहाँ से होती??
उसके पापा स्कूल बुलाए गए| न जाने प्रिंसिपल ने उनसे क्या कहा, पर वो बहुत गुस्सा हो गए|संभवतः मैम ने उस लड़की की दिमागी हालत और पढाई को लेकर कुछ बोल दिया था, गलती उनकी भी नहीं थी,लेकिन आखिरकार एक पिता का ह्रदय बाहर से चाहे जितना ही कठोर दिखे ,अन्दर से रुई के जैसा मुलायम होता है...और वो ह्रदय अपनी बेटी के बारे में ये सब सुन नहीं पाया |तनातनी बड़ गई और गुस्से में उन्होंने भी कुछ बुरा भला बोल दिया|बात इतनी बढ गई कि स्कूल से उस लड़की को निकालने कि नौबत आ गई |उसके पापा ने उससे तुरंत चलने को कहा ...
हम सब ये दृश्य गौर से देख रहे थे क्योंकि इसकी चर्चा सब अपने घरों में करने वाले थे ,पर इसके बाद जो हुआ वो शायद मैंने ही देखा ,मैंने ही महसूस किया और यही कारण है कि आज मै ये लिखने को मजबूर हूँ -उस लड़की ने बस्ता कन्धों पर टाँगा,सिर को झुकाए हुए मेरी ओर मुड़ी ,और तब तक मैं महसूस कर चुका था कि उसकी आँखों में आँसूं थे|अपने कांपते हुए हाथ मेरी ओर बढाये, मेरे हाथ को पकड़ कर थोडा सा झुकी और अपने माथे को मेरे हाथों पे एक पल के लिए टिका दिया ,फिर ऊपर उठी और बोली- "बाय ",और अगला शब्द जो उसने अपनी लडखडाती भाषा में बोला, वो था-"थैंक्स " |
एक पल के लिए मैं सुन्न हो गया , एकदम अचेत ,जब दोबारा जगा तब तक आँखें नम हो चुकी थी|उसके पापा ने फिर से आवाज लगाई -"बेटा चलो " और वो चल पड़ी |मैं कुछ बिना समझे बस देखता ही जा रहा था ,एक बार वो पीछे मुड़ी,और रोती हुई आँखों से फिर अलविदा के इशारे में हाथ हिलाया ,जवाब मेरे हाथ ने भी दिया ,पर आँखें भी संग बोल पड़ी .. |कोई जान न पाए इसलिए मैंने चुपके से आँसुओं को पोछा वरना बाद में सब "रोत्लू" कहकर चिढाते | वो जाती रही ,मैं देखता रहा ,आँखें बहती रही ,होठ शांत थे...सब अपने काम में मग्न..और धीरे-२ वो ओझल हो गई ..|
उस पूरे दिन बस वही पल आँखों के सामने से गुज़रता रहा ,और बार बार मैं यही सोचता रहा कि क्या हुआ !!!!जिसको आजतक मैं एकदम संवेदनाशून्य मानता था ,जिसे मदद का एक पात्र समझता रहा,जिसके लिए शायद कभी कोई बड़ा काम नहीं किया वो आज विदा होते होते इतनी बड़ी याद कैसे दे गया|इतने सारे बोलते,सुनते, समझते लोगो के विदा होने पे उतना दुःख क्यों नहीं हुआ जितना आज उसने बिन बोले विदा होकर दे दिया |ऐसा नहीं है कि मेरे दिल में उसके लिए कुछ कभी रहा हो...लेकिन जाते जाते उसका वो एक "थैंक्स " आज भी मेरे कानों में पड़े उन सबसे प्यारी बातों में से है जो मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में सुनी है |आज इस बात को कई साल बीत गए कई लोग मिले ,कई अच्छे लगे,कई को मैं अच्छा लगा..लेकिन कभी वैसा दोबारा नहीं हुआ...||||
इस पूरी भीड़ भरी दुनिया में बोलने के लिए तो हम सब बहुत बोलते हैं,लेकिन बिन बात कहे अपनी छाप छोड़ जाने वाले लोगो कि शायद अभी कमी है...|शायद हम ही कमज़ोर है जो हर बात को सुनकर ही समझ पाते है|और इसलिए कभी-२ मन करता है कि इनसे अलग कही दूर चला जाऊं..................
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न जाने मैम लोगों को क्या सूझी थी ,लेकिन जो भी हुआ शुरुआत में मुझे बहुत ख़राब लगा ,मेरे एक दोस्त को उठाकर दूसरी जगह भेज दिया गया था |मुझे गुस्सा भी लगी उनके ऊपर कि कहाँ इसे बैठा दिया मेरे पास में !!! न बोलेगी न समझेगी |ऊपर से मुझसे कहा गया कि उसको देखे रहना |फिर क्या ,बैठना पड़ा उसके पास बेमन से..| वो कुछ साफ़ नहीं कह पाती ,शायद सुनने और समझने में भी यही हाल था ,मैं कुछ बोलता तो पता नहीं कुछ सुनती भी थी कि नहीं |मैं एक ओर अपना काम करता रहता और दूसरी ओर वो अपनी कॉपी पर उगलियाँ फिराती रहती या सोती रहती,उसे पता था कि उसके हिस्से का सारा काम मुझे ही करना है|
कुछ दिन तक तो मैं खीझता रहा ,बात न के बराबर हुई ..पर न जाने कैसे धीरे-धीरे हमारी बोलचाल होने लगी|दोनों लोग बिना ज्यादा बोले एक दूसरे को अपनी बात समझा देते थे|कभी कभी मुझे लगता कि कितना स्वार्थी था मैं जो किसी की मदद करने में इतना छोटा हुआ जा रहा था,लेकिन बाद में अपनी अच्छाई के गुरूर में सब भूल जाता था |लंच के समय दोनों साथ खाते ,मैं क्लास में उसका सारा काम करता ,कभी-२ मेरी किसी बात पर वो हँसती भी थी (न जाने सच में मेरी बात उसे हँसाती थी या उसका पागलपन,पर उसका हँसना ज्यादा बड़ी बात थी !! )कोई और दोस्त तो था नहीं उसका ,तो मुझसे ठीक ठाक दोस्ती हो गई थी |वक़्त बीतता गया ,धीरे धीरे सत्र का अंत आ गया,वार्षिक परीक्षाओं ने दस्तक दे दी |कुछ दिन बाद परिणाम आया और जैसा सबको आशा थी- वो सब विषयों में फेल थी|इसमें कोई अचरज वाली बात भी नहीं थी क्योंकि वो लिख पाती ही नहीं थी तो पास कहाँ से होती??
उसके पापा स्कूल बुलाए गए| न जाने प्रिंसिपल ने उनसे क्या कहा, पर वो बहुत गुस्सा हो गए|संभवतः मैम ने उस लड़की की दिमागी हालत और पढाई को लेकर कुछ बोल दिया था, गलती उनकी भी नहीं थी,लेकिन आखिरकार एक पिता का ह्रदय बाहर से चाहे जितना ही कठोर दिखे ,अन्दर से रुई के जैसा मुलायम होता है...और वो ह्रदय अपनी बेटी के बारे में ये सब सुन नहीं पाया |तनातनी बड़ गई और गुस्से में उन्होंने भी कुछ बुरा भला बोल दिया|बात इतनी बढ गई कि स्कूल से उस लड़की को निकालने कि नौबत आ गई |उसके पापा ने उससे तुरंत चलने को कहा ...
हम सब ये दृश्य गौर से देख रहे थे क्योंकि इसकी चर्चा सब अपने घरों में करने वाले थे ,पर इसके बाद जो हुआ वो शायद मैंने ही देखा ,मैंने ही महसूस किया और यही कारण है कि आज मै ये लिखने को मजबूर हूँ -उस लड़की ने बस्ता कन्धों पर टाँगा,सिर को झुकाए हुए मेरी ओर मुड़ी ,और तब तक मैं महसूस कर चुका था कि उसकी आँखों में आँसूं थे|अपने कांपते हुए हाथ मेरी ओर बढाये, मेरे हाथ को पकड़ कर थोडा सा झुकी और अपने माथे को मेरे हाथों पे एक पल के लिए टिका दिया ,फिर ऊपर उठी और बोली- "बाय ",और अगला शब्द जो उसने अपनी लडखडाती भाषा में बोला, वो था-"थैंक्स " |
एक पल के लिए मैं सुन्न हो गया , एकदम अचेत ,जब दोबारा जगा तब तक आँखें नम हो चुकी थी|उसके पापा ने फिर से आवाज लगाई -"बेटा चलो " और वो चल पड़ी |मैं कुछ बिना समझे बस देखता ही जा रहा था ,एक बार वो पीछे मुड़ी,और रोती हुई आँखों से फिर अलविदा के इशारे में हाथ हिलाया ,जवाब मेरे हाथ ने भी दिया ,पर आँखें भी संग बोल पड़ी .. |कोई जान न पाए इसलिए मैंने चुपके से आँसुओं को पोछा वरना बाद में सब "रोत्लू" कहकर चिढाते | वो जाती रही ,मैं देखता रहा ,आँखें बहती रही ,होठ शांत थे...सब अपने काम में मग्न..और धीरे-२ वो ओझल हो गई ..|
उस पूरे दिन बस वही पल आँखों के सामने से गुज़रता रहा ,और बार बार मैं यही सोचता रहा कि क्या हुआ !!!!जिसको आजतक मैं एकदम संवेदनाशून्य मानता था ,जिसे मदद का एक पात्र समझता रहा,जिसके लिए शायद कभी कोई बड़ा काम नहीं किया वो आज विदा होते होते इतनी बड़ी याद कैसे दे गया|इतने सारे बोलते,सुनते, समझते लोगो के विदा होने पे उतना दुःख क्यों नहीं हुआ जितना आज उसने बिन बोले विदा होकर दे दिया |ऐसा नहीं है कि मेरे दिल में उसके लिए कुछ कभी रहा हो...लेकिन जाते जाते उसका वो एक "थैंक्स " आज भी मेरे कानों में पड़े उन सबसे प्यारी बातों में से है जो मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में सुनी है |आज इस बात को कई साल बीत गए कई लोग मिले ,कई अच्छे लगे,कई को मैं अच्छा लगा..लेकिन कभी वैसा दोबारा नहीं हुआ...||||
इस पूरी भीड़ भरी दुनिया में बोलने के लिए तो हम सब बहुत बोलते हैं,लेकिन बिन बात कहे अपनी छाप छोड़ जाने वाले लोगो कि शायद अभी कमी है...|शायद हम ही कमज़ोर है जो हर बात को सुनकर ही समझ पाते है|और इसलिए कभी-२ मन करता है कि इनसे अलग कही दूर चला जाऊं..................
hridyashparshi lekh hai.... ek pal ko toh mujhe laga ki aage kya hua hoga par tabhi purnviram dikha.... I think u never met her again?
ReplyDeleteSoumya Sheel Singh
no cmments for this my dear............
ReplyDelete@soumyasheel...bhaiya thnku....aapne ye pdha...tht is really enuf fr me...i nvr expectd ki aap pdh loge...
ReplyDeleten haan i nvr met tht grl again..i jst wish 2 meet her 2 say a big thnx 2 her ....
@himanshu...thts a big complement bhaiji..
nice work.. seems like that incident touched u so hard. we should definitely respect each and every person that we meet in our journey of life. but the difference is that u learnt it quite early and i am still trying.
ReplyDelete@paras...evrythng hppns just on its tym ..may be it ws appropriate fr me 2 learn so early...there r so many other things 2 learn .....which i m trying even...
ReplyDeleteDnt knw if u knw me...i m shitanshu's brother...bahut hi badhiya likha hai...really lookin forward to see more from ur pen...keep it up...aur sach bolu toh kahi na kahi is lekh ki bhasha aur shaili tumhare deendayali hone ka parichay deti hai....nice work
ReplyDeleteHimanshu Tiwari
nikhil i am very happy that my classmates are doing good job in filed of hindi literature.congrats and hope so that we will make our country better with the pen & paper. keep it up
ReplyDelete@himanshu..thnx alot bhaiya ...i knw u...aap merchant navy mein the na...shitanshu se n deepak ji se aapke baare mein suna tha....just bless me...
ReplyDelete@ashish...thnx bhai ....jst keep ur blessings wid me...i will keep going...
Thanks
ReplyDeleteKavita