एक रात ने दस्तक दी , दरवाजे पर,,
कुछ लायी थी मेरे लिए,
अपने दामन में|
खिड़की के बाहर खड़े होकर,
बुलाया एक इशारे से..
और बिखेर दी आब-ओ-हवा में
सुबह थोड़ी सी...
हूबहू तुम्हारी तरह ,
नाज़रीन सी,शोख सी...||
परिंदों के शोर की
पायल पहनी थी उसने
जितना इतरा के चलती ,उतनी छन -छन करती ...||
फलक के आईने में बार-बार, अपना अक्स देखकर
सज रही थी वो (सुबह) ,
जैसे तुम सजा करती हो अक्सर
ड्रेसिंग टेबल के सामने ..
दांतों में क्लिप दबाकर
बालों को गर्दन के पीछे करके.....
पहले रात की काली परत उतारी
फिर थोड़ी कच्ची सी धूप मली गालों पे ,
परत दर परत नूर बिखरता जाता है
रंग निखरता जाता है...|
बार -बार,,अपनी बादल जैसी जुल्फों को
हटाती है अपने होठों से ,
ये नादान लटें एक भी मौका नही छोडती
उसके लबों को छूने का...
फिर ना मानने पर
एक ऊँगली में घुमाकर ,पीछे ले जाती है इन्हें कान के..
सच बताओ.. तुमने ही सजना सिखाया है ना इसे...??
कुछ दूर मकानों की एक बस्ती के पीछे तभी एक सूरज दिखा ,
एडियों पे खड़ा होकर उचकता हुआ..
मुझे हाथ हिलाकर "गुड मॉर्निंग" कहता हुआ
वैसे ही जैसे हर सुबह तुम कहती हो...एक दिलनशीं अंदाज़ में..
उस सुबह का हर एक झोंका छूता था तो लगता था
जैसा अपनी साँसों से छू लिया हो तुमने .
फिर एक सिहरन सी मच जाती थी सिर से पाँव तलक
लगता था जैसे तुम्हारा वो ठंडा सा आँचल अभी अभी
गुज़रा हो मेरे होठों को छूता हुआ...सिर के ऊपर से.फिसलता हुआ.......
फिर ये बादलों को संवारती है ,हर एक सिलवट को सुधारते हुए
जैसे तुम सँवारा करती थी सिकुड़नें अपनी साडी की ...
सचमुच ये तुम्हारी हमशकल ही तो है
इसलिए रोज़ सुबह के बहाने मिलने आ जाता हूँ तुमसे
मालूम है ,कि इससे कुछ ख्वाबों की बस्तियां जल जाती है
लेकिन हकीकत की कुछ तो कीमत होती है ना.........
कुछ लायी थी मेरे लिए,
अपने दामन में|
खिड़की के बाहर खड़े होकर,
बुलाया एक इशारे से..
और बिखेर दी आब-ओ-हवा में
सुबह थोड़ी सी...
हूबहू तुम्हारी तरह ,
नाज़रीन सी,शोख सी...||
परिंदों के शोर की
पायल पहनी थी उसने
जितना इतरा के चलती ,उतनी छन -छन करती ...||
फलक के आईने में बार-बार, अपना अक्स देखकर
सज रही थी वो (सुबह) ,
जैसे तुम सजा करती हो अक्सर
ड्रेसिंग टेबल के सामने ..
दांतों में क्लिप दबाकर
बालों को गर्दन के पीछे करके.....
पहले रात की काली परत उतारी
फिर थोड़ी कच्ची सी धूप मली गालों पे ,
परत दर परत नूर बिखरता जाता है
रंग निखरता जाता है...|
बार -बार,,अपनी बादल जैसी जुल्फों को
हटाती है अपने होठों से ,
ये नादान लटें एक भी मौका नही छोडती
उसके लबों को छूने का...
फिर ना मानने पर
एक ऊँगली में घुमाकर ,पीछे ले जाती है इन्हें कान के..
सच बताओ.. तुमने ही सजना सिखाया है ना इसे...??
कुछ दूर मकानों की एक बस्ती के पीछे तभी एक सूरज दिखा ,
एडियों पे खड़ा होकर उचकता हुआ..
मुझे हाथ हिलाकर "गुड मॉर्निंग" कहता हुआ
वैसे ही जैसे हर सुबह तुम कहती हो...एक दिलनशीं अंदाज़ में..
उस सुबह का हर एक झोंका छूता था तो लगता था
जैसा अपनी साँसों से छू लिया हो तुमने .
फिर एक सिहरन सी मच जाती थी सिर से पाँव तलक
लगता था जैसे तुम्हारा वो ठंडा सा आँचल अभी अभी
गुज़रा हो मेरे होठों को छूता हुआ...सिर के ऊपर से.फिसलता हुआ.......
फिर ये बादलों को संवारती है ,हर एक सिलवट को सुधारते हुए
जैसे तुम सँवारा करती थी सिकुड़नें अपनी साडी की ...
सचमुच ये तुम्हारी हमशकल ही तो है
इसलिए रोज़ सुबह के बहाने मिलने आ जाता हूँ तुमसे
मालूम है ,कि इससे कुछ ख्वाबों की बस्तियां जल जाती है
लेकिन हकीकत की कुछ तो कीमत होती है ना.........
वह क्या अद्भुत चित्रण किया है आपने ?
ReplyDeletedhanyawaad neeraj ji.....
ReplyDeleteसचमुच अद्भुत - लाजवाब
ReplyDeletenice one.. :)
ReplyDelete@rakesh ji..dhanyawaad...
ReplyDelete@akshie...thnkuuuu
'Ek subah tere jaise'
ReplyDeleteJaane 'kab' subah hogi wo jab mujhe bhi kuch aisa ehsaas hoga....
Janne 'kya' subah hogi wo jab uske mann main bhi kuch aisa he khaas hoga....
Ab kya kahu main isse jayada....
No wordz to explain 'My feelings' after reading these lines....
Really fabulous 'Anjaan Pathik'
'Lekin "hakeekat" ki kuch to "keemat" hoti hai naa'
:)....Keep writing...:)
अद्भुत है।
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