खामोश हवा के ख़त पे मैं ,
कैसे अपनी आवाज़ लिखूँ .?
इन टूटे बिखरे पंखों से
कैसे अपना परवाज़ लिखूँ ..??
मैं खुद खुद से बेगाना सा ,
कैसे अपना अंदाज़ लिखूँ ?
मंजिल है नज़रों परे खड़ी,
कैसे अपना अंजाम लिखूँ?
दिल की हर गुमसुम धड़कन का ,
किस्सा कैसे बेबाक लिखूँ ?
कितनी भी बेचैनी हो पर ,
खुद को कैसे बेताब लिखूँ ..?
कतरा कतरा तरसूँ चाहे ..
खुद को कैसे मोहताज़ लिखूँ ?
कब तक सूरज के संग ढलूँ
कब तक खुद को महताब लिखूँ ?
कब तक बेरंग से पन्नों पर
एक रंग मेरा बिखराऊं मैं.?
कब तक यूँ बिन समझे सोचे
कदमो संग चलता जाऊं मैं ..?
कब तब सपनो की दुनिया में
सच के आँचल से खेलूँ मैं..?
हवा जिधर कह दे चल दूँ
कब तक ये बंदिश झेलूँ मैं ..?
मेरी जिद मेरी अपनी है
क्यों उसपर अपना नाम लिखूँ ..?
उस खुदा को क्या क्या समझाऊं
कैसे अपना पैगाम लिखूँ ..?
अभी तो कितना कुछ बाकी
खुद को कैसे नाकाम लिखूँ ..?
क्यों हर ताज़े खिलते सूरज पे
एक फीकी ,बोझिल शाम लिखूँ ..?
ये हाथ ना बस फ़ैलाने को
लड़ने की ताकत भी तो है |
मेरा मुझको ना मिला तो क्या
मेरा है जो मेरा ही है ...|
खामोश हवा के ख़त पे मैं
इस कदर मैं एक आवाज़ लिखूँ
हर छोर ,फलक धरती झूमे ..
ऐसा मैं अपना साज़ लिखूँ..||
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