नैनन की भाषा समझो न
पिया रे
नैनन की भाषा समझो न ....
नैनन की भाषा समझो न ....
पूजूं तुझे ही ,अपना श्याम बना कर
राधा बना दूँ खुद को सुध बुध गंवाकर
सांसें जलाकर अपनी ,
आरती करूँ मैं तोरी
तेरे दिल से अपने दिल तक ,
प्रीत की मैं बांधूं डोरी ...
अपने माथे पर तेरी उमर सजाऊं..
चंदा बनाकर तुझको चौथ मनाऊं
सोलह सिंगार तेरी ख़ातिर कराऊं..
रोम रोम अपने सजना तुमको बसाऊं
फिर भी डरूं मैं काहे तोसे बालमा ....आ आ आ ..
पिया रे ..
नैनन की भाषा समझो न ..
नैनन की भाषा समझो न ..
पिया रे ..
नैनन की भाषा समझो न ..
नैनन की भाषा समझो न ..
सांझ सताए मुझको ,रतिया रुलाये
पीर मिलन की बैरी ,चुटकी लगाये
सांस आते जाते तेरी बतिया बताये ..
पगले जिया को तोरी याद दिलाये..
सब कुछ मैं भूल सजना ,
तनहा जो बैठूं ,
तनहा जो बैठूं ,
याद तेरी आके चुपके मोहे
छूके जाये ...
बासी लकीरें भई,,
छूके जाये ...
बासी लकीरें भई,,
हाथन की मोरे ,
तू जो गया तो अब सब किस्से है कोरे
कुछ तो लिखो न बालमा..आ आ आ ..
पिया रे
नैना की भाषा समझो न
पिया रे
नैनन की भाषा समझो न ...
नैनन की भाषा समझो न ...
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