बस एक लम्हे का रिश्ता था वो
मेरी नज़रें उसके पास ही ठहर गयी थी ,
कुछ पल के लिए ||
इतनी भीड़ में
उस एक चेहरे ने जैसे बाँह पकड़ ली हो,
और कह दिया हो
अभी न जाओ
रोजाना कहाँ मिलते हो तुम ...??
उसकी पलकों के अंदाज़ के उस एक तूफां ने
मेरे दिल के पेड़ से
जैसे कितनी ही नर्म,मखमली ,
धडकनों की पत्तियाँ तोड़ ली हो
और कह दिया हो
आओ मेरे संग बह चलो ...
रोजाना कहाँ टूटते हो तुम इस तरह ..??
उसकी वो एक मुस्कराहट
जैसे कितनी ही पागल लहरों की तरह आकर तोड़ गयी हो
मेरे ज़हन के कच्चे किनारों को ....
उसकी वो एक अदा
जिसमें वो संभालती थी, अपने मदहोश,
लड़खड़ाते दुपट्टे को
काँधे पर से सरकने से
ये कहकर, यूँ फिसला न करो हुस्न की दीवानगी में
ये आदत अक्सर दिक्कत देती है
उसका वो गुरूर ..
उसका वो नशा ...
हाय ...!! क्यों फीका नहीं पड़ता ..??
उसके जाने के बाद भी ..||
बस इतना ही जिया उसे मैंने
इतना ही समझा ,इतना ही जाना उसको
मैं आज भी उस एक पल में ही ज़िंदा हूँ
जिसमें उसको पाया भी ,
और खो भी दिया ..
बस एक लम्हे का रिश्ता था वो ...
उसने तोहफा समझ के सौंप दिया
मैंने अमानत समझ के रख लिया ..||
यूँ लम्हों के शहर से गुज़रते गुज़रते
न जाने कितनी ही दूरी तय कर ली है, मैंने ,
इस वक्त के सफर में
पर उस इक लम्हे का शहर है
जो खत्म ही नहीं होता ..
ये तो नादाँ दिल है जिसे अपनी धडकन पर ऐतबार है
इसलिए अभी भी चला जाता है
वरना अभी तक तो मान लेता कि
भटक गया था मैं ....
कभी कभी सोचता हूँ कि पूँछ ही लूँ
ए मेरे दिल तू कभी थकता क्यों नहीं...???
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