Sunday, September 9, 2012

ख़ाक का ये जिस्म, ख़ाक में ही जाना है ...
ये इश्क तुमसे, महज़ जीने का बहाना है ....||

ख़्वाबों में आओ ,ज़रा कुछ देर फिर ठहरो 
ये दौर फुरसत का ,कहाँ हर रोज आना है ...||

ये उम्र ही ऐसी है ,कुछ कुछ भूल करने की.
नादानियां तो हर जवान दिल का फ़साना हैं....||

कभी मुस्का के शर्माना ,कभी शर्मा के मुस्काना..
तुम्हें मालूम है ,कितनी तरह से दिल जलाना है ..||

खुदा से बंदगी की रस्म हमने तोड़ दी क्योंकि ...
तुम्हारे नाम का कलमा ,हमें होठों से गाना है ...||

तुम्हारे बिन ये लगता है कि सब कुछ है अधूरा सा 
तुम जो साथ हो ,तो संग में पूरा ज़माना है.....||

"कोई कह दे कि पागल हो ,तो कोई फर्क न पड़ता ...
पर फर्क पड़ता , जब लगे तुमको- "दीवाना है" ||"

"है मरे इश्क का रुतबा,जो तेरी ओर खिंचते हैं ..
वरना हमको भी मालूम है -किस ओर जाना है...||"
-अनजान पथिक

No comments:

Post a Comment