Monday, August 15, 2011

मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं


आज़ाद हवा में खुलकर मै,हर चरम शिखर पर लहराऊं  
ऐसा रंग माँ अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं 

इंसान मजहब से ऊपर हो., त्योहार जश्न हर रोज़ मनें  
नफरत के घरौंदों से पहले ,प्रीत के ऊँचे महल बनें   
ऐसा अपनापन बख्श मुझे,सबके दिल में घर कर जाऊं 
ऐसा रंग माँ अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं||



                                                                   
आवाज़ बनूँ माँ मैं तेरी,परवाज़ मेरे पंखों को दो
तेरा संतानें जाग गयी ,हालात पे यूँ ना अब तुम रो..
बस हिम्मत दे इतनी मुझको.,सबसे सच खातिर लड़ जाऊं  ...
ऐसा रंग माँ  अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं||

ओहदा ना बनूँ ना नाम बनूँ,ना सिरों पे चढ़ता जाम बनूँ..
गूंजूँ क्षितिजों के आँगन तक,एक ऐसा मैं कोहराम बनूँ ...
बहरे बहके से कानों में,मैं शोर सरीखे चुभ जाऊं 
ऐसा रंग माँ अपने रंग में,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं ...||

ना जुबान बनूँ ना जात बनूँ.,बस खुशियों की सौगात बनूँ 
इंसान को जोडूँ इंसान से,ऐसा सच्चा इंसान बनूँ 
तेरे गीत मेरा ही साज़ बने ,मैं स्वर एक ऐसा बन जाऊं 
ऐसा रंग माँ अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं ..||.

हिम्मत मैं बनूँ, हुंकार बनूँ,तेरे गुस्से की ललकार बनूँ 
जो बोयें गुलामी की फसलें,उस गर्दन को तलवार बनूँ 
तेरी आग में बस जल जाने दे,फिर भले राख मैं बन जाऊं 
ऐसा रंग माँ अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं ...||

गुलाम ना हो अब दिल कोई,हर रात जश्न-ए-आजादी हो...
सब खुशियाँ  यूँ  बेमोल बिके ,ना कोई कभी फरियादी हो...
आज़ाद फिजा इतराए जहाँ ,ऐसा भारत मैं बन जाऊं  ..
 ऐसा रंग माँ अपने रंग में ,मैं खुद ही तिरंगा बन जाऊं ..||



  







  



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