आज महकती सी सुबह में ,बिखरी दिखी आजादी ....
नहीं दिखी आजादी
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चहकते खिलते चेहरों पर ,हँसती दिखी आजादी
चैनलों पर, गानों में, गाती दिखी आजादी
ह़र मंच से आवाजों में,आती दिखी आजादी
मॉल में, शोरूम में ,सजती दिखी आजादी
टोपियों पर, कपड़ों पर ,फबती दिखी आजादी
ठेले पर ,साइकिलों पर, बिकती दिखी आजादी...
अखबार के सूखे रंगों में ,रंगती दिखी आजादी....
पर नहीं दिखी आजादी
उस सड़क किनारे खड़े
मासूम बच्चे के चेहरे पर
जो दौड़ दौड़ कर कार वालों को
बेच रहा था तिरंगे
पाँच रुपये का एक
आठ रुपये के दो....|
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नहीं दिखी आजादी
भीख माँगते उस बच्चे के हाथ में..
जो मंदिर के आगे बैठता है रोज़ ...
कटोरा लेकर..
बहुत कुछ था सिक्को जैसा
बहुत कुछ था सिक्को जैसा
उसके कटोरे में
मगर आजादी जैसा कुछ नहीं.....
नहीं दिखी आजादी
उन भूखे तरसते चेहरों पर
जो बेबस आँखों से देख रहे थे ..
वो आँच पर सिंकता भुट्टा ...
वो आँच पर सिंकता भुट्टा ...
चाय में डूबता बिस्कुट
नहीं दिखी आजादी
उन सहमी आँखों में ..
जिन्होंने खोया था किसी अपने को
किसी हादसे में बेवजह ...
क्योंकि
किसी और को सनक सवार थी
बेवक्त ,बमों से दीवाली मनाने की
चिता के दीये जलाने की...
नहीं दिखी आजादी
उस परिवार के नंगे बदन पर
जिसने पिछली
बरसात भरी रात काटी है
छप्पर के नीचे भीगते भीगते सड़क पर
नहीं दिखी आजादी
उस तिरंगे के चेहरे पर जो मायूस खड़ा
लड़ रहा था गुलाम हवा के थपेड़ों से ....
जो हर साल ऊपर चढ़ता है
इस उम्मीद में
कि आज शायद मंज़र कुछ बदलेगा ||
मगर वही पुराने घाव लिए उतर आता है शाम को
जिसको शायद कभी सुना नहीं ..
आजादी के इस शोर तले..
आजादी के इस शोर तले..
.........
ना जाने कैसी ये आजादी है....
आधी अधूरी सी..
आधी अधूरी सी..
अपनी होकर भी, परायी सी..
जो कभी नाचती है हमारे संग ..
हमारी ही धुन पे...
और कभी रोती है कोने में चुपके से
और कभी रोती है कोने में चुपके से
किसी टूटी टपकती छत के नीचे ...
शायद कुछ घुटन सी है उसके मन में
जो वो कहती नहीं...
हर बार मुस्कान बन कर ..
बस खिल जाती है चेहरों पर
तभी शायद तिरंगे की अदाओं से,
आज कुछ कहती दिखी आजादी
हवा में सहमी सहमी ,बहती दिखी आजादी....|
आजादी के बावजूद, गुलामी सहती दिखी आजादी..||
Aajadi bikti hai
ReplyDeletemaine dekha hai