Friday, February 15, 2013

‎"कभी कभी धूप बहुत प्यारी लगती है मुझे ..गुनगुनी सी

‎"कभी कभी धूप बहुत प्यारी लगती है मुझे ..गुनगुनी सी 
कि मन ये झूम उठता है , 
जब चुपके से वो गुदगुदाती है 
अंदर छिपी कई नाज़ुक सी आरजुओं की नन्ही कोमल गदेलियाँ 
पर उस समय सूरज से मैं ,कह नहीं पाता कुछ भी....
सोचता रह जाता हूँ कि दुआएं लगती है मुझे भी शायद ...."

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"बारिश जब कभी छूकर कुछ पूँछती है मुझसे ..
मैं बहुत कुछ कह जाता हूँ भीगकर उसकी बूंदों से ,
पर तब भी नहीं बता पाता हूँ मैं ये .. बादल को
कि कितना सुकून मिलता है उसकी इक मासूम कोशिश से.. .
बस मानता रहता हूँ मैं ..
कि खुदा वक्त निकालता है मेरे लिए भी... "
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और हाँ सुनो !!!
एक और सच बोलूं ...
मैं बहुत देर तक बात करता हूँ जब तुमसे
जता नहीं पाता तुमको कुछ भी .....
सुनता रह जाता हूँ महज़ ...
चीज़ें ऐसी ही होती है तब भी ...
मैं तब भी -
सोचता रह जाता हूँ कि दुआएं लगती है मुझे भी शायद ...."
और मानता रहता हूँ मैं ये ..
कि खुदा वक्त निकालता है मेरे लिए भी...|| "

-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )

2 comments:

  1. very nice presentation nikhil..aur chup reh ke bhi ye khyal ki khuda tumhare liye bhi time nikal raha hai kisi ki dua lag rahi hai behad bhaavnatmak ....aur mujhe tumhare blog ka background scene yaani ye nadi bahut achhi lagi ..neeli swachh shant si nadi :-)

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    1. @pankhuri goel ... thnkuuu so much pankhuri mam.. or actually humein samudra bahut pasand hai to usi ki image laga rkhi hai humne aise hi ...

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