Saturday, March 23, 2013

बहुत खामोश सा हो जाता हूँ उससे बात करते वक्त ...

बहुत खामोश सा हो जाता हूँ उससे बात करते वक्त ... 
खासकर उस वक्त ,
जब वो नींद में सराबोर आँखों से
एक दो पल की मोहलत मांगकर
कुछ भी बोलने की कोशिश करती है तब ....|| 
ऐसा लगता है -
जैसे किसी मासूम से खुदा से रूबरू हो गया हूँ मैं .....॥ 

बहुत प्यारी लगती है वो -
आवाज़ की हर इक उलझी हुई किश्त में ....
कानों तक नहीं पहुँचता कुछ भी ..कहा हुआ उसका
पर दिल पर हर एक लफ्ज़ उतर सा जाता है
दीवारों में सीलन की तरह बिन किसी आहट ...

उसको यूं ही सुनते सुनते बिता सकता हूँ जिंदगी सारी ..
क्योंकि नहीं होती हर किसी की बात इतनी प्यारी...
कि बिन सुने हर एक ख़ामोशी ,
हर एक कतरा आवाज़ का घुल सा जाये ... रूह में ...
पिघल जाये सारी बातों के मायने...
रह न जाए कुछ भी दोनों के दरमियान...
एक पाक से एहसास की डोर के अलावा ....॥

तुम्हे सच बोलूँ एक बात .. -मेरे खुदा...
ऐसी ही बातें मांगी थी अपने हिस्से में मैंने ...हमेशा से
हर सांस में बस इतनी ही मोहब्बत चाही थी ..॥

अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )

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