Saturday, March 23, 2013

एहसास की जुबां होती अगर ...

एहसास की जुबां होती अगर ... 
सच मानो तुम पर ..
बेसाख्ता लिखता बहुत कुछ..॥ (बेसाख्ता = in an effortless manner)
तुमको लिखने के लिए 
नहीं चाहिए कोई अल्हड सी वजह ...
कोई अधूरी सी ख्वाहिश ...
सदियों से पला कोई अनकहा दर्द ...
किसी मोड़ पे इंतज़ार करती हुई इक मोहब्बत.....
यादों की किताब का कोई अनछुआ किस्सा ..
या मन की जुस्तजू का भूला हुआ इक हिस्सा ....

हर बार आँखों की नमी पे लिखे शब्दों के ..
ढूँढ लेता मायने ..
क्योंकि सब कहते है ..
ये हुनर आ ही जाता है ...मोहब्बत में होने के बाद….
और चुन लेता अपने होठों पे बैठी वो शोख मुस्कुराहटें ...
जो किसी मौसम की तरह छाई रहती है हमेशा
एक अनकहे रिश्ते की सहेजी अमानत की तरह ....||

क्या लिखता , मालूम नहीं ..
कितना लिखता हिसाब नहीं ..
कैसे लिखता ,सोचा नहीं ... ..
पर एहसासों की जुबां होती अगर ...
तो सच मानो
बेसाख्ता तुमपे लिखता बहुत कुछ ...॥

- अनजान पथिक

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