एक रात गुज़रती है ,...रोज
फलक की कच्ची पगडंडियों से होते हुए ;
हाथ में चाँद का चराग(चिराग) लिए .... ,
पैरों में सन्नाटे की पायल पहने ...
अँधेरे के जंगलों से निकलकर,....
दूर ,बहुत दूर ..... जाती है वो
इक आवारा सुबह से मिलने...
किसी अनसुने ,अनदेखे से शहर में...||
एक शहर जहाँ ,मोहब्बत का सूरज कभी ढलता नहीं...
एक शहर जहाँ ,खेतों में इश्क की फसल उगा करती है ...
जहाँ नीला सा ये आसमां..... पिघलकर घुल जाता है ,
शाम को,,,,, धरती की बांहों में ...
जहाँ डालियों पे, यादों के फूल महकते रहते है ...|
बीते लम्हें, .... तस्वीर बनकर चढ़े रहते है ,
मंज़र की दीवारों पर...,उतरते नहीं कभी ... |
एक शहर जहाँ वो नदी भी बहती है ..
जो शीरी के लिए .....बनायीं थी ..इक फरहाद ने ..कभी
एक शहर ,जहाँ वक्त अपाहिज है ... चल नहीं पाता..
इसलिए यहाँ ....दिन गुज़रते नहीं ,रातें होती नहीं ...
बस उसी एक लम्हे में जिंदा रहते है सब लोग
जिस एक लम्हें में उन्हें मोहब्बत हुई .....,
वो मोहब्बत ,जो सदियों से अब तक बदली नहीं ...|
कहते हैं ,ये वो शहर है ...
जो किसी हीर ने बसाया था किसी रांझे के लिए ...
ताकि मोहब्बत के सारे रिश्ते जिंदा रह सकें....||
आज ख़्वाबों में निकलूंगा मैं ....... तुमसे मिलने के लिए ,
इसी एक शहर में ...इस यकीन पर ..
कि कुछ भी हो जाये, कभी न कभी
तुम मुझसे मिलने जरुर आओगे ....
**बोलो आओगे न..???? **
-अनजान पथिक
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