Tuesday, July 24, 2012

कागज़ पे कुछ लिखकर 
मिटा कर देखा है कभी....??
कागज़ तो फिर से कोरा हो जाता है ...
मगर उसकी उधड़ी हुई सतह को याद रह जाते हैं 
लफ़्ज़ों के साथ गुज़रे वो पल...
जो कितना भी वक्त बीते ...,उतर नहीं पाते कभी 
कागज के नर्म ज़हन से ....||

कुछ ऐसा ही होता है ....
दूरियों से जुड़े दो दिलों का रिश्ता ....
वो (..खुदा ) लाख मिटाता रहे 
एक को दूजे की किस्मत से..जिंदगी से...
मगर दिल के नर्म कागज से,
न एहसास मिटते हैं कभी ...,न ही जज़्बात उतरते ......| 

कुछ रिश्ते खुदा भी शायद इसलिए ही बनाता है 
कि कुछ तो हो काश,, जिसकी इबादत वो भी कर सके ...,
जिसके सजदे वो झुक सके ..||

आओ आज ऐसे ही, अपने इक रिश्ते को जिया जाए...||

                                           -अनजान पथिक  

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