Monday, April 15, 2013

नसों में दौड़ता जूनून ,आँखों में ख्वाब चाहिए

नसों में दौड़ता जूनून ,आँखों में ख्वाब चाहिए 
ये उलझनें बासी हुई , अब इन्कलाब चाहिए ..

हर नज़र से झांकती ,उम्मीद एक पीढ़ी की 
सवाल सबके मन में है ,सबको जवाब चाहिए ...

हर गली में खून है ,हर राह है सहमी हुई ..
हैवानियत को इससे ज्यादा क्या खिताब चाहिए ...

खुदा के घर के नाम पर ,दैर-ओ-हरम* बने ,गिरे ... 
फिर भी कहाँ वो है बसा ,सबको जवाब चाहिए ...??
*(दैर-ओ-हरम= मंदिर और मस्जिद )

हर महकते चेहरे ने काँटे छिपाये रखे है ....
पसंद करने वालों को भी तो गुलाब चाहिए ... !!!

वो पूजने की मूरत है ,उसे नज़र से समझा करो 
औरत को देखने को ,आँखों में हिज़ाब चाहिए ...(हिज़ाब =पर्दा )

दिल के खाली कागज़ पर खुद सांस से लिखा करो ...
तालीम-ए-इश्क* के लिए ,नहीं किताब चाहिए ...
*(तालीम-ए-इश्क= इश्क की शिक्षा )

मैं झुकूं तो सजदे में ,पर मिन्नतों में न झुकूं ..
गर दुआ मांगूं तो बस इतना रुबाब चाहिए ...||

मैं आज भी एक चेहरे की मायूसियाँ पी लेता हूँ 
मैं रिंद-ए-इश्क हूँ ,मुझे कहाँ शराब चाहिए ....??
*(रिंद-ए-इश्क =(इश्क रुपी शराब का {प्यासा /आसक्त } ) )

-अनजान पथिक 
(निखिल श्रीवास्तव )

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1 comment:

  1. हर गली में खून है ,हर राह है सहमी हुई ..
    हैवानियत को इससे ज्यादा क्या खिताब चाहिए ...
    सुन्दर रचना

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