तुम्हारे होठों पर महक रही थी
मीठी पंखुड़ियां आरती की ,
मेरे लबों पर भी गूँज रहा था, तेरा इक मीठा सा नाम ...
जुड़े हुए हाथों में तुमने
संभाल रखे थे लिफ़ाफ़े अपनी दुआओं के ..
उठी हुई हथेलियों में मैंने भी लिख रखी थी
इबारतें तेरी मुस्कानों की ...
सजदे में तुम भी थे ,
मैं भी था
फर्क इतना था बस ,
बंद आँखों से तुमने अपने खुदा की इबादत की थी ,
खुली आँखों से तुम्हें देखते हुए
मैंने अपने खुदा को पूजा था ....॥
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
मीठी पंखुड़ियां आरती की ,
मेरे लबों पर भी गूँज रहा था, तेरा इक मीठा सा नाम ...
जुड़े हुए हाथों में तुमने
संभाल रखे थे लिफ़ाफ़े अपनी दुआओं के ..
उठी हुई हथेलियों में मैंने भी लिख रखी थी
इबारतें तेरी मुस्कानों की ...
सजदे में तुम भी थे ,
मैं भी था
फर्क इतना था बस ,
बंद आँखों से तुमने अपने खुदा की इबादत की थी ,
खुली आँखों से तुम्हें देखते हुए
मैंने अपने खुदा को पूजा था ....॥
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
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