Thursday, April 25, 2013

तुम्हे याद करना

तुम्हे याद करना
सचमुच किसी हसीं आरज़ू को तराशने सा है ,..

चाँद पिघलकर आँखों में उतर आता है ..
बेरंग पानी सा बनकर ..
तुमको सोचने लगूँ तो ...

लहलहाने लगते हैं 
पलकों की कच्ची पगडंडियों के किनारे...
बसे हुए ख़्वाबों के खेत .. 
और खिल उठती है नन्ही कलियाँ .. 
गुदगुदाती ख्वाहिशों की ...

सांझ की बहती नदी ... क्षितिज के पत्थरों से
टकरा टकरा कर लगती है लौटने ....

रात के हाथ से छूट जाता है पैमाना अँधेरे का ,
छिटक कर बिखर जाती है हर ओर हवा में 
किसी इत्र की तरह तुम्हारे एहसास की खुशबू ...
छाने लगती है हर शय पर तुम्हारे होने की खुमारी .. 

तुम बस कहने को नहीं होते हो साथ ...
वरना सांस का हर रेशा 
बुनता है तुम्हारे नाम के धागे .. 

ज़हन के सारे सवाल ..
बन जाते है जवाब खुद -ब- खुद ...
बुझ जाती हैं मायूसियों की कई जलती शमायें ..

भरने लगती हैं ..
वक़्त की दी हुई कई खराशें .. 

और मानने लगता हूँ मैं ...खुद को 
दुनिया का सबसे खुशनसीब शख्स ..
क्योंकि इतना सच्चा और मासूम है
मेरे ख्यालों का ये हिस्सा .. 

कि चाहे कितना कुछ भी न हो मेरे पास ..
मैं खुद को कभी अधूरा नहीं लगता ...

"मोहब्बत शायद यूं ही पूरे होने का नाम है .."||

-अनजान पथिक 
(निखिल श्रीवास्तव )

1 comment:

  1. तुम बस कहने को नहीं होते हो साथ ...
    वरना सांस का हर रेशा
    बुनता है तुम्हारे नाम के धागे ..
    सोचो अब तो अंदाज हो गया होगा कैसा लगता है तुम बिन होना

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