जवानी
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हर कागज में छिपे फूल की कोई कहानी होती है .
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
रातें जैसी खीर हो मीठी , ख़्वाबों के बादाम मिली
सांसें जैसे हो दुआएं मासूम, किसी के नाम लिखी
चंदा दे आवाज़ ,चांदनी पायल छन छनकाती है ...
एक चेहरे की थाप पे धडकन धक् धक् धक् धक् गाती है ...
हर गुड्डा आवारा... , हर गुडिया दीवानी होती है ...
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
हर एक खिलते चेहरे पे दिल आने जाने लगता है ....
साज़ छिड़े न छिड़े ,ये मनवा झूम के गाने लगता है ....
धूप बर्फ सी लगती है ,बारिश तन को झुलसाती है
होठों की मुस्कानें अपना कह-कह जब भरमाती हैं ...
किरदार नये हो कितने भी ...पर कशिश पुरानी होती है
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
सब कहते हैं इज़हार करो ,पत्थर भी टूटा करते हैं ..
जो अपने ज्यादा होते हैं ,वो ज्यादा रूठा करते है ...
मन साँसों के इक कागज़ पर उम्मीदें रंगता रहता है ...
दिल टूट टूट कर मैखानों को जाकर रोशन करता हैं ...
किसी तरह की भी जल्दी ,बस पानी पानी होती है ..
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
एक मोड़ गली का अपने सारे राज़ संजोने लगता है ..
ढलता सूरज उम्मीदें सारी खुद पर ढोने लगता है ....
सब घरवालों के सोने पर अँखियाँ खुद ही जग जाती है ..
रातों में आकर तन्हाई ज़ोरों से गले लगाती है ....
सच में नही ,मगर ख़्वाबों में सब मनमानी होती है ..
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
रूठे हुए यार मनाने में सारी रातें कट जाती है ...
अपनी हर जिद के आगे ,उनकी इक जिद अड़ जाती है ..
कोई नखरे करके हँसता है ,कोई चुप रह के गुस्साता है ..
कभी कोई कराते दूजे को चुप ,खुद रोने लग जाता है ..
रिश्तों की नींव ही जब मासूम सी आनाकानी होती है ..
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
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हर कागज में छिपे फूल की कोई कहानी होती है .
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
रातें जैसी खीर हो मीठी , ख़्वाबों के बादाम मिली
सांसें जैसे हो दुआएं मासूम, किसी के नाम लिखी
चंदा दे आवाज़ ,चांदनी पायल छन छनकाती है ...
एक चेहरे की थाप पे धडकन धक् धक् धक् धक् गाती है ...
हर गुड्डा आवारा... , हर गुडिया दीवानी होती है ...
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
हर एक खिलते चेहरे पे दिल आने जाने लगता है ....
साज़ छिड़े न छिड़े ,ये मनवा झूम के गाने लगता है ....
धूप बर्फ सी लगती है ,बारिश तन को झुलसाती है
होठों की मुस्कानें अपना कह-कह जब भरमाती हैं ...
किरदार नये हो कितने भी ...पर कशिश पुरानी होती है
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
सब कहते हैं इज़हार करो ,पत्थर भी टूटा करते हैं ..
जो अपने ज्यादा होते हैं ,वो ज्यादा रूठा करते है ...
मन साँसों के इक कागज़ पर उम्मीदें रंगता रहता है ...
दिल टूट टूट कर मैखानों को जाकर रोशन करता हैं ...
किसी तरह की भी जल्दी ,बस पानी पानी होती है ..
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
एक मोड़ गली का अपने सारे राज़ संजोने लगता है ..
ढलता सूरज उम्मीदें सारी खुद पर ढोने लगता है ....
सब घरवालों के सोने पर अँखियाँ खुद ही जग जाती है ..
रातों में आकर तन्हाई ज़ोरों से गले लगाती है ....
सच में नही ,मगर ख़्वाबों में सब मनमानी होती है ..
जैसी हों जितनी भी हों ,बड़ी मस्त जवानी होती है ...
रूठे हुए यार मनाने में सारी रातें कट जाती है ...
अपनी हर जिद के आगे ,उनकी इक जिद अड़ जाती है ..
कोई नखरे करके हँसता है ,कोई चुप रह के गुस्साता है ..
कभी कोई कराते दूजे को चुप ,खुद रोने लग जाता है ..
रिश्तों की नींव ही जब मासूम सी आनाकानी होती है ..
जैसी हो ,जितनी भी हो ,बड़ी मस्त जवानी होती है....
-अनजान पथिक
(निखिल श्रीवास्तव )
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