"क्षिति जल पावक गगन समीरा
मनुष्य हो या मशीन -इस संसार में हर जड़- चेतन शरीर किसी ना किसी प्रकार से इन पाँचों तत्वों का सम्मिलन ही है |संसार में जब मनुष्य की रचना हुई तो उसको एक अनुपम शक्ति से नवाज़ा गया -अपने आस पास के वातावरण को अपने अनुसार उपयोग करना |इसी शक्ति के कारण उसने पत्थर से आग निकाली,मिट्टी से पहिया बनाया ,लोहे से औजार बनाये और ना जाने क्या-क्या.........|उसकी बुद्धि,उसकी जिज्ञासा ,उसकी जरुरत उसे जिस ओर भी ले गयी उस ओर ही उसने अपनी मेधा के पगचिह्न छोड़े|
परन्तु दुविधा ये है कि जिस मानव ने अपने आराम के लिए ,सुविधाओं के लिए तरह तरह की मशीनों का निर्माण किया वो आज स्वयं ही उन मशीनों के आगे मजबूर दिखाई देने लगा है |"सृजक की ये कैसी विवशता की अपनी रचना के आगे ही घुटने टेक दे |" कंप्यूटर इस परिप्रेक्ष्य में सर्वोपयुक्त उदहारण है |जिस कंप्यूटर को मानव ने तेज गति ,कार्यक्षमता और विश्वसनीयता के कारण चुना ,आज उसकी ही वजह से विश्व शांति पर संकट मंडराने लगा है |सुरक्षा के लिए बनायीं गयी मिसाइलें अब विध्वंस का संकेतक बनकर सबके ह्रदय में बैठ गयी है |
परन्तु मशीनों का केवल यही विध्वंसकारी पक्ष नहीं है |सृजनात्मकता -उनका एक आभूषण है और इसके लिए उदाहरण देने की भी आवश्यकता नहीं |और तो और अब तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर भी प्रयोगों और परिणामों की होड़ लगी हुई है |इसलिए मशीनों का एक मानवीय स्वरुप भी अस्तित्व में आने और पहचान बनाने की कोशिश में जुटा है|
प्रश्न ये है अब इतनी उपयोगिताओं के बाद क्या मशीनों को मानव के समकक्ष मानना उचित है ? निस्संदेह मशीनें आज कई स्थानों पर मानव से ज्यादा सफल,बेहतर और सक्षम सिद्ध हुई हैं लेकिन इसका ये अर्थ तो नहीं कि मानव की उपयोगिता कम हो गयी है |हमें ये कदापि नहीं भूलना चाहिए कि मानव खाली मिट्टी का ढाँचा नहीं जो सुबह से शाम, एक निश्चित पूर्वनिर्धारित क्रमानुसार कार्यों को करता है ;वो भावना ,चेतना ,समझ और परिकल्पनाओं का एक समूह है और ये सब मशीन में लाना फिलहाल उस हद तक संभव नहीं जितना ये मानव के अन्दर है..|
और हाँ ,यदि हम ये सोचते हैं कि मशीनें इतनी सक्षम हैं कि मानव की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न उठ जाए तो ये जान लेना चाहिए कि विज्ञान कभी वर्तमान पर खत्म नहीं होता ,उसे भविष्य की अँधेरी कन्दराएँ ज्यादा सुहाती और आकर्षित करती हैं और इस काम के लिए मानवीय परिकल्पनाओं की ही जरुरत है |ये बात हर प्रगतिशील चिन्तक समझ सकता है |साथ ही साथ संपूर्ण मशीनीकरण से मात्र हम सामाजिक नैसर्गिकता तो खो देंगे ही ,चैतन्यता भी शून्य हो जाएगी ,और कुछ नहीं |
इसलिए सार रूप में ध्यान रखिये -"घोडा कितना भी द्रुतगामी हो ,लगाम कितनी ही कसी हो ,जब तक दोनों का नियंत्रण सही हाथों में नहीं होता ,तब तक सब व्यर्थ है ................."
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