'कौन कहता है आसमाँ में ,छेद नहीं हो सकता
. एक पत्थर तो हिम्मत से उछालों यारों |'
किसी शायर ने जब ये मिसरे कहे होंगे , तब ये ना सोचा होगा कि इनके भावों की गहराईयों में खोकर ये जिंदादिल इंसान क्या खूबसूरती नहीं गढ़ देगा ???लेकिन आज जब मानव की परिकल्पनाएँ उसके अद्भुत ज्ञान के साथ मिलकर नित नवीन रूप धारण करती हैं ,तब निश्चित ही उस शायर की रूह मुस्का देती होगी |पुरातन काल के उस नग्न मानव से लेकर आज के इस सफल परिवर्तक तक ,मानव ने क्या नहीं किया???जो भी हो सकता था ,जितना वो सोच सकता था ,जितनी कल्पनाओं की सीमा थी उतनी दूर गया,किन्तु उसके बाद भी उसकी अनुसंधिषु प्रवृत्ति उसे सदा ही नये रास्तों की ओर ढकेलती रही ,एक नये क्षितिज के दर्शन कराती रही जो उसके लिए अब भी अनछुआ था ,अज्ञात था |
सारस्वरूप बस यही कहना है - ' सर्वाइवल ऑफ़ दा फिटेस्ट' का सिद्धांत तो हम सब जानते है ,३-जी तकनीक ने बस इसे थोडा सा और भावसम्मत कर दिया है| जो सुविधा इसके कारण हमें मिली उसके लिए सबकी ओर से एक हार्दिक प्रणाम- मानव को|आशा करता हूँ कि आगे भी हम इसी तरह अपने ज्ञान को मानव जीवन के श्रृंगार में लगा पाएँगे |
. एक पत्थर तो हिम्मत से उछालों यारों |'
किसी शायर ने जब ये मिसरे कहे होंगे , तब ये ना सोचा होगा कि इनके भावों की गहराईयों में खोकर ये जिंदादिल इंसान क्या खूबसूरती नहीं गढ़ देगा ???लेकिन आज जब मानव की परिकल्पनाएँ उसके अद्भुत ज्ञान के साथ मिलकर नित नवीन रूप धारण करती हैं ,तब निश्चित ही उस शायर की रूह मुस्का देती होगी |पुरातन काल के उस नग्न मानव से लेकर आज के इस सफल परिवर्तक तक ,मानव ने क्या नहीं किया???जो भी हो सकता था ,जितना वो सोच सकता था ,जितनी कल्पनाओं की सीमा थी उतनी दूर गया,किन्तु उसके बाद भी उसकी अनुसंधिषु प्रवृत्ति उसे सदा ही नये रास्तों की ओर ढकेलती रही ,एक नये क्षितिज के दर्शन कराती रही जो उसके लिए अब भी अनछुआ था ,अज्ञात था |
मानव की यही आदत ,किंवा उसकी यही काबिलियत उसे बाकी चेतन जातियों से इतर करती रही |इसका साक्षात् प्रमाण हम देखते है आजकल के समय में उसकी बनायीं हुई चीज़ों में| जब आज एक बटन के दबने पर कोसों दूर बैठे व्यक्ति से बात होने लगती है ,जब घर बैठे -२ अपने फ़ोन से सारी दुनिया उँगलियों का खेल बन जाती हैं ,जब असंभव से लगने वाले कई काम विवशतः संभव की श्रेणी में आकर गिरने लगते हैं तब लगता है कि सचमुच 'मानव विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति है ' |
ऐसा ही कुछ हाल ही के समय में मानव ने मोबाइल फ़ोन की दुनिया में किया |अपने करामाती हाथों से इस क्षेत्र को जितनी बारीकी से उसने सजाया वो काबिल ए तारीफ है |यहाँ हम बात कर रहे है आधुनिक ३-जी मोबाइल तकनीक की, जिसने अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल संचार प्रणाली(International Mobile Telecommunication) में अविश्वसनीय परिवर्तन या यों कहे कि परिमार्जन किये | जो सीमाएँ २-जी तकनीक को बाँधे हुए थी ,उन्हें विस्तार देना कोई मजाक नहीं | अब हम तीव्र गति से इन्टरनेट का उपयोग कर सकते हैं, सजीव प्रसारण (मोबाइल टीवी )देख सकते हैं,विडियो कॉल कर सकते हैं,और ना जाने क्या-क्या ......|ये सब कुछ बताना इतना जरुरी इसलिए नहीं लगता ,कि अब ये बातें शायद वर्णन की मोहताज नहीं रही|हमारी आधुनिक पीढ़ी ने कितने सत्कार के साथ इसका स्वागत किया है ,ये इस तकनीक के मोबाइल फ़ोन के आंकडें बता देते हैं|सारस्वरूप बस यही कहना है - ' सर्वाइवल ऑफ़ दा फिटेस्ट' का सिद्धांत तो हम सब जानते है ,३-जी तकनीक ने बस इसे थोडा सा और भावसम्मत कर दिया है| जो सुविधा इसके कारण हमें मिली उसके लिए सबकी ओर से एक हार्दिक प्रणाम- मानव को|आशा करता हूँ कि आगे भी हम इसी तरह अपने ज्ञान को मानव जीवन के श्रृंगार में लगा पाएँगे |
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