Friday, March 4, 2011

परहित सरिस धर्म नहीं भाई

आँख- खुली  है या बंद इसका निर्णय अक्सर वो संसार करता है जो इनके झरोखे से देखा जाता है |खुली आँखों से कोई वास्तविक संसार देख लेता है ,तो बंद आँख से किसी की कल्पनाओं को पर मिल जाते है|थकान भरे दिन के बाद जब पलकों से नींद का बोझ सहा नहीं जाता और वो आँखों को ढकने पर ही आमादा हो जाती हैं तब ये पता ही नहीं चलता कि इस बार कौन सी कल्पना स्वप्न का रूप लेगी ???कारण कोई भी व्यक्ति,वस्तु या घटना विशेष हो सकती है |कभी हम अपनी वास्तविकता से परे किसी दूसरे लोक में चले जाते है तो कभी किसी सुंदर चेहरे की कल्पना और उससे मिलने के प्रयास में ही रात बीत जाती है |कभी कोई भयानक दृश्य पलकों को डरा देता है तो कभी किसी से अलग होने के दुःख में डूबते -डूबते ही सूर्य उग जाता है  |
                               एक दिन स्कूल से बहुत थका हारा लौटा |क्षमता से ज्यादा ही खेल लिया था इसलिए  हाँफने तो  लगा ही था ,साथ ही साथ एक -एक कदम बढाने में लाले पड़े जा रहे थे |गला ऐसा सूख रहा था जैसे पृथ्वी पर पानी के सारे स्रोत ख़त्म ही हो गए हो |आते ही बस्ता एक ओर कोने में फेंका ,जूते मोज़े उतारकर तुरंत ही बिस्तर पर गिर पड़ा |घर में घुसते समय ही शर्ट की बटन खोल ली थी ताकि थोड़ी राहत मिले |सोचा थोड़ी देर सुस्ता लूँ  फिर हाथ मुँह धो लूँगा| थकावट ज्यादा थी इसलिए नींद आने में समय कम लगा |...
                             एकदम से क्या देखता हूँ कि मैं एक धुएँ से भरी जगह पर खड़ा हूँ ,दो लोग मेरे अगल बगल मेरे हाथों को इस तरह पकडे खड़े हैं जैसे मरने से पहले किसीने किसीसे क़र्ज़ लिया हो और अब वो अंतिम साँसें गिन रहा हो|सामने एक अजीब सा व्यक्ति ऊँचे, सिंहासन  सरीखे सोफे पर  बैठा  है |गले में माला |,हाथ कुर्सी पर इस कदर टिकाये हुए जैसे मिस्टर इंडिया का अमरीश पुरी हो |उसके सामने एक दूसरा आदमी भी खड़ा था ,वेश एकदम राजाओं जैसा था लेकिन बातें एकदम भिखारी जैसी कर रहा था वो| इससे पहले कि मैं कुछ भी समझ पाता या पूँछता उस सिंहासन वाले आदमी ने कड़कती आवाज़ में अपना परिचय देते हुए बोला -"मै यमराज |||बोलो क्या दिक्कत है  ................??"इतना बोलते ही वो आदमी गिड़-गिड़ाने लगा और बोला ....''महाराज मेरे राज्य में सब बहुत पीड़ित हैं ,बहुत दुखी ,जबकि पड़ोस के राज्य में चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली है |हर कोई अपने जीवन से संतुष्ट और सुखी दिखता है|दोनों ही राज्यों के पास समान शक्ति ,संसाधन और लोग हैं ,फिर मेरी प्रजा के साथ ऐसा अन्याय क्यों ? "
                       उस समय उसकी वाणी सुदृढ़ होती लग रही थी ,क्योंकि शायद वो उसके अनुसार अपने या अपने लोगों के अधिकार की माँग कर रहा था |  इतना सुनते ही उस तथाकथित  यमराज के किरदार ने  अपने आदमियों से कुछ इशारा किया ,जो मेरे दोनों हाथ पकडे हुए थे |वो किस बात का इशारा था मुझे नहीं पता ,लेकिन उसके बाद एक ने मेरा एक हाथ छोड़ा और जाकर उस आदमी  का हाथ  पकड़ लिया|फिर वो उसे खींच कर एक जगह ले जाने लगा |मै अपना दिमाग दौड़ा पाता उससे पहले ही यमराज ने मुझे भी साथ ले जाने का निर्देश दे दिया |वो आदमी चिल्लाने लगा- "महाराज ये तो अन्याय है|और मैं ये समझने में ही लगा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है ?मैं तो बेवजह पिस रहा था |(पिसता भी क्यों ना!!!स्वप्न मेरा ही था ,तो सुभाष घई की तरह 'गेस्ट अपियरंस' तो देनी ही थी  )

                    मै कुछ नहीं कर सकता था ,इसलिए बस चलता रहा ,जहाँ भी ले जाया गया |पहली बार कदम जहाँ जाकर रुके ,वहाँ देखा कि एक बड़ी सी मेज सजी है खाने के लिए| खूब बड़े बड़े दोने है जिनमें खूब सारा स्वादिष्ट खाना भरा है| मेज पर खूब बड़ी बड़ी चम्मचें (जिनका आकार हाथ से भी बड़ा) रखी हुई हैं|और जो लोग उस खाने को खाने वाले थे वो सब हम ही लोगों के बराबर |सब के दोनों हाथ एक साथ बँधे हुए थे |खाने की शर्त ये थी कि खाना चम्मच से ही खाना है |हर व्यक्ति खाने पर टूट पड़ रहा था लेकिन चम्मच इतनी बड़ी थी कि उनसे कोई खा ही ना पाता ,आपस में सब लड़े जा रहे थे|एक दूसरे को गुस्से से घूरते सब अपनी भूख मिटाने की कोशिश में जुटे ,इस कद्र परेशान थे कि लग रहा था ,जैसे एक दूसरे को मार ही डालेंगे |

                     हम लोगों को ये दृश्य दिखाया गया |फिर बिना कुछ बताये हमें किसी दूसरी जगह ले जाने का प्रयास किया जाने लगा |खैर हम तो बंधक थे ,दिमाग क्या चलाते !!बढ चले जिस ओर हाँका गया |दूसरी जगह पहुँचे तो वहाँ भी परिस्थितियाँ वही थी, लेकिन दृश्य एकदम विपरीत था|वहाँ भी बड़ी सी मेज,बड़े दोनों में खाना ,बड़ी चम्मचें इत्यादि थी | लोगों के हाथ अब भी बँधे थे और खाने की शर्त यहाँ भी वही थी ,परन्तु आश्चर्य की बात तो यह थी यहाँ पहले की तरह खाने के लिए  कोई मारामारी नहीं मची हुई थी |सब लोग प्रसन्न थे ,संतुष्ट थे और खाना खा रहे थे |यहाँ कोई भी भूखा नहीं दिख रहा था |
      
                   मुझे समझ में नहीं आया कि ऐसा क्या था जो सब कुछ समान होने के बावजूद दोनों जगह के हालातों में इतना अन्तर था ???? हिम्मत करके मैंने उन दोनों आदमियों से पूँछा |तभी यमराज वहाँ आए और उन्होंने जो कहा उससे हर बात एकदम साफ़ हो गयी |उन्होंने बताया कि जिस जगह हम लोग पहले आये  थे वहाँ हर आदमी भूखा,दुखी  इसलिए था क्योंकि वो सिर्फ  अपना पेट भरने के बारे में सोच रहा था |चम्मचें इतनी बड़ी थी कि उनसे कोई व्यक्ति खुद नहीं खा सकता था |इसलिए कोई भी अपनी चम्मच से खुद नहीं खा पा रहा था |दूसरी जगह हर व्यक्ति दूसरे का पेट पहले भर रहा था |हर व्यक्ति अपनी चम्मच से दूसरे के मुँह में खाना डाल रहा था और इस तरह से सबको बारी बारी से खाने को मिल रहा था | 
      
                    ये सब सुनते ही वो दूसरा आदमी जो राजा था सब कुछ समझ गया |बोला-'महाराज ,मैं जान गया |मेरे राज्य में सब लोग बड़े लोभी हैं ,स्वार्थी हैं ,अपना हित पहले देखते  हैं ,और शायद यही कारण है कि हम सब हमेशा पीड़ित रहते है |दूसरे राज्य में लोग अपना हित बाद में ,पहले दूसरे का हित देखते  हैं इसलिए ही वो लोग खुश रह पाते हैं |किसीको किसीसे द्वेष नहीं है ,और यही उनके सुखी होने का कारण| .........,'
                    तभी मम्मी के एक थप्पड़ से मेरी नींद टूट गयी,खाली इतना सुनाई दिया - 'ए नालायक ,चल हाथ मुँह धो जल्दी ,बिस्तर पर पसरा है...........|  
            
     
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