Monday, November 14, 2011

वो बचपन जब याद आता है.

वक़्त के दरीचों(झरोकों ) से
ज़िन्दगी के कमरों में 
एक धुंधला साया सा.. दिखता है...
एक मीठी सौंधी महक लिये..
एक भोलापन और चहक लिये...
टूटे कच्चे अल्फाजों का ,एक दौर उबर सा आता है.....
आँखों की नम बरसातों में
वो बचपन जब याद आता है......||-2

वो कागज की नावों का बहना ..बहते बारिश के पानी में..
वो खो जाना दादी माँ की परियों की किसी कहानी में...

वो बरसात में कीचड में छपाक से, गिरकर गंदे हो जाना..
वो  डांट पड़े चाहे मार पड़े,झूठी मूठी का चिल्लाना....
स्कूल में लंच में अपनी पसंद की लड़की के पास टिफिन लेकर जाना
अपनी मैगी उसको  देना ....और बदले में उसका सैंडविच खाना..
अपनी पेंसिल उसका शार्पनर,
अपनी गलती ,उसकी रबर....
बातें करने के ना जाने कितने नये नये बहाने बनाना....||

आइसक्रीम वाले की आवाजों पे एक पागल जैसे हो जाना....
वो गुब्बारे वाले को सुनकर ...गुब्बारे की जिद में खो जाना..
साइकिल या विडियो गेम के लिये
 चुपके से दादी से  कहना....
वो भूत की बातें सुन डरकर
रात भर मम्मी से चिपके रहना ..||

.वो क्रिकेट में आउट हो जाने पर
गुस्से से पहले झल्लाना ..
फिर 'बैट मेरा है ' धमकी देकर ,अपना ही टशन एक दिखलाना ..||
 किसी के घर में आते ही सीधे बच्चे सा बन जाना..
मिठाई कहाँ रखी है ,बस यही देखना .
और उनके जाते ही चट कर जाना.....||
पापा की स्कूटर पे आगे खड़े होकर, बेमतलब पीं पीं चिल्लाना..
वो कैसेट की अन्दर की रील निकालकर, बेवजह घुमाते रह जाना....
वो बाबा दादी के पैर दबा ,गुल्लक में पैसे जमा करना..
वो विडियो गेम पे लेवल पार करके जीतने का दम भरना ...||

वो थकने का बहाना करके ,सबकी गोदी चढ़ जाना..
वो कार्टून नेटवर्क खोल ,आँखों का उनमें ही गढ़ जाना  ..
होम वर्क की कॉपी खोलकर
कुछ भी पीछे लिखते रहना ..
और मम्मी के देखते ही फिर से ,होम वर्क में मन से लग जाना..||
.किताब के पन्नो पर लिखे नंबर से ,खेलना क्रिकेट क्लास में पीछे बैठ ...
और असली में एक-एक कैच के लिये घुटनों के बल भी गिर जाना..
ज्यादा अँधेरा होने पर डांट पिटेगी फिर भी बैटिंग लेकर आना...||

वो कौवा ,हाथी तोता ,मैना के झूठे दिलासे सुनते सुनते हर एक कौर खाना .....
और अम्मा की गोद में सिर रखकर उनके संग परियों के घर जाना........

वो टूटे खिलौने ,फटे लूडो,बिना हैंडल के बैट का कुछ ना करना
फिर भी कोई उन्हें कूड़ा कह के हाथ लगा दे तो मुँह फुला के बैठ जाना...

ना जाने कितना कुछ बाकी है इन बचपन की यादों में....
तोतली जुबान ,एक प्यारी सी नादानी  है भरी हुई एहसासों में.....
बस आज कोई कहता है जब ..
बड़े हो, जिम्मेदार बनो....
तो बचपन का वो भोलापन..वो आज़ाद समां याद आता है...
और आँखों के नम कोनों से वो बचपन फिर मुस्काता है....
और आँखों के नम कोनों से वो बचपन फिर मुस्काता है...||




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