Wednesday, November 9, 2011

रात भर चाँद में


रात भर चाँद में तेरा साया ढूँढ़ते ,
   छत पे बैठे बेवजह ख्वाब बुनते ही रह गए
बेखुदी में अपनी धडकनों को भूलकर
   तेरी आहटों का साज़ सुनते ही रह गए ..!!!

रात कतरा कतरा कर 
जलती रही ख़ामोशी से..
ख्वाब के धुएँ में
कच्ची नींदें भी उडती रही...
मखमली ओस सी बरसी मेरी तनहाइयाँ
हसरतें भी हौले हौले
उनमे सिकुड़ती रही...||
आसमाँ पे तुमको ढूँढा
                बादलों में भी  कहीं
चाँद के पीछे भी देखा
               तुम मगर मिले नहीं |

सातों आसमानों के घर भी छाने
सूरज डुबाया ,रात करी
बुने कितने ताने बाने  ..!!!

सोचा नींदों के शहर में
          कभी तो आओगे
रात से छिप छिपाकर
दबे पाँव..
अँधेरे की ओट में
पलकों की ठंडी छाँव में बैठोगे
महकी महकी बात करोगे 
मेरे आँखों के पानी में
बेसाख्ता घुल जाओगे ...||

वहम पालते रहे महज
                  चाँद में तुम्हारी सूरत देख  
सोचा आगे बढ़कर छू लेंगे तुम्हे  ,
तोड़ लेंगे तुम्हे फलक की शाख से
और जहन के पन्नों के बीच रख लेंगे  हौले से ..
                                        
 इसी जिद में हाथ  बढाया
थोडा उचके भी
बाहें भी फैलाई...
पर वो बुलबुले सा साया ना जाने कहा फूटा ..
कि ना मिले निशान कहीं
ना कहीं खबर कोई ..||

नींदों की धुन पर
 ना जाने कौन से ख्वाब
 गुनगुनाते रहे
तन्हा थे ,पागल थे या तुम में खोये थे इतने ...
कि अपने ही साये को खुद ही गले लगाते रहे...!!!

सुबह होश संभाले
तो देखा कि ,होठों की सेज पर सोया है एक आँसू 
चखा तो मीठा सा है....
शायद रात में तुमको छूता हुआ गुज़रा होगा....
ऐसे ही एहसासों का इक किस्सा हो तुम....!!!!!!

No comments:

Post a Comment