Wednesday, November 2, 2011

बादलों पे मिल रहे

बादलों पे मिल रहे ,मेरे क़दमों के निशान ...
ये ज़मीन-ओ-आसमान,कह रहे....
तेरे ख़्वाबों में बह गया ,मेरी नींदों का एक जहां .....
ये अश्कों के निशाँ ,कह रहे.....

कच्चे सपने आँखों के ,नींद की आँच पे हम तले ...
मै तेरे, तू मेरे संग चले....||
सातों आसमान के पार,सारी जन्नतों से दूर..
एक मोड़ पर कहीं हम मिलें...!!!

चल फिर चाँद के पीछे ,रात की आँखें मीचें....
चाँदनी के तले सो जायें....|||
थामे लम्हे हाथ में..,बाँधे साँसें डोर से
साये में हम तेरे खो जायें..||

कहकशों की गलियों में,दूर कहीं ,
अपना घर एक बना लें ज़रा...
एक फलक की शाख से,तोड़ तारे अधपके
आ जा आशिया सजा लें ज़रा ... !!!
.
मैं न तुझसे कुछ कहूं,तू ना मेरी कुछ सुने..
लफ्ज़ यूं बेजुबान हो जायें......||
सूखी पलकों की आग में
तेरा साया जल उठे
रात इतनी मेहरबान हो जाये....,,रात इतनी मेहरबान हो जाये..||

कोरी पलकों के कोनों में,छिपे यादों के आसमाँ..
बारिशों से यही कह रहे..||
तेरे ख़्वाबों में बह गया ,मेरी नींदों का एक जहां .....
ये अश्कों के निशाँ ,कह रहे.

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