Friday, December 2, 2011

वो बात कभी तो होने दो..||

एहसास की ठंडी छाँव तले ,कुछ मीठे लम्हे सोने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......
           
कटने को तो रातें यूँ ही ...
तारे गिनते कट सकती है...
ये खालीपन,ये बेचैनी
एक नींद से भी हट सकती है...
पर उम्र यूँ ही कट जाये तो ये जिन्दा लोगो की बात नहीं.,.
दिल है तो ये धड़का भी होगा,इकरार कभी तो होने दो ...
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||



वो शोख हवा के ठण्डे से
झोंके सा तेरा मुस्काना..
वो पलकों पे जन्नत रख के
हर एक नज़र में इतराना...
वो भोलापन एक पत्ते पे सोयी ओस की बूंदों सा..
वो गर्दन के हर झटके में ,सुकून गुनगुनी धूपों का ...
कितनी बार तो खोया अपना दिल,अपनी जिद हार गया
बस कभी तो अब कुछ पाने जैसा,जीते जैसा होने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||

वो बातों को होठों तक ला
अन्दर अन्दर डरते रहना..
फिर आँखों से सब कुछ कहकर
हर बार खता करते रहना..
नज़र मिला कर नज़र चुराना.
आँखों में हया के सागर ले...
हर एक अदा ऐसी दिलकश 
कि खुदा भी आहें सी भर ले...
ये सब होते एक दौर हुआ,कुछ और नया तो होने दो
हुई इधर उधर की बात बहुत वो बात कभी तो होने दो..||


वो राहों पर मुड़ कर रुकना
रुक कर मुड़ना मिलने के लिए
कोई काम कही का भी करना
बस साथ सफ़र चलने के लिये...
तुम ही मंजिल तुमको लेकर ,चाहा राहों पे साथ चले..
कोई क्या जाने कि फिर कब ये हाथों में तेरा हाथ मिले..
ये सफ़र कि बस शुरुआत अभी ,कुछ दूरी  तो तय होने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो......||


मैंने तो पाना सीखा है
तेरे संग बीती यादों से
तुमने भी खुद को ढूँढा है
मेरी चुप चुप सी बातों में...
पाया दोनों ने दोनों में..,अब तो दोनों को खोने दो...
हुई इधर उधर की बात बहुत ,वो बात कभी तो होने दो..||


सोची समझी सारी चलें
बस लगती अब नादानी हैं ,
ना प्रीत बिना जीवन पूरा
जग की ये रीत पुरानी है
तो बोले ,समझे ,सोचे क्या
बस ये ही बात बतानी है
दो दीवानों को प्यार हुआ
सच में बस यही कहानी है...
रह जाये कहीं ना किस्सा ये ,किरदार में अब तो खोने दो..
मेरा सब अपनापन ले लो पर मेरा कुछ तुम मुझको दे दो....||

एहसास की ठंडी छाँव तले ,कुछ मीठे लम्हे सोने दो..
हुई इधर उधर की बात बहुत,वो बात कभी तो होने दो.....||..         






     

4 comments:

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  2. yaar nikhil tum mujhe pagal kar doge,very nice.Dekho mujhe tumhari kavita pasand aane ki sabse badi wajah hai kuch aisi sacchyi jo sabke sath hoti hai shayad mere sath ,tumhare sath ya kisi aur ke sath



    kair ye tumne kiski yaad main likha hai ,koi hai dil ke bahut kareeb ,pass,kuch ahsaaso ko jagane wala to hume bhi batana.
    December 3, 2011 9:24 AM

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  3. @zeeshan...thnkuuu bhai ...i am just overwhelmed aisa cmmnt pakar.....sachayi jab kalpana ke pankho se udti hai to jyada oonchaiyan chhoo leti h......jo seekha hai lyf se wahi wapas kr rhe h lyf ko......
    aur jis khaas ki baat kr rhe ho aap ...wo to hmesha dil me rhega hi.....

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  4. waah ... bahut sundar kavita likhi hai aapne Nikhil Ji ...

    Mujhe apke blog ka address Deen Dayal Vidyalaya group on FB se mila hai.

    Ye jaankar bahut khushi hui aap bhi deendayal vidyalaya ke kshatr rahe hain.


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    -- Neeraj Dwivedi
    .

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