Monday, August 13, 2012

सौदा...

उम्मीद के सिक्के जेब में  भरकर 
वक्त की बाज़ारों में निकला ......  ..
सोचके ये .....
कोई सही सी दिखे दुकां (दूकान) जो   ....
थोड़े वक्त के पाक से लम्हें ले लूँगा मैं...
फिर उनको तेरे साथ जियूँगा ...||

पर आज भी चेहरे पर मायूसी लेकर  ..ही लौटा हूँ ...

मुट्ठी भर भी नही मिले पल.....
तुमको देखूं  ,तुमको सोचूं ,
तुमको पा लूं.,या फिर खो दूं 
 या फिर तुमको जी ही लूं....
इतने ज़रा से ....वक्त में, बोलो .....??

 "हर एक ..बात के लिए मेरी जाँ, एक पूरी सी  सदी भी कम है..||"
 
आज समझने लगा हूँ ...ये कि
सच कहते है शायद लोग ..जो  कहते है ये  ....

"ज़माने में महँगाई बहुत है ....."||

                                                  -अनजान पथिक 


No comments:

Post a Comment