मैं जिंदगी का साज़ हूँ ..,होठों पे ठहर जाऊँगा...
साँसों के सुर सजाना तुम ,मैं गीत बनकर आऊंगा ...!!!
हो जिंदगी बेसाज जब ,तब गुनगुनाना मुझको तुम...
मैं गीत हूँ ,जो ज़िन्दगी को सुरमयी कर जाऊँगा..!!
तुम अश्क बन के टूटोगे ,जब भी मुझसे रूठोगे ..
मैं गीत,गज़ल,हंसी बनकर तुझको फिर मनाऊँगा.. ||
जो तुम कहोगे मुझसे कि मैं प्रीत की एक रस्म हूँ ,
सच मानो तो मैं उम्र भर ,ये रस्म फिर निभाऊंगा...
तुम बोलकर भी सोचोगे ,कुछ रह गया जो ना कहा
मैं बिन कहे तेरी वो सब खामोशियाँ पढ़ जाऊँगा....
तुम मेरे संग बैठोगे तो खुद को भूल जाओगे..
और मेरे बिन जो बैठोगे ,तो तुमको याद आऊंगा ...
तुम ज़िन्दगी की रातों में ,खुद को जो तन्हा पाओगे..
मैं जुगनू बनके ही सही ,एक रोशनी कर जाऊँगा...
तुम जब भी गुनगुनाते हो , मैं मायने पा जाता हूँ ....
इक बार गा लेना कभी ,तो मैं अमर हो जाऊँगा...!!!
मैं जिंदगी का साज़ हूँ ..,होठों पे ठहर जाऊँगा...||||
-अनजान पथिक
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