घुटने के बल सरक सरक...कर
बड़ी दूर से आकर उसने ...
पीछे से ...ऊँगली थामी थी ...
और कानों में हौले ,,बोला था ,
-
---"एक संदेसा लाया हूँ ,.....
ख़ास है..!!!!
पढना चाहोगे ....??? "||--
पलट के देखा ज्यों ही . ..
नन्हा छोटा चाँद खड़ा था.....
हथेली पे, नाज़ुक सी उसकी
"मेहँदी" से तेरा नाम लिखा था...
रचा हुआ था-..".मैं" भी उसमें...
और नीचे पैगाम लिखा था
"तुमको भी ये ईद मुबारक....."
आज समझ में आया ...
"ईद के चाँद का इतना रुतबा क्यों है...!!!!!!! "
-अनजान पथिक
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