Monday, August 20, 2012

ईद का चाँद



घुटने के बल सरक सरक...कर 
बड़ी दूर से आकर उसने ...
पीछे से ...ऊँगली थामी थी ...
और कानों में हौले ,,बोला था  ,
-
---"एक संदेसा लाया हूँ ,.....
ख़ास है..!!!!
पढना चाहोगे ....???  "||--

पलट के देखा ज्यों ही . ..
नन्हा छोटा चाँद खड़ा था.....
हथेली पे, नाज़ुक सी उसकी 
"मेहँदी" से तेरा नाम लिखा  था...
रचा हुआ था-..".मैं" भी उसमें...
और नीचे पैगाम  लिखा  था 
"तुमको भी ये ईद मुबारक....."

आज समझ में आया ...
"ईद के  चाँद का इतना रुतबा क्यों है...!!!!!!! "
                                        -अनजान पथिक 

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