Tuesday, August 14, 2012

साँसों की दस्तक ....



सांसें जब भागी थी 
इस जिस्म के घर से...
बोली थी तब -"तुमको छूकर ही लौटेगी ...."||
साँसों का तो पता नहीं...
हुई लापता कहाँ ....
मगर .......
उम्मीद का दिन ढलने को है...
अँधेरे ..की ...कड़वी हंसी   ...
"चिरागों " के कान के परदे ,,जैसे  फाड़ रही है...
"लौ" की हर धड़कन कहती है ...
"बोलों तुम आओगे सच में ....तो और जलूं मैं...??"
वरना ..तुम बिन जलने का  मतलब ही  क्या है ....??
तुम न हो ....तो फर्क कहाँ हैं...
रोशनी और अंधेरों में....??
रातों में और सवेरों में...??

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रुको,
ज़रा कुछ आहट सी महसूस हुई है दरवाजे पर  ....
देख के आने दो .....
शायद ....कोई सांस ...
पता तेरा .....,खबर तेरी ....., लेकर लौटी हो ....
दुआ करो  ....ये गली में खेलती 
हवा की कोई शरारत न हो ...||
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"ए दरवाजे ...
जो भी हो....पकड़ के रखना .......
बिठाना ,बातें करना .....
हो सकता है ...
वो ही आये हो.......
साँसों को वापस करने....||"
                               -अनजान पथिक 


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