Sunday, August 4, 2013

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता ...

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता  ...
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ....||."

वो शाम याद है ..??
जब तुम्हारे होठों पर रखे .....
उस जलते हुए से लम्हे को ....
अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं...

उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में  ..
इक पूरी उम्र छोटी है ,
उसकी आंच धीमी भर करने को....

मेरी धड़कन का हर हिस्सा ......
बाखुशी* फूंक कर आया था खुद को उस आग में  ....(बाखुशी -खुशी के साथ )
क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से ....
आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर .....

जिंदा रहता है - तुममें उलझा हुआ मेरा वजूद ,
मुस्कराती रहती  है - मुझमें सांस लेती तुम्हारी मौजूदगी ....||

ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं ...
पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा ......||
ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने ...
हाँ, पर इतना मालूम है ....
कि ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही......||

इसलिए कोशिश करता रहता हूँ रोज  ..
कि फूंकता रहूँ खुद को तेरे ही किसी ख्याल में  ..
ताकि मिल जाये तेरे होठों पर,, उस शाम की तरह ही 
इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश ....
जिससे ये जिंदगी ,ये रूह सदियों जलती रहे ....||

सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में ...
कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होठ देखते हैं लोग ...
तो पूँछ बैठते हैं ....
"फूंकने की लत है क्या ..??"

और जवाब में मैं कुछ भी झूठ तो नहीं कहता 
बस सच छिपा ले जाता हूँ ..
हाँ ......

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता  ...
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ .....||"


                                                 -अनजान पथिक 
                                                 (निखिल श्रीवास्तव )


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