Tuesday, February 15, 2011

आज जो बादल बरसा फिर से

आज जो बादल बरसा  फिर से
            आँख मेरी भर आई है 
इस मिलने के मौसम में फिर 
             जाने कैसी तन्हाई है???

छम -छम  बादल बरस रहा 
            और पल पल मन ये तरस रहा 
तेरा जो भी ख्वाब था देखा 
            सच  होने को तड़प रहा
 ख़ुशी मिली उन ख्वाबों  में जो
           फिर पानी बन झर आई है|
आज जो ------
                                                              
निकल पड़ा उन राहों पे फिर ,
         कभी जिसपर तुमने साथ दिया|
जब गिरकर चूमा धरती को
          उठने को अपना हाथ दिया|
ना साथ रहा, ना हाथ रहा
          बस याद तेरी रह पाई है|
आज जो----------------


है याद वो पलकें  फेर
         तेरा गिरती बूंदों में शर्माना |
है याद वो तेरा झूम -झूम 
         नटखट बालक सा इठलाना |
है याद वो हाथों को फैला 
         झरती बारिश में रम जाना |
और याद है  उनका अगले पल 
         छाता बन सिर पे थम जाना|
 हर वो तेरी याद अदा बन 
         दिल में फिर से गहराई है
आज जो ---------------

संग -संग यूँ सब घूम रहे 
        मस्ती के रंग में झूम रहे| 
कभी पलकों को कभी हाथों  को 
        कभी माथे को ही चूम रहे|
अपनी भी ऐसी मस्ती कुछ 
        आँसू बनकर मुस्काई है|

आज जो बादल बरसा फिर से 
आँख मेरी भर आई है|
इस मिलने के मौसम में फिर 
जाने कैसी तन्हाई है  !!!!!!!!!!!!!!!!!!

                                                

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