यादों के सिरहाने पर,मै सिर रखकर के सोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में ,क्या पाया हूँ ,क्या खोया हूँ ???
है बचपन भी वो याद मुझे ,जब गिरकर रोया सिसक -सिसक
चाहा हसरत हर पूरी हो ,पर माँगा उसको झिझक -झिझक |
जब लगी चोट कोई तो फिर ,माँ के आँचल में रोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में, क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ ||
दुनियादारी सब बेईमानी ,एक दौर हुआ वो करता था
जब धन -दौलत का लोभ नहीं ,मन दो लड्डू पे मरता था|
जब मौज बरसती बादल से, तो 'रेनी डे' मन जाता था
जब कागज़ की नावों से ही,हर सपना सच बन जाता था|
उन झूठे सपनों की बस्ती में, भटक कहाँ मैं खोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में ,क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ ???
जब दादी नानी बैठ प्यार से,खाना मुझे खिलाती थी ,
हर एक कौर पर घोडा,हाथी बन्दर सब याद दिलाती थी|
जब तारों को तकते -तकते,पलकें यूँ ही गिर जाती थी
जब गोद में रखकर सिर 'अम्मा ',परियों के घर ले जाती थी |
अब कट जाती है रातें ,बस पलकों के झूठे नाटक से
बस ढूँढूं है वो गोद कहाँ ,जिसपे सुकून से सोया हूँ|
गिनता हूँ बीते लम्हों में, क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ |
जब पापा कंधो पर बैठा,'घुम्मी' करवाया करते थे |
जब खुद घुटनों पर बैठ ,सवारी मुझे कराया करते थे
फिर बाद में टॉफी दे देकर , फुसलाने में ही थक जाते|
उस डांट भरी फुसलाहट को, कर याद बहुत मैं रोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में ,क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ |
ना जाने वो सब झूठा था ,या वर्तमान का सार नहीं
पर था जो भी सब अच्छा था,बचपन मिलता सौ बार नहीं |
उन मीठी कडवी यादों को ,इक पल में नहीं भुला सकता
उन बचपन की गलियों में फिर, चाहूं तो भी ना जा सकता
इसलिए ना इनको छोड़ सका थककर भी अबतक ढोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में, क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ|
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आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा, कृपया यहाँ भी आयें और हिंदी ब्लॉग जगत को नया आयाम दे. उत्तर प्रदेश की आवाज़ को बुलंद करें. http://uttarpradeshbloggerassociation.blogspot.com
ReplyDeleteएक नज़र इधर भी. http://blostnews .blogspot .com
धन्यवाद हरीश जी ,आपके सकारात्मक प्रोत्साहन के लिए |आपके ब्लॉग का मैने अनुसरण कर लिया है...|आशा है कि इससे हम सभी, हिन्दी भाषा को एक सशक्त माध्यम प्रदान करने में समर्थ होंगे |
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा, कृपया यहाँ भी आयें और हिंदी ब्लॉग जगत को नया आयाम दे. उत्तर प्रदेश की आवाज़ को बुलंद करें. http://uttarpradeshbloggerassociation.blogspot.com
ReplyDeleteएक नज़र इधर भी. http://blostnews .blogspot .com
बहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteगिनता हूँ बीते लम्हों में, क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ|
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है। लगता ज़िन्दगी मे हम जितना खोते हैं उतना पाते नही इसी का नाम ज़िन्दगी है। स्वागत है आपका। शुभकामनायें।
"ना जाने वो सब झूठा था ,या वर्तमान का सार नहीं
ReplyDeleteपर था जो भी सब अच्छा था,बचपन मिलता सौ बार नहीं |
उन मीठी कडवी यादों को ,इक पल में नहीं भुला सकता
उन बचपन की गलियों में फिर, चाहूं तो भी ना जा सकता
इसलिए ना इनको छोड़ सका थककर भी अबतक ढोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में, क्या पाया हूँ क्या खोया हूँ"
बहुत सुंदर - प्रशंसनीय प्रस्तुति - हार्दिक बधाई
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आप का हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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